कुछ रिश्तों के शायद कोई उनवान नहीं होते
निग़ाहों में इक ख़्वाब लिए बैठे हो मेरी जाँ,
कुछ क़दीम दर्द इतने भी आसान नहीं होते
वो जो मेरा हमदर्द, हमराज़ था इक दिन
नजदीकियां सरे बज़्म यूँ ही बयाँ नहीं होते,
वादियों में फूल खिले हैं, मौसम से पहले
हर महकती आरज़ू लेकिन गुलिस्ताँ नहीं होते //
-- शांतनु सान्याल
बुधवार, 29 सितंबर 2010
নয়নের ভাষা
নিষ্পলক শুধুই চেয়ে থাকা ওই তোমার দুই নয়নের ভাষা
অভিভূত করে যেত ক্ষণে ক্ষণে সেই অপ্রতিম ভালবাসা,
আজ ও মনে হয় তোমার, বিভোর কন্ঠের মৃদু হিল্লোল
পাহাড়ি নদী যেন শ্রাবনের আগেই, উস্কিয়েছে সুপ্ত প্রত্যাশা,
উদ্বেলিত করে যেত, মন ও প্রাণ সেই অসীম ভালবাসা,
শান্ত ঝিলের গায়ে ভাসানো, প্রেমের কবিতা গুচ্ছ, মনে আছে
নিঝুম মধু সন্ধায়,ঝির ঝির আঁধারে লুকিয়ে দুজনের আসা,
আন্দোলিত করে যেত, লেবুফুল গন্ধে সেই মধুরীম ভালবাসা,
অভিভূত করে যেত ক্ষণে ক্ষণে সেই অপ্রতিম ভালবাসা //
- শান্তনু সান্যাল
অভিভূত করে যেত ক্ষণে ক্ষণে সেই অপ্রতিম ভালবাসা,
আজ ও মনে হয় তোমার, বিভোর কন্ঠের মৃদু হিল্লোল
পাহাড়ি নদী যেন শ্রাবনের আগেই, উস্কিয়েছে সুপ্ত প্রত্যাশা,
উদ্বেলিত করে যেত, মন ও প্রাণ সেই অসীম ভালবাসা,
শান্ত ঝিলের গায়ে ভাসানো, প্রেমের কবিতা গুচ্ছ, মনে আছে
নিঝুম মধু সন্ধায়,ঝির ঝির আঁধারে লুকিয়ে দুজনের আসা,
আন্দোলিত করে যেত, লেবুফুল গন্ধে সেই মধুরীম ভালবাসা,
অভিভূত করে যেত ক্ষণে ক্ষণে সেই অপ্রতিম ভালবাসা //
- শান্তনু সান্যাল
रविवार, 26 सितंबर 2010
नज़्म
नज़्म
ज़िन्दगी की वो तमाम उलझनें भूल जाएँ
कुछ देर के लिए ही सही करीब तो आओ
मुस्कराएँ मिलके दो पल, सारे बहाने भूल जाएँ
तुम्हारे अश्क में चमकतीं हैं, अक्सर
कुछ मेरे दर्द की बूंदें रह रह कर
छू लो मुझे फिर से, अपने या बेगाने भूल जाएँ
कांपती हैं, क्यूँ जज़्बात किसी लौ की तरह
न छुपाओ, के दिल में चिराग है तुम्हारा
थाम लो मेरी साँसें, नासूर ज़ख्म पुराने भूल जाएँ
करें भी तो क्या,शिकायत हम किसी से
वक़्त के आगे कौन ठहरा है, ऐ हमनशीं मिले
डूबती नज़र को साहिल, मंजिल अनजाने भूल जाएँ //
-- शांतनु सान्याल
ज़िन्दगी की वो तमाम उलझनें भूल जाएँ
कुछ देर के लिए ही सही करीब तो आओ
मुस्कराएँ मिलके दो पल, सारे बहाने भूल जाएँ
तुम्हारे अश्क में चमकतीं हैं, अक्सर
कुछ मेरे दर्द की बूंदें रह रह कर
छू लो मुझे फिर से, अपने या बेगाने भूल जाएँ
कांपती हैं, क्यूँ जज़्बात किसी लौ की तरह
न छुपाओ, के दिल में चिराग है तुम्हारा
थाम लो मेरी साँसें, नासूर ज़ख्म पुराने भूल जाएँ
करें भी तो क्या,शिकायत हम किसी से
वक़्त के आगे कौन ठहरा है, ऐ हमनशीं मिले
डूबती नज़र को साहिल, मंजिल अनजाने भूल जाएँ //
-- शांतनु सान्याल
रविवार, 5 सितंबर 2010
मधुरिम एक अनुबंध
भीनी भीनी मीठी सी सुगंध
साँसों में खिले हों
जैसे सहस्त्र निशिगंध
स्पर्श तुम्हारा दे जीवन को
मधुरिम एक अनुबंध
नेहों से बरसे प्रणय बूँद
मन विचलित ज्यों मकरंद
अधरों में ढले मधुमास
शब्दों से छलके मधुछंद
आम्र मुकुल सम कोमल अंग
रसिक पवन चलत थम थम
खुले कुंतल बलखाये पल छिन
पथिक भरमाय अदृश्य सरगम
चलत बाट ज्यूँ लहरे कदम्ब डार
जमुना नीर बहत मद्धम मद्धम
कृष्ण निशब्द निहारत रूप
शशि मुख राधा हसत अगम //
-- शांतनु सान्याल
शुक्रवार, 3 सितंबर 2010
क़सम
दहकते आग से गुजरने की
क़सम खाई है
न पूछ मेरे सीने की
जलन का आलम
ग़र सांस भी लूँ तो अंगारों
की तपिश होगी
मेरे अहसासों में कहीं
अब तक सिसकता बचपन
मेरे आँखों में कहीं अब तक
बिकती हुई जवानी है
मेरे पहलु में कहीं अब तक
भूख से लाचार भटकती
जिंदगानी है
कैसे लिखूं खुबसूरत ग़जल
मेरे दिल में अभी तक
नफरत की निशानी है
तुम चाहो तो बदल लो रुख अपना
मेरे जिश्म ओ जां में अब तक
सुलगते ज़ख्मों की बयानी है
आसां नहीं हमराह मेरे चलना
मैंने इस रह में मिटने की
क़सम खाई है //
-- शांतनु सान्याल
क़सम खाई है
न पूछ मेरे सीने की
जलन का आलम
ग़र सांस भी लूँ तो अंगारों
की तपिश होगी
मेरे अहसासों में कहीं
अब तक सिसकता बचपन
मेरे आँखों में कहीं अब तक
बिकती हुई जवानी है
मेरे पहलु में कहीं अब तक
भूख से लाचार भटकती
जिंदगानी है
कैसे लिखूं खुबसूरत ग़जल
मेरे दिल में अभी तक
नफरत की निशानी है
तुम चाहो तो बदल लो रुख अपना
मेरे जिश्म ओ जां में अब तक
सुलगते ज़ख्मों की बयानी है
आसां नहीं हमराह मेरे चलना
मैंने इस रह में मिटने की
क़सम खाई है //
-- शांतनु सान्याल
क़सम
दहकते आग से गुजरने की
क़सम खाई है
न पूछ मेरे सीने की
जलन का आलम
ग़र सांस भी लूँ तो अंगारों
की तपिश होगी
मेरे अहसासों में कहीं
अब तक सिसकता बचपन
मेरे आँखों में कहीं अब तक
बिकती हुई जवानी है
मेरे पहलु में कहीं अब तक
भूख से लाचार भटकती
जिंदगानी है
कैसे लिखूं खुबसूरत ग़जल
मेरे दिल में अभी तक
नफरत की निशानी है
तुम चाहो तो बदल लो रुख अपना
मेरे जिश्म ओ जां में अब तक
सुलगते ज़ख्मों की बयानी है
आसां हमराह मेरे चलना
मैंने इस रह में मिटने की
क़सम खाई है //
-- शांतनु सान्याल
क़सम खाई है
न पूछ मेरे सीने की
जलन का आलम
ग़र सांस भी लूँ तो अंगारों
की तपिश होगी
मेरे अहसासों में कहीं
अब तक सिसकता बचपन
मेरे आँखों में कहीं अब तक
बिकती हुई जवानी है
मेरे पहलु में कहीं अब तक
भूख से लाचार भटकती
जिंदगानी है
कैसे लिखूं खुबसूरत ग़जल
मेरे दिल में अभी तक
नफरत की निशानी है
तुम चाहो तो बदल लो रुख अपना
मेरे जिश्म ओ जां में अब तक
सुलगते ज़ख्मों की बयानी है
आसां हमराह मेरे चलना
मैंने इस रह में मिटने की
क़सम खाई है //
-- शांतनु सान्याल
अग्नि पुरुष
त्रिशूल, खड़ग,मस्तक रक्त तिलक
अग्नि पुरुष हो समर प्रस्थान,
अर्घ्य शीश अर्पण,हो धर्मार्थ
अश्व रोहण, हस्ते केशरी ध्वज
रिपु मर्दन हेतु कर प्रस्थान //
तू सूर्य सम सहस्त्र अश्वारोही
गर्जत बरसत मेघ सम वीर पुरु
विध्वंस हो अधर्म, सर्वांश कुरु
नव श्रृष्टि हेतु कर सर्वस्व दान //
हे सिंह वदन, परिपूर्ण मनुष्य
झंकृत हो नभ कर महा गर्जना
कोटि कोटि जन उद्वेलित, करे प्रार्थना
हे नव युग पुरुष कर तिमिर अवसान //
-- शांतनु सान्याल
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
ख़्वाहिशों का यूँ भी कोई किनारा नहीं होता, इक बेमौज नदी है, कोई बेसदा बहती हुई - डूबनेवाले का यहाँ कोई भी सहारा नहीं होता। जब आग लगी...
-
ज़िन्दगी की ज्यामिति इतनी भी मुश्किल नहीं कि जिसे ढूंढे हम, हाथ की लकीरों में। तुम्हारे शहर में यूँ तो हर चीज़ है ग़ैर मामूली, मगर अपना दिल ...
