25 नवंबर, 2020

उम्मीद की नीलाग्नि - -

अनेक सभ्यताओं ने उत्थान - पतन
देखा, अनेक राजाओं के मुकुट
उतारे गए, कितने ही
नदियों के तट
बदल गए,
कितने
ही महासिंधु मरुस्थलों में तब्दील हो
गए, निःसृत अंधकार में फिर
भी उम्मीद की नीलाग्नि
जलती रही, समय
के अनुरूप ये
जीवन
हर
हाल में बढ़ता ही जाता है, हर जन्म
में, कहीं न कहीं पुनर्मिलन की
आस रहे, महा जल प्लावन
हो या अग्नि प्रलय,
पुनरागमन के  
रास्ते पर
चिर -
परिचित मधुमास रहे, अनगिनत
बार सूर्य का रथ गुज़रा, नील -
नद से हो कर, सुदूर
अमेजन तट
तक,
वोल्गा के विसर्जन से उभर कर - -
गंगा के वक्ष स्थल तक,
पृथ्वी के हर एक
बिंदु में कहीं
न कहीं
एक
ही नितांत अंतरंग पलों का राज रहा,
बाक़ी चाबीविहीन सदियों से
इतिहास का जंग -
लगा, बंद
दराज
रहा, केवल अंतरंग पलों का राज - -
रहा।
* *
- - शांतनु सान्याल







6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 26 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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