शांतनु सान्याल / SHANTANU SANYAL / हिंदी / उर्दू काव्य गुच्छ © It's subject to copyright.
मंगलवार, 31 दिसंबर 2013
कोई ख्वाब अनदेखा - -
तुम भी वही, रस्म ए ज़माना भी
वही, मुझ में भी कोई ख़ास
तब्दीली नहीं, फिर
भी जी चाहता
देखें, कोई
ख्वाब
अनदेखा, इक रास्ता जो गुज़रता
हो ख़ामोश, खिलते दरख्तों
के दरमियां दूर तक,
इक अहसास
जो दे
सके ज़मानत ए हयात, इक - -
मुस्कुराहट जो भर जाए
दिल का ख़ालीपन,
इसके आलावा
और क्या
चाहिए, मुख़्तसर ज़िन्दगी के -
लिए !
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
Foggy-Morning
वही, मुझ में भी कोई ख़ास
तब्दीली नहीं, फिर
भी जी चाहता
देखें, कोई
ख्वाब
अनदेखा, इक रास्ता जो गुज़रता
हो ख़ामोश, खिलते दरख्तों
के दरमियां दूर तक,
इक अहसास
जो दे
सके ज़मानत ए हयात, इक - -
मुस्कुराहट जो भर जाए
दिल का ख़ालीपन,
इसके आलावा
और क्या
चाहिए, मुख़्तसर ज़िन्दगी के -
लिए !
* *
- शांतनु सान्याल
Foggy-Morning
सोमवार, 30 दिसंबर 2013
ज़िन्दगी की मानिंद - -
हर बार, न जाने कौन, आखरी पहर
से पहले, बिखेर जाता है रेत
के महल, हर इक रात,
सुबह से कुछ
पहले, मैं
दोबारा बुनता हूँ तेरी सूनी निगाहों -
में कुछ रेशमी ख्वाब, ख़ुश्बुओं
के महीन धागों से बुने
उन ख्वाबों में हैं
मेरे नाज़ुक
जज़्बात,
ये राज़ ए तख़लीक तुझे मालूम भी
है या नहीं, कहना है मुश्किल,
फिर भी, न जाने क्यूँ
ऐसा लगता है
कि तू है
शामिल, मेरी धड़कनों में ज़िन्दगी
की मानिंद - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
painting by artist Elizabeth Blaylock
से पहले, बिखेर जाता है रेत
के महल, हर इक रात,
सुबह से कुछ
पहले, मैं
दोबारा बुनता हूँ तेरी सूनी निगाहों -
में कुछ रेशमी ख्वाब, ख़ुश्बुओं
के महीन धागों से बुने
उन ख्वाबों में हैं
मेरे नाज़ुक
जज़्बात,
ये राज़ ए तख़लीक तुझे मालूम भी
है या नहीं, कहना है मुश्किल,
फिर भी, न जाने क्यूँ
ऐसा लगता है
कि तू है
शामिल, मेरी धड़कनों में ज़िन्दगी
की मानिंद - -
* *
- शांतनु सान्याल
painting by artist Elizabeth Blaylock
रविवार, 29 दिसंबर 2013
आख़री किनारा - -
न ज़मीं हद ए नज़र, न दूर तक
कोई आसमां, न कहीं लहरों
का ही निशां, ये कौन
उभरा है मेरी
बंजर
निगाहों से यकायक, ये कौन है
जो मुझे कर चला है, मुझ
से ही जुदा, ये कैसा
अहसास है
जो -
ले जाना चाहे मुझे, बाहमराह -
न जाने किन मंज़िलों की
ओर, कि छूट चले
हैं तमाम
चेहरे
आश्ना ओ ग़ैर, इक अजीब सी
तासीर ए इतराफ़ है मेरे
इर्दगिर्द, ये मसीहाई
कोई लम्स
का है
असर या उसकी मुहोब्बत में - -
ज़िन्दगी ने पा लिया
आख़री किनारा !
* *
- शांतनु सान्याल
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art by nancy eckels
कोई आसमां, न कहीं लहरों
का ही निशां, ये कौन
उभरा है मेरी
बंजर
निगाहों से यकायक, ये कौन है
जो मुझे कर चला है, मुझ
से ही जुदा, ये कैसा
अहसास है
जो -
ले जाना चाहे मुझे, बाहमराह -
न जाने किन मंज़िलों की
ओर, कि छूट चले
हैं तमाम
चेहरे
आश्ना ओ ग़ैर, इक अजीब सी
तासीर ए इतराफ़ है मेरे
इर्दगिर्द, ये मसीहाई
कोई लम्स
का है
असर या उसकी मुहोब्बत में - -
ज़िन्दगी ने पा लिया
आख़री किनारा !
* *
- शांतनु सान्याल
art by nancy eckels
शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013
दाँव पे लगा दिया - -
तुम्हारी चाहतों में है कितनी सदाक़त
ये सिर्फ़ तुम्हें है ख़बर, हमने तो
ज़िन्दगी यूँ ही दाँव पे
लगा दिया, हर
मोड़ पर
हिसाब ए मंज़िल आसां नहीं, तुम्हें - -
इसलिए दिल में मुस्तक़ल तौर
पे बसा लिया, वो हँसते हैं
मेरी दीवानगी पे
अक्सर !
गोया हमने वस्त सहरा कोई गुलिस्तां
सजा लिया, ख़ानाबदोश थे इक
मुद्दत से मेरे जज़्बात, जो
तुम्हें देखा भूल गए
सभी रस्ते,
छोड़
दिया ताक़ीब ए क़ाफ़िला, आख़िर में
हमने, तुम्हारी आँखों में कहीं
इक घर बना लिया, हमने
तो ज़िन्दगी यूँ ही
दाँव पे लगा
दिया -
* *
- शांतनु सान्याल
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art by derek m
ये सिर्फ़ तुम्हें है ख़बर, हमने तो
ज़िन्दगी यूँ ही दाँव पे
लगा दिया, हर
मोड़ पर
हिसाब ए मंज़िल आसां नहीं, तुम्हें - -
इसलिए दिल में मुस्तक़ल तौर
पे बसा लिया, वो हँसते हैं
मेरी दीवानगी पे
अक्सर !
गोया हमने वस्त सहरा कोई गुलिस्तां
सजा लिया, ख़ानाबदोश थे इक
मुद्दत से मेरे जज़्बात, जो
तुम्हें देखा भूल गए
सभी रस्ते,
छोड़
दिया ताक़ीब ए क़ाफ़िला, आख़िर में
हमने, तुम्हारी आँखों में कहीं
इक घर बना लिया, हमने
तो ज़िन्दगी यूँ ही
दाँव पे लगा
दिया -
* *
- शांतनु सान्याल
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art by derek m
गुरुवार, 26 दिसंबर 2013
किसी ने छुआ था दिल मेरा - -
इक तूफ़ान सा उठा कांपते साहिल में
कहीं, या किसी ने छुआ था दिल
मेरा क़ातिल निगाह से,
मंज़िल थी मेरे
सामने
और मैं भटकता रहा तमाम रात, न
जाने किस ने पुकारा था, मुझे
तिश्नगी भरी चाह से,
उस मुश्ताक़
नज़र
का असर था, या मैंने ली अपने आप
ही अहद ए दहन, न जाने क्यूँ
इक धुआं सा उठता रहा
लौटती हुई बहारों
के राह से,
थकन
भरी उन लम्हात में भी ऐ ज़िन्दगी -
देखा तुम्हें, यूँ ही मुस्कुराते,
सब कुछ लुटा कर
लापरवाह से,
किसी ने
छुआ था दिल मेरा क़ातिल निगाह से,
* *
- शांतनु सान्याल
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modern-art-the-storm-waves
कहीं, या किसी ने छुआ था दिल
मेरा क़ातिल निगाह से,
मंज़िल थी मेरे
सामने
और मैं भटकता रहा तमाम रात, न
जाने किस ने पुकारा था, मुझे
तिश्नगी भरी चाह से,
उस मुश्ताक़
नज़र
का असर था, या मैंने ली अपने आप
ही अहद ए दहन, न जाने क्यूँ
इक धुआं सा उठता रहा
लौटती हुई बहारों
के राह से,
थकन
भरी उन लम्हात में भी ऐ ज़िन्दगी -
देखा तुम्हें, यूँ ही मुस्कुराते,
सब कुछ लुटा कर
लापरवाह से,
किसी ने
छुआ था दिल मेरा क़ातिल निगाह से,
* *
- शांतनु सान्याल
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बुधवार, 25 दिसंबर 2013
स्पर्शानुभूति - -
कोई बहाना चलो खोंजे, मधुमास की
वापसी में है, बहुत देर अभी, इक
अहसास जो भर जाए रिक्त
ह्रदय में हरित स्पर्श,
फिर है मुझे
तेरी
आँखों में कोई तलाश, किसी रास्ते में
यूँ ही चलें दूर तक, शायद कहीं न
कहीं मिल जाए ओस की
बूंदों का लापता
ठिकाना
या
कहीं से इक टुकड़ा सजल मेघ, उड़ -
आए, और कर जाए सिक्त
तृषित अंतरतम, चलो
खेलें बचपन के
विस्मृत
खेल,
फिर बाँध जाओ, स्नेह भरे हाथों से
मेरी आँखों में अपने आँचल की
छाँव, और दो आवाज़
धुंध भरी वादियों
से बार बार,
कुछ
तो जीवन में आये पुनः आवेग तुम्हें
नज़दीक से छूने की - -
* *
- शांतनु सान्याल
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leaf fall
वापसी में है, बहुत देर अभी, इक
अहसास जो भर जाए रिक्त
ह्रदय में हरित स्पर्श,
फिर है मुझे
तेरी
आँखों में कोई तलाश, किसी रास्ते में
यूँ ही चलें दूर तक, शायद कहीं न
कहीं मिल जाए ओस की
बूंदों का लापता
ठिकाना
या
कहीं से इक टुकड़ा सजल मेघ, उड़ -
आए, और कर जाए सिक्त
तृषित अंतरतम, चलो
खेलें बचपन के
विस्मृत
खेल,
फिर बाँध जाओ, स्नेह भरे हाथों से
मेरी आँखों में अपने आँचल की
छाँव, और दो आवाज़
धुंध भरी वादियों
से बार बार,
कुछ
तो जीवन में आये पुनः आवेग तुम्हें
नज़दीक से छूने की - -
* *
- शांतनु सान्याल
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सोमवार, 23 दिसंबर 2013
हम खिलें हर हाल में - -
हम खिलें हर हाल में चाहे जितना भी हो
आसमां अब्र आलूद, राह तकती
है बहारें तेरी इक नज़र के
लिए, ढूंढ़ती है नूर
ए महताब
दर -
ब दर, मंज़िल मंज़िल, सिर्फ़ तेरे दिल -
के रहगुज़र के लिए, ये अँधेरे जो
अक्सर कर जाते हैं परेशां
पल दो पल के लिए,
हैरां न हो ये
ज़रूरी
हैं -
तलाश ए रौशनी के सफ़र के लिए, कहाँ
मय्यसर है, हर चीज़ का दिल के
मुताबिक़ ढलना, ज़िन्दगी
का ये अधूरापन ही
दिखाता है हर
क़दम
ख्वाब रंगीन, और यही बनाते हैं दिलकश
किनारे, जज़्बाती लहर के लिए !
* *
- शांतनु सान्याल
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irises
आसमां अब्र आलूद, राह तकती
है बहारें तेरी इक नज़र के
लिए, ढूंढ़ती है नूर
ए महताब
दर -
ब दर, मंज़िल मंज़िल, सिर्फ़ तेरे दिल -
के रहगुज़र के लिए, ये अँधेरे जो
अक्सर कर जाते हैं परेशां
पल दो पल के लिए,
हैरां न हो ये
ज़रूरी
हैं -
तलाश ए रौशनी के सफ़र के लिए, कहाँ
मय्यसर है, हर चीज़ का दिल के
मुताबिक़ ढलना, ज़िन्दगी
का ये अधूरापन ही
दिखाता है हर
क़दम
ख्वाब रंगीन, और यही बनाते हैं दिलकश
किनारे, जज़्बाती लहर के लिए !
* *
- शांतनु सान्याल
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irises
प्रणय अनुबंध - -
वास्तविकता जो भी हो स्वप्न टूटने के बाद,
बुरा क्या है, कुछ देर तो महके निशि -
पुष्प बिखरने से पहले, फिर
जागे चाँद पर जाने की
अभिलाषा, फिर
पुकारो तुम
मुझे
अपनी आँखों से ज़रा, अशेष गंतव्य हैं अभी
अंतरिक्ष के परे, उस नील प्रवाह में चलो
बह जाएँ कहीं शून्य की तरह, ये
रात लम्बी हो या बहोत
छोटी, कुछ भी
अंतर नहीं,
कोई
अनुराग तो जागे, जो कर जाए देह प्राण को
अंतहीन सुरभित, अनंतकालीन प्रणय
अनुबंध की तरह - -
* *
- शांतनु सान्याल
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craters-of-the-moon-sunflower-estephy-sabin-figueroa
बुरा क्या है, कुछ देर तो महके निशि -
पुष्प बिखरने से पहले, फिर
जागे चाँद पर जाने की
अभिलाषा, फिर
पुकारो तुम
मुझे
अपनी आँखों से ज़रा, अशेष गंतव्य हैं अभी
अंतरिक्ष के परे, उस नील प्रवाह में चलो
बह जाएँ कहीं शून्य की तरह, ये
रात लम्बी हो या बहोत
छोटी, कुछ भी
अंतर नहीं,
कोई
अनुराग तो जागे, जो कर जाए देह प्राण को
अंतहीन सुरभित, अनंतकालीन प्रणय
अनुबंध की तरह - -
* *
- शांतनु सान्याल
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रविवार, 22 दिसंबर 2013
शाप मुक्त - -
वो अहसास जिसमें तू है शामिल
किसी चिरस्थायी ख़ुश्बू की
तरह, वो दग्ध भावना
जिसे तू कर जाए
सजल एक
बूँद -
ओस की तरह, वो अनुभूति काश
पा जाए जीवन, जिसमें हों
तेरी आँखों से झरती
आलोक सुधा
की -
शीतलता, वो अंतर्मन की गहराई
जिसमें हों तेरे प्रणय की
अथाह गहनता, हो
जाएँ जिसके
स्पर्श
से शाप मुक्त, जीवन की समस्त
अज्ञानता - -
* *
- शांतनु सान्याल
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the beauty of magnolia
किसी चिरस्थायी ख़ुश्बू की
तरह, वो दग्ध भावना
जिसे तू कर जाए
सजल एक
बूँद -
ओस की तरह, वो अनुभूति काश
पा जाए जीवन, जिसमें हों
तेरी आँखों से झरती
आलोक सुधा
की -
शीतलता, वो अंतर्मन की गहराई
जिसमें हों तेरे प्रणय की
अथाह गहनता, हो
जाएँ जिसके
स्पर्श
से शाप मुक्त, जीवन की समस्त
अज्ञानता - -
* *
- शांतनु सान्याल
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the beauty of magnolia
शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013
आत्मीयता की ऊष्मा - -
उस शून्य में जब, सब कुछ खोना है
एक दिन, वो प्रतिध्वनि जो
नहीं लौटती पुष्पित
घाटियों को
छू कर,
एक अंतहीन यात्रा, जिसका कोई -
अंतिम बिंदु नहीं, वो अनुबंध
जो अदृश्य हो कर भी
चले परछाई की
तरह,
एक उड़ान जो ले जाए दिगंत रेखा
के उस पार, कहना है मुश्किल
कि बिहान तब तक
प्रतीक्षा कर भी
पाए या
नहीं, फिर भी जीवन यात्रा रूकती
नहीं, तुम और मैं, सह यात्री
हैं ये कुछ कम तो नहीं,
कुछ दूर ही सही,
इस धुंध
भरी राहों में आत्मीयता की ऊष्मा
कुछ पल तो मिले - -
* *
- शांतनु सान्याल
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pink beauty 1
एक दिन, वो प्रतिध्वनि जो
नहीं लौटती पुष्पित
घाटियों को
छू कर,
एक अंतहीन यात्रा, जिसका कोई -
अंतिम बिंदु नहीं, वो अनुबंध
जो अदृश्य हो कर भी
चले परछाई की
तरह,
एक उड़ान जो ले जाए दिगंत रेखा
के उस पार, कहना है मुश्किल
कि बिहान तब तक
प्रतीक्षा कर भी
पाए या
नहीं, फिर भी जीवन यात्रा रूकती
नहीं, तुम और मैं, सह यात्री
हैं ये कुछ कम तो नहीं,
कुछ दूर ही सही,
इस धुंध
भरी राहों में आत्मीयता की ऊष्मा
कुछ पल तो मिले - -
* *
- शांतनु सान्याल
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pink beauty 1
इक क़रारदार - -
वक़्त की अपनी है रस्म वसूली, बचना
आसां नहीं, चेहरे ओ आईने के
दरमियां थे जो क़रारदार,
उभरते झुर्रियों ने
उसे तोड़
दिया,
न तुम हो जवाबदेह, न कोई सवाल हैं --
बाक़ी मेरे पास, इक ख़ामोशी !
जो न कहते हुए कह -
जाए, अफ़साना
ए ज़िन्दगी,
ग़लत
था लिफ़ाफ़े पर लिखा पता या किसी ने -
पढ़ कर ख़त यूँ ही लौटा दिया, नहीं
देखा मुद्दतों से बोगनविलिया
को संवरते, शायद
उसने इस राह
से अब
गुज़रना तक छोड़ दिया,चेहरे ओ आईने-
के दरमियां थे जो क़रारदार,उभरते
झुर्रियों ने उसे तोड़
दिया,
* *
- शांतनु सान्याल
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artist J Licsko
आसां नहीं, चेहरे ओ आईने के
दरमियां थे जो क़रारदार,
उभरते झुर्रियों ने
उसे तोड़
दिया,
न तुम हो जवाबदेह, न कोई सवाल हैं --
बाक़ी मेरे पास, इक ख़ामोशी !
जो न कहते हुए कह -
जाए, अफ़साना
ए ज़िन्दगी,
ग़लत
था लिफ़ाफ़े पर लिखा पता या किसी ने -
पढ़ कर ख़त यूँ ही लौटा दिया, नहीं
देखा मुद्दतों से बोगनविलिया
को संवरते, शायद
उसने इस राह
से अब
गुज़रना तक छोड़ दिया,चेहरे ओ आईने-
के दरमियां थे जो क़रारदार,उभरते
झुर्रियों ने उसे तोड़
दिया,
* *
- शांतनु सान्याल
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artist J Licsko
गुरुवार, 19 दिसंबर 2013
कभी तो आ मेरी ज़िन्दगी में - -
कभी तो आ मेरी ज़िन्दगी में अबाध -
पहाड़ी नदी की तरह, कि है मेरा
वजूद बेक़रार, मुक्कमल
बिखरने के लिए,
धुंध में डूबे
रहें दूर
तक, दुनिया के तमाम सरहद, कभी -
तो आ मेरी ज़िन्दगी में परिन्दा
ए मुहाजिर की तरह, कि
है मेरी मुहोब्बत ज़िंदा
तुझ पे सिर्फ़
मिटने
के लिए, उठे कहीं शोले ए आतिश - -
फ़िशां, या हो बुहरान ज़माने
के सीने में, कभी तो आ
मेरी ज़िन्दगी
में किसी
दुआ ख़ैर की तरह, है बेताब दिल - -
मेरा इश्क़ में, यूँ ही ख़ामोश
सुलगने के
लिए !
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by adriano manocchia
पहाड़ी नदी की तरह, कि है मेरा
वजूद बेक़रार, मुक्कमल
बिखरने के लिए,
धुंध में डूबे
रहें दूर
तक, दुनिया के तमाम सरहद, कभी -
तो आ मेरी ज़िन्दगी में परिन्दा
ए मुहाजिर की तरह, कि
है मेरी मुहोब्बत ज़िंदा
तुझ पे सिर्फ़
मिटने
के लिए, उठे कहीं शोले ए आतिश - -
फ़िशां, या हो बुहरान ज़माने
के सीने में, कभी तो आ
मेरी ज़िन्दगी
में किसी
दुआ ख़ैर की तरह, है बेताब दिल - -
मेरा इश्क़ में, यूँ ही ख़ामोश
सुलगने के
लिए !
* *
- शांतनु सान्याल
art by adriano manocchia
बुधवार, 18 दिसंबर 2013
फिर कभी सही - -
बहोत मुश्किल है, पाना इस भीड़ में
पल दो पल का सुकूं, हर सिम्त
इक रक़ाबत, हर तरफ
इक अजीब सी
बेचैनी,
हर चेहरे में है गोया ग़िलाफ़ ए जुनूं,
न ले अहद, इन परछाइयों में
कहीं, कि ये दरख़्त भी
लगते है जैसे
रूह परेशां,
दिल चाहता तो है, कि खोल दे बंद -
पंखुड़ियों को हौले हौले, लेकिन
न जाने क्यूँ है आज ये
मौसम भी कुछ
बदगुमां,
न झर जाएँ कहीं ये नाज़ुक, वरक़
ए जज़्बात, रात ढलने से पहले,
कुछ तूफ़ानी सा लगे है
फिर ये आसमां,
न चाँद का
पता,
नहीं सितारों की चहल पहल दूर - -
तक, आज रहने भी दे मेरे
हमनशीं, शबनम में
भीगने की आरज़ू
बेइंतहा !
* *
- शांतनु सान्याल
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Painting by Elaine Plesser
पल दो पल का सुकूं, हर सिम्त
इक रक़ाबत, हर तरफ
इक अजीब सी
बेचैनी,
हर चेहरे में है गोया ग़िलाफ़ ए जुनूं,
न ले अहद, इन परछाइयों में
कहीं, कि ये दरख़्त भी
लगते है जैसे
रूह परेशां,
दिल चाहता तो है, कि खोल दे बंद -
पंखुड़ियों को हौले हौले, लेकिन
न जाने क्यूँ है आज ये
मौसम भी कुछ
बदगुमां,
न झर जाएँ कहीं ये नाज़ुक, वरक़
ए जज़्बात, रात ढलने से पहले,
कुछ तूफ़ानी सा लगे है
फिर ये आसमां,
न चाँद का
पता,
नहीं सितारों की चहल पहल दूर - -
तक, आज रहने भी दे मेरे
हमनशीं, शबनम में
भीगने की आरज़ू
बेइंतहा !
* *
- शांतनु सान्याल
Painting by Elaine Plesser
सोमवार, 16 दिसंबर 2013
राज़ ए निगाह - -
नज़दीकियों के दरमियां मौजूद इक
ख़ामोशी, बुझती शमा से वो
उभरता धुआँ, झुकी
निगाहों से बूंद
बूंद - -
बिखरती वो मख़मली रौशनी, इक -
पुरजोश दायरा, या उतरने को
है ज़मीं पर मजलिस ए
सितारा, लहरों में
है मरमोज़
बेकली,
या बेक़रार सा है टूटने को दिल का -
किनारा, न जाने क्या है, उसके
दिल में पिन्हां, इक थमी
सी बरसात या बहने
को है ये शहर
सारा !
कहना है बहोत मुश्किल तासीर ए -
इश्क़, इक साँस में बहिश्त !
इक नज़र में उसकी है
छुपी अनगिनत
नेमतों की
धारा।
* *
- शांतनु सान्याल
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Artist - Barbara Haviland
ख़ामोशी, बुझती शमा से वो
उभरता धुआँ, झुकी
निगाहों से बूंद
बूंद - -
बिखरती वो मख़मली रौशनी, इक -
पुरजोश दायरा, या उतरने को
है ज़मीं पर मजलिस ए
सितारा, लहरों में
है मरमोज़
बेकली,
या बेक़रार सा है टूटने को दिल का -
किनारा, न जाने क्या है, उसके
दिल में पिन्हां, इक थमी
सी बरसात या बहने
को है ये शहर
सारा !
कहना है बहोत मुश्किल तासीर ए -
इश्क़, इक साँस में बहिश्त !
इक नज़र में उसकी है
छुपी अनगिनत
नेमतों की
धारा।
* *
- शांतनु सान्याल
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Artist - Barbara Haviland
शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013
फ़लसफ़ा ए दीन दुनिया - -
वो नज़दीकियाँ इक अहसास ए राहत थीं,
जैसे शाम की बारिश के बाद, ज़रा
सी ज़िन्दगी मिले कहीं तपते
रेगिस्तां को अचानक,
मुरझाए गुल को
जैसे क़रार
आए
आधी रात के बाद, कि दिल की परतों पे
गिरे ओस, बूंद बूंद, वो तेरा इश्क़
था, या इब्तलाह रस्मी, जो
भी हो, उन निगाहों में
हमने दोनों जहां
पा लिया,
अब
किसे है ग़ैर हक़ीक़ी ख्वाहिश, उन लम्हों
में हमने जाना ज़िन्दगी की बेशुमार
ख़ूबसूरती, उन लम्हों में हमने
छोड़ दी वो तमाम उलझे
हुए, फ़लसफ़ा ए
दीन दुनिया !
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
A Sigh of Blooms - - by susan m
जैसे शाम की बारिश के बाद, ज़रा
सी ज़िन्दगी मिले कहीं तपते
रेगिस्तां को अचानक,
मुरझाए गुल को
जैसे क़रार
आए
आधी रात के बाद, कि दिल की परतों पे
गिरे ओस, बूंद बूंद, वो तेरा इश्क़
था, या इब्तलाह रस्मी, जो
भी हो, उन निगाहों में
हमने दोनों जहां
पा लिया,
अब
किसे है ग़ैर हक़ीक़ी ख्वाहिश, उन लम्हों
में हमने जाना ज़िन्दगी की बेशुमार
ख़ूबसूरती, उन लम्हों में हमने
छोड़ दी वो तमाम उलझे
हुए, फ़लसफ़ा ए
दीन दुनिया !
* *
- शांतनु सान्याल
A Sigh of Blooms - - by susan m
गुरुवार, 12 दिसंबर 2013
हद ए नज़र - -
हद ए नज़र से आगे, क्या है किसे ख़बर,
तू है मुख़ातिब जो मेरे, अब रूह ए
आसमानी से क्या लेना, न
है किसी मंज़िल की
तलाश, न ही
ख्वाहिश
अनबुझी, तेरी इक निगाह के आगे अब
नादीद मेहरबानी से क्या लेना, उठे
फिर न कहीं कोई तूफ़ान, इक
अजीब सी ख़ामोशी है -
ग़ालिब, मरकज़
ए शहर में,
अब जो
भी हो अंजाम, अब ज़माने की परेशानी
से क्या लेना - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
The Legend of the Willow
तू है मुख़ातिब जो मेरे, अब रूह ए
आसमानी से क्या लेना, न
है किसी मंज़िल की
तलाश, न ही
ख्वाहिश
अनबुझी, तेरी इक निगाह के आगे अब
नादीद मेहरबानी से क्या लेना, उठे
फिर न कहीं कोई तूफ़ान, इक
अजीब सी ख़ामोशी है -
ग़ालिब, मरकज़
ए शहर में,
अब जो
भी हो अंजाम, अब ज़माने की परेशानी
से क्या लेना - -
* *
- शांतनु सान्याल
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The Legend of the Willow
बुधवार, 11 दिसंबर 2013
तमाम रात - -
हर सिम्त गोया धुंध के बादल और
ज़िन्दगी दूर, डूबती वादी की
तरह नज़र आई, तेरे
लौट जाने के
बाद,
तमाम रात, हर तरफ छायी रही -
इक अंतहीन तन्हाई, न ही
चाँद, न सितारे, न ही
गुल ए शबाना दे
पाए, हमें
इक
पल राहत ए हयात, जिस्म ओ जां
जलते रहे ख़ामोश, दम ब दम
तेरे लौट जाने के बाद,
तमाम रात ! तू
था कोई रूह -
मसीहा
या -
कोई ख़ूबसूरत क़ातिल नज़र, न -
कोई धुआं सा उठा जिगर
से, न बहे निगाहों से
क़तरा अश्क,
फिर भी
बहोत
था
मुश्किल दर्द से उभरना, तेरे लौट
जाने बाद, तमाम रात,
* *
- शांतनु सान्याल
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art by donna standerwick
ज़िन्दगी दूर, डूबती वादी की
तरह नज़र आई, तेरे
लौट जाने के
बाद,
तमाम रात, हर तरफ छायी रही -
इक अंतहीन तन्हाई, न ही
चाँद, न सितारे, न ही
गुल ए शबाना दे
पाए, हमें
इक
पल राहत ए हयात, जिस्म ओ जां
जलते रहे ख़ामोश, दम ब दम
तेरे लौट जाने के बाद,
तमाम रात ! तू
था कोई रूह -
मसीहा
या -
कोई ख़ूबसूरत क़ातिल नज़र, न -
कोई धुआं सा उठा जिगर
से, न बहे निगाहों से
क़तरा अश्क,
फिर भी
बहोत
था
मुश्किल दर्द से उभरना, तेरे लौट
जाने बाद, तमाम रात,
* *
- शांतनु सान्याल
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art by donna standerwick
कोई ख्वाब बंजारा - -
मुड़ के अब देखने से हासिल कुछ भी नहीं,
कहाँ रुकता है किसी के लिए मौसम
ए बहार, न बाँध इस क़दर
दिल की गिरह कि
साँस लेना भी
हो जाए
मुश्किल, कुछ तो जगह चाहिए अहाते में
इक मुश्त रौशनी के लिए, कि अध
खिले फूलों को, पूरी तरह से
खिलने का इक मौक़ा
तो मिले, इस
मोड़ पे
तू ही अकेला राही नहीं ऐ दोस्त, किसे - -
ख़बर कहीं से, फिर कोई कारवां
ए ज़िन्दगी आ मिले, कोई
ख्वाब बंजारा, कोई
ढूँढ़ता किनारा,
अचानक
फिर तेरी निगाहों में भर जाए आस की
बूंदें, दरिया ए ज़िन्दगी नहीं सूखती
बादलों के फ़रेब से, शर्त बस
इतनी है, कि इंतज़ार
ए सावन न जाए
सूख - -
* *
- शांतनु सान्याल
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Paintings by Miki de Goodaboom
कहाँ रुकता है किसी के लिए मौसम
ए बहार, न बाँध इस क़दर
दिल की गिरह कि
साँस लेना भी
हो जाए
मुश्किल, कुछ तो जगह चाहिए अहाते में
इक मुश्त रौशनी के लिए, कि अध
खिले फूलों को, पूरी तरह से
खिलने का इक मौक़ा
तो मिले, इस
मोड़ पे
तू ही अकेला राही नहीं ऐ दोस्त, किसे - -
ख़बर कहीं से, फिर कोई कारवां
ए ज़िन्दगी आ मिले, कोई
ख्वाब बंजारा, कोई
ढूँढ़ता किनारा,
अचानक
फिर तेरी निगाहों में भर जाए आस की
बूंदें, दरिया ए ज़िन्दगी नहीं सूखती
बादलों के फ़रेब से, शर्त बस
इतनी है, कि इंतज़ार
ए सावन न जाए
सूख - -
* *
- शांतनु सान्याल
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ख़ुली किताब की मानिंद - -
ख़ुली किताब की मानिंद, हमने अपना
वजूद रख दिया दर मुक़ाबिल
तुम्हारे, अब नुक़ता
नज़र की बात
है काश
बता देते तुम, क्या है फ़ैसला दिल में -
तुम्हारे, कोई भी मुकम्मल नहीं
इस जहान में, कुछ न कुछ
तो कमी रहती है,
हर एक
इंसान में, न कर तलाश बेइंतहा ख़ुशी
के लिए, कि ये वो तितली है, जो
छूते ही उड़ जाए, पलक
झपकते, किसी
और ही
महकते गुलिस्तान में, न देख मुझे यूँ
हैरत भरी नज़र से, अभी तलक
तुमने तो पलटा ही नहीं,
एक भी सफ़ह्
ज़िन्दगी
का, सरसरी नज़र से न कर अन्दाज़ -
दिल की गहराइयों का - -
* *
- शांतनु सान्याल
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art by kenstin frank
वजूद रख दिया दर मुक़ाबिल
तुम्हारे, अब नुक़ता
नज़र की बात
है काश
बता देते तुम, क्या है फ़ैसला दिल में -
तुम्हारे, कोई भी मुकम्मल नहीं
इस जहान में, कुछ न कुछ
तो कमी रहती है,
हर एक
इंसान में, न कर तलाश बेइंतहा ख़ुशी
के लिए, कि ये वो तितली है, जो
छूते ही उड़ जाए, पलक
झपकते, किसी
और ही
महकते गुलिस्तान में, न देख मुझे यूँ
हैरत भरी नज़र से, अभी तलक
तुमने तो पलटा ही नहीं,
एक भी सफ़ह्
ज़िन्दगी
का, सरसरी नज़र से न कर अन्दाज़ -
दिल की गहराइयों का - -
* *
- शांतनु सान्याल
art by kenstin frank
मंगलवार, 10 दिसंबर 2013
न जाने कहाँ थे हम - -
वो चाँद रात थी या कोहरे से उभरती कोई
आग़ाज़ ए सुबह, हमें कुछ भी याद
नहीं, ज़मी थी ठहरी हुई या
आसमां था गर्दिश -
बदोन, हमें
कुछ भी ख़बर नहीं, कोई था हमारे वजूद
में इस क़दर शामिल कि, हमें ख़ुद
का पता नहीं, इक बहाव का
आलम बेलगाम दूर
तक, और हम
खो चले
थे किसी की निगाहों में रफ़ता रफ़ता - -
कब थमी शबनमी चाँदनी, और
कब उठी सितारों की
महफ़िल, हमें
कुछ भी
इल्म नहीं, कि हम न थे गुज़िश्ता रात - -
तेरी बज़्म में ए दुनिया वालों !
* *
- शांतनु सान्याल
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art by p_derecichei
आग़ाज़ ए सुबह, हमें कुछ भी याद
नहीं, ज़मी थी ठहरी हुई या
आसमां था गर्दिश -
बदोन, हमें
कुछ भी ख़बर नहीं, कोई था हमारे वजूद
में इस क़दर शामिल कि, हमें ख़ुद
का पता नहीं, इक बहाव का
आलम बेलगाम दूर
तक, और हम
खो चले
थे किसी की निगाहों में रफ़ता रफ़ता - -
कब थमी शबनमी चाँदनी, और
कब उठी सितारों की
महफ़िल, हमें
कुछ भी
इल्म नहीं, कि हम न थे गुज़िश्ता रात - -
तेरी बज़्म में ए दुनिया वालों !
* *
- शांतनु सान्याल
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art by p_derecichei
सोमवार, 9 दिसंबर 2013
कोई शिकायत नहीं - -
फिर अंधेरों से निकल कर देखा है, तुझे
ऐ ज़िन्दगी इक नए अंदाज़ से,
किसी का यक़ीं कहाँ तक
मुमकिन, हमसाया
भी गुज़र जाए
कई बार,
अजनबी की तरह बहोत नज़दीक, यूँही
आसपास से, फिर भी ज़िन्दगी को
है हर हाल में चलते जाना,
इसी अंतहीन सफ़र
में हैं कहीं
सायादार दरख़्त, और कहीं उभरते ठूँठ
भी, कहीं फूलों की पगडंडियां तो
कहीं बिखरे हुए अनजाने
काँटों भरे रास्ते,
कभी तेरी
मुहोब्बत ले जाए मुझे रौशनी के बहाव
में, कभी तू रख जाए मुझे यूँ ही
ख़ारिज़ ए अहसास, किसी
उफनती नदी के
कटाव में,
फिर भी कोई शिकायत नहीं ए ज़िन्दगी
तुझसे - -
* *
- शांतनु सान्याल
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passionate moment 1
ऐ ज़िन्दगी इक नए अंदाज़ से,
किसी का यक़ीं कहाँ तक
मुमकिन, हमसाया
भी गुज़र जाए
कई बार,
अजनबी की तरह बहोत नज़दीक, यूँही
आसपास से, फिर भी ज़िन्दगी को
है हर हाल में चलते जाना,
इसी अंतहीन सफ़र
में हैं कहीं
सायादार दरख़्त, और कहीं उभरते ठूँठ
भी, कहीं फूलों की पगडंडियां तो
कहीं बिखरे हुए अनजाने
काँटों भरे रास्ते,
कभी तेरी
मुहोब्बत ले जाए मुझे रौशनी के बहाव
में, कभी तू रख जाए मुझे यूँ ही
ख़ारिज़ ए अहसास, किसी
उफनती नदी के
कटाव में,
फिर भी कोई शिकायत नहीं ए ज़िन्दगी
तुझसे - -
* *
- शांतनु सान्याल
passionate moment 1
शनिवार, 7 दिसंबर 2013
सुबह की नाज़ुक धूप - -
महकी महकी सी, इस सुबह की नाज़ुक
धूप में है शामिल तू कहीं, आईने
के मनुहार में लिपटी, मेरे
अक्स की गहराइयों
में है गुम तू
कहीं - -
खुली इत्रदान पूछती है अक्सर मुझसे -
कौन है वो ख़ूबसूरत अहसास, जो
मुझसे पहले है, घुला घुला सा
तेरे जिस्म ओ जां में
बड़ी शिद्दत से -
इस क़दर !
ये तेरी मुहोब्बत की है इन्तहां या मेरी
ज़िन्दगी के मानी है तेरी आरज़ू,
कुछ भी हो सकते हैं दर
अमल ए ज़माना,
लेकिन ये
सच है,
कि तू है दूर तक मशमूल मेरी रूह की -
गहराइयों में कही, पुर असर
अंदाज़ में मौजूद - -
* *
- शांतनु सान्याल
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a piece of light
धूप में है शामिल तू कहीं, आईने
के मनुहार में लिपटी, मेरे
अक्स की गहराइयों
में है गुम तू
कहीं - -
खुली इत्रदान पूछती है अक्सर मुझसे -
कौन है वो ख़ूबसूरत अहसास, जो
मुझसे पहले है, घुला घुला सा
तेरे जिस्म ओ जां में
बड़ी शिद्दत से -
इस क़दर !
ये तेरी मुहोब्बत की है इन्तहां या मेरी
ज़िन्दगी के मानी है तेरी आरज़ू,
कुछ भी हो सकते हैं दर
अमल ए ज़माना,
लेकिन ये
सच है,
कि तू है दूर तक मशमूल मेरी रूह की -
गहराइयों में कही, पुर असर
अंदाज़ में मौजूद - -
* *
- शांतनु सान्याल
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शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013
अंदाज़ ए ख़ुदा हाफ़िज़ - -
फिर तेरा अंदाज़ ए ख़ुदा हाफ़िज़, फिर
मेरा क़तरा क़तरा बिखर जाना,
फिर तेरी नज़रों में उस
मोड़ की रौशनी
फिर शौक़
ए सैलाब का धीरे धीरे उतर जाना, इस
किनाराकशी में हैं न जाने ख़म
कितने, कभी डूबता संग
ए साहिल ये ज़िन्दगी,
कभी तेरी आँखों
में, मेरे
अक्स का यूँ ही अचानक उभर आना, -
इक अजीब सी है कशिश तेरी
चाहत में ऐ हमनशीं, कभी
जज़्बा ए क़यामत !
कभी मेरी
तक़दीर का, तेरी हथेलियों में मेहँदी - -
की तरह संवर जाना, फिर तेरा
अंदाज़ ए ख़ुदा हाफ़िज़,
फिर मेरा क़तरा
क़तरा बिखर
जाना - -
* *
- शांतनु सान्याल
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Chinese Artists, Abstract Paintings,
मेरा क़तरा क़तरा बिखर जाना,
फिर तेरी नज़रों में उस
मोड़ की रौशनी
फिर शौक़
ए सैलाब का धीरे धीरे उतर जाना, इस
किनाराकशी में हैं न जाने ख़म
कितने, कभी डूबता संग
ए साहिल ये ज़िन्दगी,
कभी तेरी आँखों
में, मेरे
अक्स का यूँ ही अचानक उभर आना, -
इक अजीब सी है कशिश तेरी
चाहत में ऐ हमनशीं, कभी
जज़्बा ए क़यामत !
कभी मेरी
तक़दीर का, तेरी हथेलियों में मेहँदी - -
की तरह संवर जाना, फिर तेरा
अंदाज़ ए ख़ुदा हाफ़िज़,
फिर मेरा क़तरा
क़तरा बिखर
जाना - -
* *
- शांतनु सान्याल
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Chinese Artists, Abstract Paintings,
गुरुवार, 5 दिसंबर 2013
हमेशा के लिए - -
न जगाए नींद से कोई मुझे, कि हैं
मेरी आँखें ख्वाब दीदन इस
लम्हा, इस लम्हे से
ज़िन्दगी को
मिलती
है कुछ तो दर्द ए रिहाई, इस पल
में, मैं जी लेता हूँ कुछ उम्र
से ज़ियादा, न जगाए
इस वक़्त कोई
मुझे, कि
हूँ मैं अभी किसी की बाँहों में - -
ख़ुश्बू की मानिंद बिखरा
बिखरा हुआ, किसी
की साँसों में
मिला
है अभी अभी, मुझे अपना पता !
कि अब मैं गुमशुदा रूह
नहीं, न पुकारो मुझे
लौटती हुईं -
आवाज़
ए माज़ी, है गुम मेरा वजूद इस
पल किसी में हमेशा के
लिए - -
* *
- शांतनु सान्याल
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poetry on canvas
मेरी आँखें ख्वाब दीदन इस
लम्हा, इस लम्हे से
ज़िन्दगी को
मिलती
है कुछ तो दर्द ए रिहाई, इस पल
में, मैं जी लेता हूँ कुछ उम्र
से ज़ियादा, न जगाए
इस वक़्त कोई
मुझे, कि
हूँ मैं अभी किसी की बाँहों में - -
ख़ुश्बू की मानिंद बिखरा
बिखरा हुआ, किसी
की साँसों में
मिला
है अभी अभी, मुझे अपना पता !
कि अब मैं गुमशुदा रूह
नहीं, न पुकारो मुझे
लौटती हुईं -
आवाज़
ए माज़ी, है गुम मेरा वजूद इस
पल किसी में हमेशा के
लिए - -
* *
- शांतनु सान्याल
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poetry on canvas
कहीं न कहीं इक दिन - -
आईने का शहर कोई, फिर भी तेरी महफ़िल
लगे बहोत फ़ीकी फ़ीकी, न कहीं कोई
उभरता अक्स देखा, न ही नूर
कोई तिलिस्म आमेज़,
हर चेहरे पे है इक
नक़ली परत,
या कोई
ख़त गुमनाम, हर निगाह गोया दर जुस्तजू -
ढूंढ़ती है ख़ुद का पता, इस मुखौटे के
हुजूम में न जाने क्यूँ, वजूद
भी अपना लगे कुछ
कुछ अजनबी,
ये जहां
है कैसी, न डुबाए पुरसुकून से, न हीं उभारे -
ये ज़िन्दगी ! उड़ते अभ्र हैं, या है तेरी
वो मुहोब्बत, मेरा दिल तलाशे
सायादार इक ज़मीं, न
हो जाएँ इस
चाह में
मेरी हसरतकुन आँखें, इक दिन बंजर कहीं,
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
chinese art 1
लगे बहोत फ़ीकी फ़ीकी, न कहीं कोई
उभरता अक्स देखा, न ही नूर
कोई तिलिस्म आमेज़,
हर चेहरे पे है इक
नक़ली परत,
या कोई
ख़त गुमनाम, हर निगाह गोया दर जुस्तजू -
ढूंढ़ती है ख़ुद का पता, इस मुखौटे के
हुजूम में न जाने क्यूँ, वजूद
भी अपना लगे कुछ
कुछ अजनबी,
ये जहां
है कैसी, न डुबाए पुरसुकून से, न हीं उभारे -
ये ज़िन्दगी ! उड़ते अभ्र हैं, या है तेरी
वो मुहोब्बत, मेरा दिल तलाशे
सायादार इक ज़मीं, न
हो जाएँ इस
चाह में
मेरी हसरतकुन आँखें, इक दिन बंजर कहीं,
* *
- शांतनु सान्याल
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chinese art 1
बुधवार, 4 दिसंबर 2013
सबब इस दीवानगी का - -
ओस की बूंदें थीं या झरे तमाम रात,
ख़मोश निगाहों से दर्द लबरेज़
जज़्बात ! सीने के बहोत
क़रीब हो के भी
कोई, न
छू सका मेरे दिल की बात, बहोत -
चाहा कि कह दूँ , सबब इस
दीवानगी का, लेकिन
तक़ाज़ा ए
इश्क़
और सर्द दहन, हमने ख़ुद ब ख़ुद -
जैसे क़ुबूल किया, अब हश्र
जो भी हो, हमने तो
ज़िन्दगी को
नाज़ुक
मोड़ पे ला, मौज क़िस्मत के यूँ ही
भरोसे छोड़ दिया, वो खड़े
हों गोया, टूटते किनारों
पे रूह मंज़िल की
मानिंद,
कि मंझधार हमने जिस्म ओ जां !
जान बूझ के यूँ क़ुर्बान किया।
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
Beautiful-Lotus-Oil-Paintings-by-Jiang-Debin
ख़मोश निगाहों से दर्द लबरेज़
जज़्बात ! सीने के बहोत
क़रीब हो के भी
कोई, न
छू सका मेरे दिल की बात, बहोत -
चाहा कि कह दूँ , सबब इस
दीवानगी का, लेकिन
तक़ाज़ा ए
इश्क़
और सर्द दहन, हमने ख़ुद ब ख़ुद -
जैसे क़ुबूल किया, अब हश्र
जो भी हो, हमने तो
ज़िन्दगी को
नाज़ुक
मोड़ पे ला, मौज क़िस्मत के यूँ ही
भरोसे छोड़ दिया, वो खड़े
हों गोया, टूटते किनारों
पे रूह मंज़िल की
मानिंद,
कि मंझधार हमने जिस्म ओ जां !
जान बूझ के यूँ क़ुर्बान किया।
* *
- शांतनु सान्याल
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सोमवार, 2 दिसंबर 2013
अँधेरे का सफ़र - -
जो ख़ुद को उजाड़ कर रख दे, इतनी मुहोब्बत
भी ठीक नहीं, अँधेरे का सफ़र इतना
आसां नहीं मेरी जां, शाम से
पहले कुछ रौशनी के
टुकड़े अपने
साथ तो रख लो, न जाने कहाँ दे जाए फ़रेब - -
चाँदनी ! अभ्र वो चाँद के दरमियां,
है क्या राज़ ए पैमां, किसे
ख़बर, बहोत कुछ
नहीं होता
हाथों की लकीरों में लिखा, टूट जाते हैं ख्बाब
बाअज़ औक़ात, निगाहों में ठहरने से
पहले, न कर इतना भी यक़ीं
बुत ए ख़ामोश पर मेरी
जां, कि ये वो शै
है जो - -
कर जाती है असर पोशीदा, सांस रुकने तक
पता ही नहीं चलता, दवा और ज़हर -
शिरीं के असरात - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
old-window-primoz-jenko
भी ठीक नहीं, अँधेरे का सफ़र इतना
आसां नहीं मेरी जां, शाम से
पहले कुछ रौशनी के
टुकड़े अपने
साथ तो रख लो, न जाने कहाँ दे जाए फ़रेब - -
चाँदनी ! अभ्र वो चाँद के दरमियां,
है क्या राज़ ए पैमां, किसे
ख़बर, बहोत कुछ
नहीं होता
हाथों की लकीरों में लिखा, टूट जाते हैं ख्बाब
बाअज़ औक़ात, निगाहों में ठहरने से
पहले, न कर इतना भी यक़ीं
बुत ए ख़ामोश पर मेरी
जां, कि ये वो शै
है जो - -
कर जाती है असर पोशीदा, सांस रुकने तक
पता ही नहीं चलता, दवा और ज़हर -
शिरीं के असरात - -
* *
- शांतनु सान्याल
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रविवार, 1 दिसंबर 2013
न रहो यूँ बेहरफ़ - -
ये ख़ुमार ए नीम शब, यूँ ही गुज़र न जाए कहीं,
न रहो यूँ बेहरफ़, सहमे सहमे, फ़ासलों में तुम
नूर महताब वादियों में यूँ ही ठहर न जाए कहीं,
हम कब से हैं खड़े, अपनी साँसों को थामे हुए -
ये गुलदां ए ज़िन्दगी, यूँ ही बिखर न जाए कहीं,
बंद पलकों में हैं, रुके रुके से सितारों के साए -
मसमूमियत ए इश्क़, यूँ ही उतर न जाए कहीं,
ये ख़ुमार ए नीम शब, यूँ ही गुज़र न जाए कहीं,
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
midnight-blue-victoria-chattopadhyay
न रहो यूँ बेहरफ़, सहमे सहमे, फ़ासलों में तुम
नूर महताब वादियों में यूँ ही ठहर न जाए कहीं,
हम कब से हैं खड़े, अपनी साँसों को थामे हुए -
ये गुलदां ए ज़िन्दगी, यूँ ही बिखर न जाए कहीं,
बंद पलकों में हैं, रुके रुके से सितारों के साए -
मसमूमियत ए इश्क़, यूँ ही उतर न जाए कहीं,
ये ख़ुमार ए नीम शब, यूँ ही गुज़र न जाए कहीं,
* *
- शांतनु सान्याल
midnight-blue-victoria-chattopadhyay
न बुझाओ चश्म शमा - -
न बुझाओ चश्म शमा इतनी जल्दी,
सितारों की महफ़िल में है कुछ
विरानगी अब तलक, न
गिराओ राज़ ए
पर्दा इस
तरह वक़्त से पहले कि गुलों में हो
वहशत बेवजह, अभी तो इक
तवील ख़ुश्बुओं का सफ़र
है बाक़ी, हमने कहाँ
सिखा है अभी
तक इक
मुश्त मुस्कुराना, रहने दो यूँ ही बूंद
बूंद इश्क़ नूर का टपकना, कि
तपते ज़िन्दगी को कुछ
तो संदली अहसास
हो, खुले रहें
कुछ देर
और तुम्हारे निगाहों के दरीचे कि -
ज़िन्दगी महकना चाहती है
आख़री पहर तक यूँ
ही मद्धम मद्धम,
लम्हा लम्हा,
दम ब
दम सुबह होने तलक, न बुझाओ
चश्म शमा इतनी जल्दी,
सितारों की महफ़िल
में है कुछ विरानगी अब तलक - -
* *
- शांतनु सान्याल
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white vase(1)
सितारों की महफ़िल में है कुछ
विरानगी अब तलक, न
गिराओ राज़ ए
पर्दा इस
तरह वक़्त से पहले कि गुलों में हो
वहशत बेवजह, अभी तो इक
तवील ख़ुश्बुओं का सफ़र
है बाक़ी, हमने कहाँ
सिखा है अभी
तक इक
मुश्त मुस्कुराना, रहने दो यूँ ही बूंद
बूंद इश्क़ नूर का टपकना, कि
तपते ज़िन्दगी को कुछ
तो संदली अहसास
हो, खुले रहें
कुछ देर
और तुम्हारे निगाहों के दरीचे कि -
ज़िन्दगी महकना चाहती है
आख़री पहर तक यूँ
ही मद्धम मद्धम,
लम्हा लम्हा,
दम ब
दम सुबह होने तलक, न बुझाओ
चश्म शमा इतनी जल्दी,
सितारों की महफ़िल
में है कुछ विरानगी अब तलक - -
* *
- शांतनु सान्याल
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white vase(1)
शनिवार, 30 नवंबर 2013
इतनी भी बेक़रारी ठीक नहीं - -
बिखरने दे ज़रा और अंधेरे की स्याही,
इतनी भी बेक़रारी ठीक नहीं,
अभी तलक है लिपटी
सी सुनहरी शाम
की रेशमी
चादर,
बेताब नदी के लहरों को कुछ और - -
राहत तो मिले, डूबने दे तपते
हुए सूरज को और ज़रा,
अभी अभी, अहाते
के फूलों में है
कहीं
ख़ुश्बुओं की आहट, अभी अभी तुमने
देखा है मुझे, ख़ुद से चुरा कर
इत्तफ़ाक़न, थमने दे
ज़रा जुम्बिश ए
जज़बात,
जब
रात जाए भीग चाँदनी में मुक्कमल,
तब रखना मेरा वजूद अपनी
आँखों में उम्र भर के
लिए - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
evening glow(1)
इतनी भी बेक़रारी ठीक नहीं,
अभी तलक है लिपटी
सी सुनहरी शाम
की रेशमी
चादर,
बेताब नदी के लहरों को कुछ और - -
राहत तो मिले, डूबने दे तपते
हुए सूरज को और ज़रा,
अभी अभी, अहाते
के फूलों में है
कहीं
ख़ुश्बुओं की आहट, अभी अभी तुमने
देखा है मुझे, ख़ुद से चुरा कर
इत्तफ़ाक़न, थमने दे
ज़रा जुम्बिश ए
जज़बात,
जब
रात जाए भीग चाँदनी में मुक्कमल,
तब रखना मेरा वजूद अपनी
आँखों में उम्र भर के
लिए - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
evening glow(1)
गुरुवार, 28 नवंबर 2013
तुम चाहो तो समेट लो - -
रहने दे मुझे यूँ ही बेतरतीब, बिखरा बिखरा,
हर चीज़ अगर मिल जाए हाथ बढ़ाए,
तो अधूरा सा है ज़िन्दगी का
मज़ा, न कर उम्मीद
से बढ़ कर कोई
ख्वाहिश !
दुनिया की नज़र में पैबंद के मानी जो भी हों,
लेकिन मेरे लिए है वो कोई शफ़ाफ़
आईना, रखता है जो अक्स
मेरा मुक़रर हर दम,
कि लौट आता
हूँ मैं वहीँ
जहाँ से आग़ाज़ ए सफ़र था मेरा, और यही
वजह है जो मुझे फ़िसलने नहीं देता,
बड़ी राहत ओ चैन से मैं घूम
आता हूँ शीशे के राहों
पे चलके तनहा,
चांदनी
तुम चाहो तो समेट लो अपने दामन में पूरा,
मेरे दिल में है अभी तक रौशनी काफ़ी !
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by georgia
हर चीज़ अगर मिल जाए हाथ बढ़ाए,
तो अधूरा सा है ज़िन्दगी का
मज़ा, न कर उम्मीद
से बढ़ कर कोई
ख्वाहिश !
दुनिया की नज़र में पैबंद के मानी जो भी हों,
लेकिन मेरे लिए है वो कोई शफ़ाफ़
आईना, रखता है जो अक्स
मेरा मुक़रर हर दम,
कि लौट आता
हूँ मैं वहीँ
जहाँ से आग़ाज़ ए सफ़र था मेरा, और यही
वजह है जो मुझे फ़िसलने नहीं देता,
बड़ी राहत ओ चैन से मैं घूम
आता हूँ शीशे के राहों
पे चलके तनहा,
चांदनी
तुम चाहो तो समेट लो अपने दामन में पूरा,
मेरे दिल में है अभी तक रौशनी काफ़ी !
* *
- शांतनु सान्याल
art by georgia
मंगलवार, 26 नवंबर 2013
न जाने क्यूँ - -
न जाने क्यूँ, आज भी इक पहेली सी है
तुम्हारी पलकों की परछाई, न
जाने क्यूँ आज भी, जी
चाहता है तुम्हें, यूँही
निष्पलक, बस
देखते रहें,
इक जलता चिराग़ तन्हा और सुदूर -
कोई दरगाह वीरान, न कोई
दरख़्त दूर दूर तक, न
ही पत्थरों में
लिखी
कोई भूली तहरीर,फिर भी न जाने क्यूँ,
ज़िन्दगी सिर्फ़ चाहती है, तुम्हारी
निगाहों में अपना पता
तलाश करना,
वो बूंदें !
जो कभी छलकी थीं पुरनम आँखों से -
तुम्हारे, उन्हीं बूंदों में आज तक
सिमटी सी है ज़िन्दगी
अपनी - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
daisies
तुम्हारी पलकों की परछाई, न
जाने क्यूँ आज भी, जी
चाहता है तुम्हें, यूँही
निष्पलक, बस
देखते रहें,
इक जलता चिराग़ तन्हा और सुदूर -
कोई दरगाह वीरान, न कोई
दरख़्त दूर दूर तक, न
ही पत्थरों में
लिखी
कोई भूली तहरीर,फिर भी न जाने क्यूँ,
ज़िन्दगी सिर्फ़ चाहती है, तुम्हारी
निगाहों में अपना पता
तलाश करना,
वो बूंदें !
जो कभी छलकी थीं पुरनम आँखों से -
तुम्हारे, उन्हीं बूंदों में आज तक
सिमटी सी है ज़िन्दगी
अपनी - -
* *
- शांतनु सान्याल
daisies
सोमवार, 25 नवंबर 2013
इक बेइंतहा तन्हाई - -
हर इक ज़िद्द पे तुम्हारी, ज़िन्दगी ये बेचारी, -
ख़ामोश जां निसार होती रही, कभी वो
ख्वाहिश जिसमें, मेरे ज़ख्मों को
को था सुलगना, कभी वो
चाहत जिसके लिए
निगाहों से
टपके
बुझे अंगारे, वो तुम्हारे दिल की हसरत जिसमें
थीं, दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत अमानत,
वो कोई नादिर शीशा था, या कोई
आईना ए फ़रेब, अक्सर
तन्हा सोचता है
वजूद मेरा,
क्या
चीज़ थी जिसने मुझे दीवानगी के हदों से कहीं
आगे ले गई, जहाँ जिस्म ओ रूह के
दरमियां फ़ासला, महज़ कुछ
लम्हों में हो तक़सीम,
तुम्हारी उनींदी
नाज़ुक
पलकें, और मेरी साँसों के लिए, फ़ैसले की वो
आख़री शब, ये इश्क़ था तुम्हारा या
आज़माइश बा ज़िन्दगी ! अब
जबकि बुझ चुकी है शमा,
इन बिखरे परों
में कहाँ है
मेरा अक्स झुलसा हुआ, और कहाँ है तुम्हारी
निगाहों की संदली साया, कहना आसान
कहाँ, दूर तक है सिर्फ़ धुंध गहराता,
मुसलसल इक बेइंतहा
तन्हाई - -
* *
- शांतनु सान्याल
ख़ामोश जां निसार होती रही, कभी वो
ख्वाहिश जिसमें, मेरे ज़ख्मों को
को था सुलगना, कभी वो
चाहत जिसके लिए
निगाहों से
टपके
बुझे अंगारे, वो तुम्हारे दिल की हसरत जिसमें
थीं, दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत अमानत,
वो कोई नादिर शीशा था, या कोई
आईना ए फ़रेब, अक्सर
तन्हा सोचता है
वजूद मेरा,
क्या
चीज़ थी जिसने मुझे दीवानगी के हदों से कहीं
आगे ले गई, जहाँ जिस्म ओ रूह के
दरमियां फ़ासला, महज़ कुछ
लम्हों में हो तक़सीम,
तुम्हारी उनींदी
नाज़ुक
पलकें, और मेरी साँसों के लिए, फ़ैसले की वो
आख़री शब, ये इश्क़ था तुम्हारा या
आज़माइश बा ज़िन्दगी ! अब
जबकि बुझ चुकी है शमा,
इन बिखरे परों
में कहाँ है
मेरा अक्स झुलसा हुआ, और कहाँ है तुम्हारी
निगाहों की संदली साया, कहना आसान
कहाँ, दूर तक है सिर्फ़ धुंध गहराता,
मुसलसल इक बेइंतहा
तन्हाई - -
* *
- शांतनु सान्याल
रविवार, 17 नवंबर 2013
कुछ और वक़्त लीजिए - -
अभी तो सिर्फ़ देखा है मुझे, चिलमनों
की सरसराहट में कहीं तुमने,
अभी राज़े मुहोब्बत है
बहोत बाक़ी !
न करो अंदाज़ ए बारिश हवाओं के - -
रुख़ से, कहीं रह न जाए दिल
ही दिल में, भीगने की
ख्वाहिश, किसी
मलऊन
सहरा की मानिंद, अभी तो ज़िन्दगी -
का सफ़र है, नुक़ता ए आग़ाज़
पे कहीं, अभी निगाहों
से परे है मेरे
दिल की
ज़मीं, अभी तक राह आतिश, तुमने -
देखा ही नहीं, कुछ और वक़्त
लीजिए ख़ालिस सोने
में बदलने के
लिए !
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by barbara fox 3
की सरसराहट में कहीं तुमने,
अभी राज़े मुहोब्बत है
बहोत बाक़ी !
न करो अंदाज़ ए बारिश हवाओं के - -
रुख़ से, कहीं रह न जाए दिल
ही दिल में, भीगने की
ख्वाहिश, किसी
मलऊन
सहरा की मानिंद, अभी तो ज़िन्दगी -
का सफ़र है, नुक़ता ए आग़ाज़
पे कहीं, अभी निगाहों
से परे है मेरे
दिल की
ज़मीं, अभी तक राह आतिश, तुमने -
देखा ही नहीं, कुछ और वक़्त
लीजिए ख़ालिस सोने
में बदलने के
लिए !
* *
- शांतनु सान्याल
art by barbara fox 3
न जाने क्या था वो - -
उड़ा ले गई हमें कल रात नसीम ए खिज़ां
या कोई अहसास दीवाना, हमें कुछ
भी ख़बर नहीं, तैरते रहे हम
राहे सिफ़र रात भर !
कभी बादलों के
क़रीब,
कभी चाँद के बहोत नज़दीक, न जाने वो
कौन था, जो छाया रहा जिस्म ओ
जां में इस क़दर, हमें कुछ
भी ख़बर नहीं, सिर्फ़
याद रहा इतना
कि उसकी
आँखों
में थी, इक ऐसी तिलस्मानी दुनिया जहाँ
से लौटना नहीं था अपने वश में !
वो इश्क़ था या बाज़ी ए
मर्ग, कहना है
मुश्किल
हर लम्हा इक नयी ज़िन्दगी हर पल - -
जां से गुज़र जाना - -
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
art by janet zeh - -
या कोई अहसास दीवाना, हमें कुछ
भी ख़बर नहीं, तैरते रहे हम
राहे सिफ़र रात भर !
कभी बादलों के
क़रीब,
कभी चाँद के बहोत नज़दीक, न जाने वो
कौन था, जो छाया रहा जिस्म ओ
जां में इस क़दर, हमें कुछ
भी ख़बर नहीं, सिर्फ़
याद रहा इतना
कि उसकी
आँखों
में थी, इक ऐसी तिलस्मानी दुनिया जहाँ
से लौटना नहीं था अपने वश में !
वो इश्क़ था या बाज़ी ए
मर्ग, कहना है
मुश्किल
हर लम्हा इक नयी ज़िन्दगी हर पल - -
जां से गुज़र जाना - -
* *
- शांतनु सान्याल
art by janet zeh - -
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