11 सितंबर, 2023

प्रवाहमान - -

रुख़्सत हो चुका अदृश्य तूफ़ान,
साहिल पे छोड़ कर बर्बादी के
निशान, फिर लौट आएंगे
इक दिन बेघर परिंदे,
मौसम बदलते
ही खुल
जाएगा बंद ख़्वाबों का आसमान,
पुनः लगेंगे नदी किनारे मेले,
बूढ़े बरगद की शाखों में
फिर सजेंगे नए घरौंदे,
ऋतु चक्र कभी
रुकता नहीं,
किसी
के रहने या न रहने से कारोबार ए
दुनिया थमता नहीं, मंदिर के
सांध्य प्रदीप के साथ ही
सुबह का होता है
नया आह्वान,
कोई न
कोई
रहता है अदृश्य तत्पर ख़ाली स्थान
भरने के लिए, ज़िन्दगी पूरा
मौक़ा देती है बिखर कर
दोबारा संवरने के लिए,
नदी के जलधार सदा
रहते हैं प्रवाहमान ।
रुख़्सत हो चुका
अदृश्य तूफ़ान,
साहिल पे
छोड़
कर बर्बादी के निशान ।
- शांतनु सान्याल 

न बुझाओ चश्म ए शमा - -

न बुझाओ चश्म ए शमा इतनी जल्दी, 

सितारों की महफ़िल में है कुछ 
विरानगी अब तलक, न 
गिराओ राज़ ए 
पर्दा इस 
तरह वक़्त से पहले कि गुलों में हो 
वहशत बेवजह, अभी तो इक 
तवील ख़ुश्बुओं का सफ़र 
है बाक़ी, हमने कहाँ 
सिखा है अभी 
तक इक 
मुश्त मुस्कुराना, रहने दो यूँ ही बूंद 
बूंद इश्क़ ए नूर का टपकना, कि 
तपते ज़िन्दगी को कुछ 
तो संदली अहसास 
हो, खुले रहें 
कुछ देर 
और तुम्हारे निगाहों के दरीचे कि -
ज़िन्दगी महकना चाहती है 
आख़री पहर तक यूँ 
ही मद्धम - मद्धम,
लम्हा - लम्हा,
दम ब 
दम सुबह होने तलक, न बुझाओ 
चश्म ए शमा इतनी जल्दी, 
सितारों की महफ़िल 
में है कुछ विरानगी अब तलक - - -

* * 
- शांतनु सान्याल 
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07 सितंबर, 2023

दुनिया की सच्चाई - -

सजल पलकों के किनारे, ये कैसा
शहर बसा गया कोई। सरहद
पार करने की तमन्ना
निकली बहोत ही
महलक,
सुबह से पहले, चारों तरफ़  कँटीले
तार, लगा गया कोई। उमर
इन ख़्वाबों की कभी
लम्बी होती
नहीं
कांच की तरह, रेशमी पंख ओढ़ने -
से पहले जिस्म ओ जां जगा
गया कोई। ये सर ज़मीन
ही मेरा है, पहला और
आख़री पनाहगाह,
आईने की
तरह
बेबाक, मयार ए  हैसियत बता - -
गया कोई। मुझे अपने
तजुर्बा ए ज़िन्दगी
पे बेहद नाज़
था लेकिन -
चंद
बूंदों में सिमटी हुई, दुनिया की
सच्चाई दिखा गया कोई।

* *
- शांतनु सान्याल




 

01 सितंबर, 2023

अशेष अंतर्यात्रा - -

समयानुसार हर चीज़ होते जाती है आवरणविहीन,
वयोवृद्ध वृक्ष, जीर्ण पत्तों का करते हैं परित्याग,
प्रकृत सत्य है परिवर्तन, ऋतु हो या अहिराज,
जन्म - मृत्यु के इस चक्र में एक रेखा
रहती है बहुत ही नाज़ुक सी
महीन, समयानुसार हर
चीज़ होते जाती है
आवरणविहीन।
कमर बंध
में गुथे
रहते हैं मोह के कानी कौड़ी, निर्वस्त्र देह से लिपटे
रहते हैं अतृप्त, अदृश्य अग्नि कण, हृदय कोण
में छुपे रहते हैं अनगिनत अभिलाषों के
अंधकार, अतिरिक्त चाह के लिए
अंतरतम करता है हाहाकार,
तमाम रात्रि अविराम
यात्रा, फिर भी
सुबह का
नहीं मिलता
कोई
सुराग, सब कुछ मिलने के बाद भी -
शून्यता करती है विराज, दरअसल हम
ख़ुद से ख़ुद को नहीं कर पाते हैं
आज़ाद, अंतर्यात्रा रहती है
यथावत अंतहीन,   
समयानुसार
हर चीज़
होते
जाती है आवरणविहीन - -
- शांतनु सान्याल
 

30 अगस्त, 2023

मुसाफ़िर - -

कहीं न कहीं हम सभी हैं
मुसाफ़िर इक रात के,
कभी रुपहली
शब में
और कभी ज़ुल्मात में - -
किसे ख़बर क्या
मानी रहे
अपनी
 मुलाक़ात के। कुछ
तिश्नगी ऐसी
 कि बुझाए
तो उम्र
गुज़रे - - कुछ आग
रहे ताउम्र ज़िंदा
गुजिश्ता
बरसात के। तुम्हारी
निगाह में जो
हम इक
बार क़ैद हुए - - अब
दीन ओ दुनिया,
फ़क़त हैं मौज़ू
जज़्बात
के।

* *
- शांतनु सान्याल


26 अगस्त, 2023

हम और आप - -


हर शख़्स कहीं न कहीं होता
है ज़रा सा वादा ख़िलाफ़,
अपने अंदर से बाहर
निकल आना,
इतना भी
नहीं आसां, हर इक वजूद - -
रखता है अपना ही
पोशीदा लिहाफ़ !
न दोहराओ,
फिर वही
उम्र भर जीने मरने की बातें,
पल भर की मुलाक़ातों
से नहीं मुमकिन,
यूँ रूहों का
मिलाप।
ये नेह के नाज़ुक बंधन हैं या
रस्म ए दुनिया की जंज़ीरें,
इक अनजाने
रस्साकसी
में जकड़े हुए से हैं हम और - -
आप।

* *
- शांतनु सान्याल 


19 अगस्त, 2023

इस छोर से उस अंत तक - -


सूरज की है अपनी ही -
मजबूरी, शाम से
पहले उसका
डूबना है
ज़रूरी। जीवन की नाव,
और अंतहीन बहाव,
फिर भी घाट
तक
पहुंचना है ज़रूरी। जले
हैं मंदिर द्वार के
दीप, गहन
अंधकार
है बहुत समीप, फिर भी,
किसी तरह से अंतर्मन
को छूना है
ज़रूरी।
मल्लाह और किनारे के
दरमियान, शायद था
कोई अदृश्य
आसमान,
इस
छोर से उस अंत तक,
हर हाल में जीवन
का बहना है
ज़रूरी।

* *
- शांतनु सान्याल

13 अगस्त, 2023

ज़रा सी ज़िन्दगी

इक आहट, जो दूर किसी ख़ामोश
गुफाओं से निकल कर, दिल
पे दस्तक सी दिए जाती
है, कुछ मासूम चेहरे,
हसरत भरी
निगाहों से -
से तकतें हैं, छलकती बूंदों में
कहीं, शाखों से फूल  के
शक्ल  में खुशियाँ  
बरसती  हैं, जी  
करता  है-
बिखेर  
दें,
वो  तमाम  ख़्वाब जो कभी  
हम ने  बुनी  थीं ख़ूबसूरत
ज़िन्दगी के लिए, इक
हलकी सी मुस्कराहट
में उम्र भर का
हासिल
तलाश करें और क्या बहोत
चाहिए इस ज़रा सी ज़िन्दगी
के लिए -
- - शांतनु सान्याल

 

11 अगस्त, 2023

काग़ज़ की नाव

बहा दिए हम ने वो सभी काग़ज़ की कश्तियां,
साहिल में टूटी पड़ी हुई हैं ख़्वाबों की रस्सियां,
मिट्टी के खिलौने बिखरे पड़े हैं दूर तक
बेतरतीब,
मुंडेर पर रोज़ उतरता है चांद, शीशे की
हैं सीढ़ियां,
फिर लौट कर उसी जगह पे काश हम
पहुंच पाते,
जहां पर आज भी हैं आबाद जुगनुओं
की बस्तियां,
बीते लम्हों के मोती जलते बुझते से हैं
नदी किनारे,
राहत ए जां है उम्र की ढलान में इश्क़
की परछाइयां ।
- शांतनु सान्याल


उन्मुक्त उड़ान - -

निर्बंध भावनाएं चाहती हैं उन्मुक्त 

उड़ान, रहने दे कुछ देर और 
ज़रा, यूँ ही खुला अपनी 
आखों का ये नीला 
आसमान !
निःशब्द अधर चाहे लिखना फिर 
कोई अतुकांत कविता, बहने 
दे अपनी मुस्कानों की,
अबाध सरिता, 
टूटते तारे 
ने बिखरते पल में भी रौशनी का 
दामन नहीं छोड़ा, ये और 
बात है कि अँधेरे की 
थी अपनी कोई 
मजबूरी,
उन अँधेरों से निकल ज़िन्दगी फिर 
चाहती है नए क्षितिज छूना।

* * 
- शांतनु सान्याल 

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09 अगस्त, 2023

चाँद तारों की महफ़िल - -

जब उठी रात ढलते, चाँद तारों की
महफ़िल, जब झरे शाख़ों से
आख़री गुल ए शबाना,
तब तलक जलते
रहे दिल में
नूर अज़
दरिया के मानिंद, इश्क़ ए फ़ानूस,
न पूछ ऐ दोस्त, कैसे गुज़रे
वो महलक लम्हात !
हर सांस में हो
गोया इक
नया अहसास ए ज़िन्दगी, हर इक
नज़र को हो जैसे सदियों की
प्यास ! ये सच है कि
तुम न थे कल
रात यूँ तो
मेरे साथ, फिर भी न जाने क्यूँ, यूँ
लगता है तुम ज़रूर थे मेरे
आसपास चाँदनी में
तहलील, जब
उठी रात
ढलते, चाँद तारों की महफ़िल - - -

* *
- शांतनु सान्याल


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by Marilyn Hageman Contemporary Floral Art

06 अगस्त, 2023

अपना बना गया कोई

मजरूह साँस रुके तो ज़रा ऐ दोस्त,
बेख़ुदी में न जाने क्या कह गया कोई,
किसी की आँखों में थी ज़िन्दगी
सरे बज़्म वसीयत बयाँ कर गया कोई,
झुकी पलकों में लिए राज़ गहरा
घावों को फिर परेशाँ कर गया कोई,
कच्ची दिल की हैं मुंडेरें हमदम
सीड़ियों में आसमां बिछा गया कोई,
बेरंग दीवारें जैसे नींद से हैं जागे
फूलों के चिलमन सजा गया कोई,
उम्र भर की हसीं लड़खड़ाहट है
या यूँ ही अपना बना गया कोई,
बेख़ुदी में न जाने क्या कह गया कोई ।
-- शांतनु सान्याल

03 अगस्त, 2023

दो लफ्ज़ - -

नज़र के परे भी वो मौजूद, निगाह के 

रूबरू भी ! इक अजीब सा ख़याल
है, या कोई हक़ीक़ी आइना !
ज़िन्दगी हर क़दम 
चाहती है ख़ुद -
अज़्म की 
गवाही, कोई कितना भी चाहे, नहीं -
मुमकिन क़िस्मत से ज़ियादा
हासिल होना, मुस्तक़िल
है मंज़िल, फिर क्यूँ 
परेशां है ये नज़र 
की आवारगी।
- शांतनु सान्याल   
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 ख़ुद - अज़्म - स्व आकलन 
मुस्तक़िल - स्थायी 

31 जुलाई, 2023

स्व - प्रतिबिम्ब !

उभरते हैं हृदय कमल से कुछ मौन - -

पंखुड़ियां, लिए अंतर में नव 
मंजरियाँ, खिलते हैं 
बड़ी मुश्किल 
से अश्रु 
जल में डूबे सुरभित भावनाएं, जिनमें 
होती हैं अनंत गंध मिश्रित कुछ 
कोमल अभिलाषाएं, एक 
ऐसी अनुभूति जो 
जग में फैलाए 
मानवता 
की असीम शीतलता, जो कर जाए - -
भाव विभोर हर एक वक्षस्थल,
जागे आलिंगन की पावन 
भावना, मिट जाएँ 
जहाँ अपने 
पराए 
का चिरकालीन द्वंद, दिव्य सेतु जो 
बांधे नेह बंध, जागे हर मन में 
विनम्रता की सुरभि, हर 
चेहरा लगे स्व -
प्रतिबिम्ब !
* * 
- शांतनु सान्याल 
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29 जुलाई, 2023

जीवन अनुवाद - -

कुछ और भी
हैं बांध्य भूमि, अधखिले जीवन,
बबूल से बिंधे कई झूलते पतंग, तुम्हारे 
व मेरे मध्य छुपा हुआ सामीप्य -
जो आवधिक है शायद जिसे 
अनुभव तो किया जा
सके देखना हो 
कठिन, 
देह से निकल कर सोच कहीं गुम न हो जाए, -
जीवन चाहता है बहुत कुछ जानना, 
महसूस करना, तुम वो गंतव्य 
नहीं जहाँ आवाज़ तो जाए 
मगर दस्तख़त कर, 
यूँ ही लौट आए 
सहसा, 
चाहता है मन सजल मेघ अणु बनना, उन 
कुम्हलाये पंखुड़ियों से है पुरानी
प्रतिबद्धता, भावनाओं का 
अनुबंध, मानवीय -
संधि, मैं नहीं 
चाहता 
किसी तरह भी प्रेम में संधिविग्रह, ये सच है 
की मेरी साँसें अब भी उठती हैं किसी 
के लिए बेचैन हो कर किन्तु वो 
तुम ही हो ये कोई ज़रूरी नहीं,
आँखों के परे जो दर्पण 
है खड़ा एकटक, वो 
कोई नहीं मेरा 
ज़मीर है,
जो दिलाता है याद, करता है हर पल 
जीवन अनुवाद।

--- शांतनु सान्याल  





25 जुलाई, 2023

ख़ूबसूरत भरम - -


मिलो कुछ इस तरह खुल के, कि देर
तक महके दिलों के दरीचे, वो
अपनापन, जिसमें हो
अथाह पवित्र
गहराई !
खिलो कुछ इस तरह दिल से, कि - -
मुरझा के भी रहे ख़ुश्बूदार,
नाज़ुक जज़्बात !
तमाम रास्ते
यकसां
ही नज़र आए जब कभी देखा दिल की
नज़र से, ये बात और थी, कि
ज़माने ने लटकाए रखी
थी मुख़्तलिफ़
तख़्ती !
लेकिन, हमने भी दर किनार किया वो
सभी ख़्याल ए ईमान, इक
इंसानियत के सिवा,
तुम मानो या
न मानो,
इक यही सच्चा धरम है, बाक़ी कुछ भी
नहीं ये जहां, इक ख़ूबसूरत भरम
के सिवा।

* *
- शांतनु सान्याल




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painting  by Ann Mortimer

23 जुलाई, 2023

निर्लज्ज सभासद - -

वही चिर परिचित द्युतसभा, वीभत्स अट्टहास,
पश्चिमान्त से ले कर उत्तर पूर्वान्त,
अंधत्व रहता है यहाँ बारह मास,
भीड़ के चेहरे भिन्न रंगों में
हैं सरोबार, कभी गेरुआ
कभी तीन रंगों में
है वो एकाकार,
भीष्म हो
या धृतराष्ट्र, हर युग में द्रौपदी का ही होता है - -
निर्मम शिकार, अंधत्व और नीरवता के
मध्य मेरुदंड विहीन समाज में
अथक जीने का प्रयास,
वही चिर परिचित
द्युतसभा,
वीभत्स
अट्टहास। इस साम्राज्य की अपनी अलग ही है
विशेषता, कहने को सारा विश्व है अपना
लेकिन पांवों तले कोई ज़मीं नहीं,
दीवारों पर लिखे उपदेश
पलस्तर के संग
उतर गए,
आईना
दूसरों को दिखाने वाले ख़ुद अपना अक्स भूल
गए, वक़्त के साथ विशाल बरगद की
टहनियों से सभी पत्ते निःशब्द
झर गए, बाक़ी रहा सिर्फ़
दोषारोपण का
बकवास,
वही चिर परिचित द्युतसभा, वीभत्स अट्टहास।
- शांतनु सान्याल  

21 जुलाई, 2023

शबनमी अहसास - -

मबहम तीरगी से निकल फिर जिस्म ओ जां
चाहती है, इक चश्म मुसाफ़िरख़ाना,
ख़ुदा के वास्ते न करो यूँ बंद
ज़िन्दगी के रास्ते, कि
मुद्दतों बाद देखी
है हमने
नूर ए आशियाना, कुछ देर सही, रहे रौशन -
चाहतों के बेक़रार जरयां, कुछ पल
और खुला रहे, ख़्वाबों का
शामियाना, फिर
सराब ए
जज़्बात को मिले शबनमी अहसास, फिर - -
ज़िन्दगी में खिले गुल नादिर कि
ज़माना हुआ ख़ुशबू छुपाए
हम बैठे हैं दिल की
गहराइयों में !
* *
- शांतनु सान्याल
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मबहम तीरगी - सघन अँधेरा
चश्म मुसाफ़िरख़ाना - आँखों का सराय
जरयां - बहाव
सराब - मृगजल
नादिर - दुर्लभ


20 जुलाई, 2023

शाप मुक्त - -

वो अहसास जिसमें तू है शामिल
किसी चिरस्थायी ख़ुश्बू की
तरह, वो दग्ध भावना
जिसे तू कर जाए
सजल एक
बूँद -
ओस की तरह, वो अनुभूति काश
पा जाए जीवन, जिसमें हों
तेरी आँखों से झरती
आलोक सुधा
की -
शीतलता, वो अंतर्मन की गहराई
जिसमें हो तेरे प्रणय की
अथाह गहनता, हो
जाएँ जिसके
स्पर्श
से शाप मुक्त, जीवन की समस्त
अज्ञानता - -

* *
- शांतनु सान्याल  



18 जुलाई, 2023

अक्स ए ज़िन्दगी - -

मुख़ातिब हो के भी था वो बहोत दूर, 
दरअसल वक़्त के पास ढलान
नहीं होता, नज़दीकियां
गिरह बन जाती हैं
अपने आप,
जिन्हें
खोलना आसान नहीं होता। चले जा
रहे हैं हम दो सीधी लकीरों में
दूर किसी अज्ञात क्षितिज
रेखा की ओर, हर एक
ख़्वाब की है
अपनी
ही
बेबसी कहीं ज़मीं और कहीं आसमान
नहीं होता। इक सुबह से, दूसरे
सुबह तक, अनगिनत
कहानियों का होता
आया है उदयांत,
कई बार
चाहा
भुला दें गुज़रा हुआ कल लेकिन हर
एक याद मेहमान नहीं होता। 
हज़ार बार टूटा ख़्वाहिशों
का शीशमहल, हर
एक टुकड़े में
थी अक्स
ए ज़िन्दगी,
ज़माना
गुज़र जाए शीशा ए दिल में उतरने
के लिए यूँ ही इश्क़ मेहरबान
नहीं होता।
- शांतनु सान्याल 

16 जुलाई, 2023

भीगा सा एहसास - -

 अपनापन के सिवा कुछ भी नहीं -
हृदि गंधकोषों में, वो सिर्फ़ बिखरना है जाने,

अनाम वो अहसास है लाजवाब
वृन्तों से टूटकर ज़मींन से मिलना है जाने,

क्षण भंगुर है ये ज़िन्दगी, इक बूंद
अनजान  दर्द में, पलकों से गिरना है जाने,

मुंह फेर कर तन्हां जी न सकोगे,
ज़िद्द ठीक नहीं, वक़्त यूँ भी बिसरना है जाने,

मौसम का क्या, बदल जाएगा -
नादाँ दिल ओ मोम, सिर्फ़ पिघलना है जाने,

सीड़ियाँ ग़र हटाली किसी ने तो क्या -
आसमानी नूर, स्वयं यूँ भी उतरना है जाने,

बादलों को है जल्दी, उड़ जाये कहीं भी
आज़ाद निगाहें, हर हाल में बरसना है जाने,

ये आशिक़ी एक दायरे में  महदूद नहीं
मंज़िल दर मज़िल, रात दिन फैलना है जाने।

- - शांतनु सान्याल



  


 
  

12 जुलाई, 2023

निराकार सत्ता - -

तृष्णा व मृगजल के मध्य जीवन, कदाचित 
खोजे शीतल तरु छाया, कुछ प्रणय बूंदें, 
कुछ वास्तविक, कुछ स्वप्निल
माया, उन तुहिन कणों में 
थे छुपे व्यथा कितने 
खिलते पुष्पों को 
ज्ञात नहीं, 
गंध कोषों में भरे फिर भी उसने सुरभित -
भावनाएं, वक्षस्थल में सजाये नभ 
ने अनगिनत ज्योति पुंज;
तमस घन रात्रि ने 
किंचित कहा 
हो धन्यवाद या नहीं, कहना है कठिन, फिर 
भी पुनः पुनः आकाश फैलाये अपनी 
बाहें, वृष्टि वन हों या धू धू 
मरू प्रांतर, उसकी 
प्रतिछाया 
अदृश्य 
होकर भी करे प्रतिपल आलिंगनबद्ध !

- शांतनु सान्याल
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मृगजल - -


तुम चाहे जितना भी चाहने का दम भरो,
मरने मिटने की क़सम खाओ,
सरीसृप से विहग बन न 
पाओगे, ये अंतर्मन 
की बात है,
रंगीन शल्कों से चाहे जितना भी ढक लो तन 
अपना, वो नैसर्गिक आभा ला न 
पाओगे, छद्म आवरण से 
मुक्ति न पा सकोगे,  
मुझे पाने की तुम्हारी चाहतें रुक जाती हैं 
मांस पेशियों, रक्त कणिकाओं तक 
आ कर, वृष्टि छाया के उस पार 
बहती है शुष्क अतृप्त नदी 
कोई, ह्रदय तंतुओं में 
बसते हैं, 
पलाश वन लिए शताब्दियों के प्रज्वलन 
तुम चाहे अनचाहे अनंत मेघ 
बन बरस न पाओगे, थक 
हार के एक दिन, प्रति -
ध्वनि के पथ हो 
निशब्द, सुदूर शून्य में लौट जाओगे, चाह कर 
मुझे अपना न पाओगे, तृषित थे यूँ  भी 
युगों युगों से, मृगतृष्णा में पुनः 
खो जाओगे, लाख कोशिश 
करो लेकिन मुझ से न 
कभी मिल 
पाओगे।
-- शांतनु सान्याल  

11 जुलाई, 2023

शीर्षक विहीन

वो नज़दीकियाँ जो रिश्ते में ढल न सकी,
दोस्ती जो हाथ मिलाने से आगे बढ़
न सकी, वही चेहरे अक्सर
सवाल करते हैं जो
ख़ुद को जवाब
दे न सके,
वो नशा जो वक़्त के पहले ही उतर गया,
मुझे पता ही न चला, ज़िन्दगी की
उधेड़ बुन में यूँ उलझा रहा
मेरा वजूद, और कब
मैं बना एक
सीढ़ी,
और कोई मुझ से होकर ख़ामोश बड़ी -
आसानी से मौसम की तरह
गुज़र गया, वो शख्स
जो करता था
कभी
दावा हमदर्दी या मुहोब्बत का, दरअसल
वही आदमी मुझे पहचान ने से
बड़ी खूबसूरती से मुकर
गया, क़रीब
बहोत
क़रीब, आ कर देखा मेरा शक्ल ज़रूर उसने,
सर हिला कर आगे बढ़ गया - - 
- शांतनु सान्याल   
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09 जुलाई, 2023

शीत दहन - -

सीने के बहोत अंदर उतरती है सघन बरसात,
सुदूर क्षितिज रेखा तक फैला हुआ है एक
हरित प्रदेश, बिंदुओं की तरह बिखरे
पड़े है नन्हें नन्हें पठार, तृण
शीर्ष पर हैं प्रतिबिंबित
कुछ इंद्रधनुषी
बूंद, कुछ
शब्द
विहीन पल हैं सम्मुखीन, तितलियों के परों को
छूना चाहे मन अकस्मात, सीने के बहोत
अंदर उतरती है सघन बरसात। उस
पगडण्डी से हो कर अक्सर
गुज़रती है ज़िन्दगी
जहाँ मेघ छाया
घेर लेती है
माटी
की काया, हज़ार बार जन्म लेता हूँ मैं तुम्हारे
आँख की गहराइयों में, हज़ार बार चाहता
हूँ मृत्यु तुम्हारे पलक की परछाइयों
में, इस अंतहीन मोह की यात्रा
कभी रूकती नहीं, शीत अगन
लिए अंतरतम, जलती
रहती है युगों युगों
तक प्रणय
अगर
की काठ, सीने के बहोत अंदर उतरती है सघन
बरसात।
- शांतनु सान्याल
अगर की लकड़ी - सुगन्धित लकड़ी का नाम

08 जुलाई, 2023

ख़ुश्बूओं की मानिंद - -

फिर तेरी निगाह ए गिरफ़्त है ज़िन्दगी,
फिर चाहता है दिल ख़ुश्बूओं की
मानिंद दूर तलक बिखर
जाना, थक से
चले हैं -
जिस्म ओ जां, इक बेइंतहा भटकाव - -
और लामहदूद ख़्वाहिशें, दिल
चाहता फिर तेरी पलकों
के साए ठहर जाना,
न पूछ मुझ से
किस
तरह से गुज़री है शब तारीक का सफ़र !
हर सांस इक सदी, हर लम्हा
गोया उम्र क़ैद, तुझे खो
कर बहोत मुश्किल
था ज़िन्दगी
का फिर
उभर पाना, फिर चाहता है दिल ख़ुश्बू की
मानिंद दूर तलक बिखर जाना - -
* *
- शांतनु सान्याल
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Danhui-Nai-amazing-summer-flowers-paintings

07 जुलाई, 2023

इब्तदा तो याद नहीं

बदलियाँ बरस कर खो गयीं जाने कहाँ,
अब पुरसुकूं आराम लगे, वादियों
से उठता धुआं गहराए, अब
दिल में थम सा गया
कोहराम लगे,
तिश्नगी-ए-दिल बड़ा बेचैन था, आँखों
के बरसने से पहले ऐ दोस्त भीगी
पलकें, उठतीं गिरतीं बूंदें,
आज ख़ूबसूरत फिर
मखमली ये
शाम लगे,
सूखे फूलों के निशाँ बाक़ी हैं, ज़िन्दगी
बेदाग़ नहीं साहिब, हूँ अजनबी ये
निगाहों का फर्क़ है, वैसे जाना
पहचाना ये गाम लगे ,
चिराग़ों के शहर
में गुम सा
गया कहीं, वो अंधेरों का दोस्त मेरा,
आइना भी सबूत चाहे ये और
बात है,शायद चेहरा मेरा
भी गुमनाम
लगे,
वो ख़त अब तलक है मौजूद, क्या
हुआ तहरीरें मिट गईं जिसकी,
छू लूँ उसे, अहसास मीठा
मीठा, दिल के क़रीब
अब तक वो नाम
लगे, उस
बज़्म में तन्हा बचाता रहा, अपने
साए को बार बार, सनम
परस्तिश, न जाने
और क्या,
बहोत प्यारे वो सभी इलज़ाम
लगे, दीवानगी इतनी की
मरना भी चाहूं, और
कभी जीने की
आरज़ू जागे
इब्तदा
तो याद नहीं, बेखौफ़, बेअसर एक
शिद्दत-ए-अंजाम
लगे।
- शांतनु सान्याल

06 जुलाई, 2023

आख़री किनारा - -

न ज़मीं हद ए नज़र, न दूर तक
कोई आसमां, न कहीं लहरों
का ही निशां, ये कौन
उभरा है मेरी
बंजर
निगाहों से यकायक, ये कौन है
जो मुझे कर चला है, मुझ
से ही जुदा, ये कैसा
अहसास है
जो -
ले जाना चाहे मुझे, बा हमराह -
न जाने किन मंज़िलों की
ओर, कि छूट चले
हैं तमाम
चेहरे
आश्ना ओ ग़ैर, इक अजीब सी
तासीर ए इतराफ़ है मेरे
इर्दगिर्द, ये मसीहाई
कोई लम्स
का है
असर या उसकी मुहोब्बत में - -
ज़िन्दगी ने पा लिया
आख़री किनारा !

* *
- शांतनु सान्याल


05 जुलाई, 2023

बेकरां चाहत - -

अभी तलक, मेरी आँखों में हैं 
तेरी परछाइयाँ, झुलसते 
सहरा में भी है सुकूं 
ओ राहत मुझ 
को, नुक़ता 
नज़र के 
असूल जो भी हों जहान के, 
उजड़ने नहीं देती, यूँ तेरी 
बेकरां चाहत मुझ को,
गिरफ़्त ए गर्दबार 
से भी उभरता 
है जीस्त 
यूँ बार 
बार,
बिखरने नहीं देती हर पल 
तेरी नज़ाकत मुझ को, 
अक्स ए आस्मां 
की तरह है 
मेरी 
वफ़ा, हज़ार धुंध में भी मिटने 
नहीं देती तेरी सदाक़त 
मुझ को। 

* * 
- शांतनु सान्याल 

02 जुलाई, 2023

अन्दाज़ ए महलक - -

न देख फिर मुझे फिर वही 
अन्दाज़ ए महलक 
की नज़र से,
अभी 
अभी उभरा हूँ मैं तबाहकुन 
तूफां के असर से,
दूर तलक हैं 
बिखरे हुए 
दर्द ओ ग़म के क़तरे, फिर 
भी हैं तेरी आंखे न 
जाने क्यूँ इस 
क़दर 
बेख़बर से, ज़रा कुछ देर तो 
सही, सजने दे मजलिस 
ए  सितारा, जिस्म 
ओ जां अभी 
तक हैं 
कुछ तर बतर से - - - - -
* * 
- शांतनु सान्याल  
अन्दाज़ ए महलक - घातक अन्दाज़ 
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/



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