चाहे कितना भव्य क्यों न हो, सूर्योदय
का समारोह, डूबने से पहले कहीं
न कहीं उसका चेहरा उदास
होता है, सुबह और
शाम के दरमियां
बहुत कुछ
बदल
जाता है, लोग देखते हैं, उसे डूबते हुए
बहुत विस्मय से, फिर उठते हैं
समुद्र तट से, कपड़ों से
बालू कण झाड़ते
हुए, जो दिन
भर हमारे
संग था
वही
अंधेरा घिरते ही, किसी और के पास -
होता है, वो अदृश्य रेखा-चित्र जो
रिश्तों के दीवारों में थे कभी
अंकित, समय के साथ
चित्र सभी, धीरे -
धीरे विलीन
हो गए,
जब
टूटी रेखाओं में हम, ज़िन्दगी का अर्थ
ढूंढते हैं, तब पांवों तले, ज़मीं न
होने का अहसास होता है,
वो तमाम चेहरे
अकस्मात
मुखौटों
में
तब्दील हो गए, हमने तो नहीं मांगा -
था, किसी से अपनेपन का कोई
प्रमाण पत्र, दरअसल, उम्र -
भर की ख़ुशफ़हमी का
अंजाम, इसी तरह
अनायास
होता
है,
डूबने से पहले, कहीं न कहीं सूरज का
चेहरा उदास होता है।
* *
- - शांतनु सान्याल
18 नवंबर, 2020
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वाह
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंहार्दिक आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंडूबने से पहले, कहीं न कहीं सूरज का
जवाब देंहटाएंचेहरा उदास होता है।
―यक़ीनन
दूसरों की उदासी देखकर खुश होने का दौर
ना जाने कब मिटेगा
सुन्दर रचना
हार्दिक आभार - - नमन सह।
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