09 नवंबर, 2020

शून्य राखदानी - -

पुस्तकें अब कोई नहीं पढता, उंगली  के
अग्रभाग में हैं, अब अनुसंधान के
ठिकाने, वृहदाकार बरगद को
अब कोई नहीं देखता,
बोन्साई के हैं
सभी
दीवाने, समय के कांटे थमे से हैं अपनी
जगह, जेब के अंदर है उसका नया
आशियाना, परिवर्तनशील है
हर पल यहाँ, तुम आईने
के सामने खड़े रहो
ये तुम्हारी है
समस्या,
बज़्म
बर्ख़ास्त हुई कब की, बासी अक्स से -
न पूछो, रौशनी का गुज़रा हुआ
ज़माना, कोई नहीं जानता
कल हम कहाँ थे सिर्फ़
अंदाज़ लगाते हैं
लोग, धुंआ
सा है हर
तरफ
शहर की सड़कों पर, शून्य है रात की
राखदानी, बिन पंख ही परवाज़
लगाते हैं लोग - -

* *
- - शांतनु सान्याल

8 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (१०-११-२०२०) को "आज नया एक गीत लिखूं"(चर्चा अंक- 3881) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  2. गहन चिंतन लिए गंभीर लेखन।
    सराहनीय।
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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