11 नवंबर, 2020

जल समाधि - -

ज़र्द पत्तों की तरह एक दिन टूट
जाएंगे सभी ख़्वाब, टहनियों
के सिवा कुछ न होगा
ज़िन्दगी के पास,
कुछ ज़ख्म
के निशां,
कुछ
पुराने चादर के देह गंध, दुआओं
के कुछ पैबंद, दहलीज़ में
खड़ी रात मांगती है
मुझ से उधार
का हिसाब।
हर शै
को
लौटाना नहीं आसान, तुम छू - -
कर देखो मेरा सीना, ठीक
जिसके नीचे है ह्रदय -
पिंड, और गहन
में उतरो,
और
नीचे, कुछ और गहराई में, शायद
पा जाओ सितारों से भरा उल्टा
आसमान। बुझा दें चलो
सभी कृत्रिम उजाले,
प्रस्तर युग में
लौट जाएं,
खोह
में
बसाएं स्पर्श का आदिम नगर, न
कोई भाषा, न ही कोई निराशा,
न इस पार की दुनिया, न
उस पार का सफ़र। मुझे
महसूस करो अपने
अंदर, कुछ
और
भीतर, रक्त कोशिकाओं से हो -
कर, सुक्ष्म प्राण बिंदुओं
तक, अंतरतम की
गहराइयों का
अहसास
करो,
कदाचित पा जाओ आलोकित
रूह का शहर।

* *
- - शांतनु सान्याल

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