कोहरे की आत्मजा अरण्य नदी, उम्र भर का दर्द समेटे बहती है चट्टानों के
दरमियान, कभी ओझल
कभी आकाशीय
आभा लिए
सीने में,
सरल रेखाओं के हमराह चलना ज़िन्दगी
नहीं, हर चीज़ ग़र दहलीज़ में हो
मय्यसर फिर कुछ भी मज़ा
नहीं जीने में, अंतिम बिंदु
का भय, मिथक से
अधिक कुछ भी
नहीं, जहाँ
रास्ता
ख़त्म हो वहीं समझ लें आसपास दूसरा
रास्ता है विद्यमान, कोहरे की
आत्मजा अरण्य नदी,
उम्र भर का दर्द
समेटे बहती
है चट्टानों
के दरमियान । कभी बारिश में काग़ज़ की
नाव बहा के देखो, हथेलियों में जल
बिंदुओं को सजा के देखो, यक़ीन
मानों हर चीज़ आसान नज़र
आएगी, ये जो उमस भरी
रात है अभी इस पल
देखते देखते यूँ ही
गुज़र जाएगी,
इक हल्की
सी लकीर
जो बहुत
दूर
नज़र आती है वहीं पर कहीं है उजालों
का जन्मस्थान, कोहरे की आत्मजा
अरण्य नदी, उम्र भर का दर्द
समेटे बहती है चट्टानों के
दरमियान ।
- - शांतनु सान्याल
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