31 दिसंबर, 2013

spring painting
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कोई ख्वाब अनदेखा - -

तुम भी वही, रस्म ए ज़माना भी
वही, मुझ में भी कोई ख़ास
तब्दीली नहीं, फिर
भी जी चाहता
देखें, कोई
ख्वाब
अनदेखा, इक रास्ता जो गुज़रता
हो ख़ामोश, खिलते दरख्तों
के दरमियां दूर तक,
इक अहसास
जो दे
सके ज़मानत ए हयात, इक - -
मुस्कुराहट जो भर जाए
दिल का ख़ालीपन,
इसके आलावा
और क्या
चाहिए, मुख़्तसर ज़िन्दगी के -
लिए !

* *
- शांतनु सान्याल


30 दिसंबर, 2013

ज़िन्दगी की मानिंद - -

हर बार, न जाने कौन, आखरी पहर
से पहले, बिखेर जाता है रेत
के महल, हर इक रात,
सुबह से कुछ
पहले, मैं
दोबारा बुनता हूँ तेरी सूनी निगाहों -
में कुछ रेशमी ख्वाब, ख़ुश्बुओं
के महीन धागों से बुने
उन ख्वाबों में हैं
मेरे नाज़ुक
जज़्बात,
ये राज़ ए तख़लीक तुझे मालूम भी
है या नहीं, कहना है मुश्किल,
फिर भी, न जाने क्यूँ
ऐसा लगता है
कि तू है
शामिल, मेरी धड़कनों में ज़िन्दगी
की मानिंद - - 
* *
- शांतनु सान्याल

27 दिसंबर, 2013

दाँव पे लगा दिया - -

तुम्हारी चाहतों में है कितनी सदाक़त
ये सिर्फ़ तुम्हें है ख़बर, हमने तो
ज़िन्दगी यूँ ही दाँव पे
लगा दिया, हर
मोड़ पर
हिसाब ए मंज़िल आसां नहीं, तुम्हें - -
इसलिए दिल में मुस्तक़ल तौर
पे बसा लिया, वो हँसते हैं
मेरी दीवानगी पे
अक्सर !
गोया हमने वस्त सहरा कोई गुलिस्तां
सजा लिया, ख़ानाबदोश थे इक
मुद्दत से मेरे जज़्बात, जो
तुम्हें देखा भूल गए
सभी रस्ते,
छोड़
दिया ताक़ीब ए क़ाफ़िला, आख़िर में
हमने, तुम्हारी आँखों में कहीं
इक घर बना लिया, हमने
तो ज़िन्दगी यूँ ही
दाँव पे लगा
दिया -

* *
- शांतनु सान्याल



26 दिसंबर, 2013

किसी ने छुआ था दिल मेरा - -

इक तूफ़ान सा उठा कांपते साहिल में
कहीं, या किसी ने छुआ था दिल
मेरा क़ातिल निगाह से,
मंज़िल थी मेरे
सामने
और मैं भटकता रहा तमाम रात, न
जाने किस ने पुकारा था, मुझे
तिश्नगी भरी चाह से,
उस मुश्ताक़
नज़र
का असर था, या मैंने ली अपने आप
ही अहद ए दहन, न जाने क्यूँ
इक धुआं सा उठता रहा
लौटती हुई बहारों
के राह से,
थकन
भरी उन लम्हात में भी ऐ ज़िन्दगी -
देखा तुम्हें, यूँ ही मुस्कुराते,
सब कुछ लुटा कर
लापरवाह से,
किसी ने
छुआ था दिल मेरा क़ातिल निगाह से,

* *
- शांतनु सान्याल  

23 दिसंबर, 2013

प्रणय अनुबंध - -

वास्तविकता जो भी हो स्वप्न टूटने के बाद,
बुरा क्या है, कुछ देर तो महके निशि -
पुष्प बिखरने से पहले, फिर
जागे चाँद पर जाने की
अभिलाषा, फिर
पुकारो तुम
मुझे
अपनी आँखों से ज़रा, अशेष गंतव्य हैं अभी
अंतरिक्ष के परे, उस नील प्रवाह में चलो
बह जाएँ कहीं शून्य की तरह, ये
रात लम्बी हो या बहोत
छोटी, कुछ भी
अंतर नहीं,
कोई
अनुराग तो जागे, जो कर जाए देह प्राण को
अंतहीन सुरभित, अनंतकालीन प्रणय
अनुबंध की तरह - -

* *
- शांतनु सान्याल





20 दिसंबर, 2013

आत्मीयता की ऊष्मा - -

उस शून्य में जब, सब कुछ खोना है
एक दिन, वो प्रतिध्वनि जो
नहीं लौटती पुष्पित
घाटियों को
छू कर,
एक अंतहीन यात्रा, जिसका कोई -
अंतिम बिंदु नहीं, वो अनुबंध
जो अदृश्य हो कर भी
चले परछाई की
तरह,
एक उड़ान जो ले जाए दिगंत रेखा
के उस पार, कहना है मुश्किल
कि बिहान तब तक
प्रतीक्षा कर भी
पाए या
नहीं, फिर भी जीवन यात्रा रूकती
नहीं, तुम और मैं, सह यात्री
हैं ये कुछ कम तो नहीं,
कुछ दूर ही सही,
इस धुंध
भरी राहों में आत्मीयता की ऊष्मा
कुछ पल तो मिले - -

* *
- शांतनु सान्याल


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इक क़रारदार - -

वक़्त की अपनी है रस्म वसूली, बचना
आसां नहीं, चेहरे ओ आईने के
दरमियां थे जो क़रारदार,
उभरते झुर्रियों ने
उसे तोड़
दिया,
न तुम हो जवाबदेह, न कोई सवाल हैं --
बाक़ी मेरे पास, इक ख़ामोशी !
जो न कहते हुए कह -
जाए, अफ़साना
ए ज़िन्दगी,
ग़लत
था लिफ़ाफ़े पर लिखा पता या किसी ने -
पढ़ कर ख़त यूँ ही लौटा दिया, नहीं
देखा मुद्दतों से बोगनविलिया
को संवरते, शायद
उसने इस राह
से अब
गुज़रना तक छोड़ दिया,चेहरे ओ आईने-
के दरमियां थे जो क़रारदार,उभरते
झुर्रियों ने उसे तोड़
दिया,

* *
- शांतनु सान्याल    


19 दिसंबर, 2013

कभी तो आ मेरी ज़िन्दगी में - -

कभी तो आ मेरी ज़िन्दगी में अबाध -
पहाड़ी नदी की तरह, कि है मेरा
वजूद बेक़रार, मुक्कमल
बिखरने के लिए,
धुंध में डूबे
रहें दूर
तक, दुनिया के तमाम सरहद, कभी -
तो आ मेरी ज़िन्दगी में परिन्दा
ए मुहाजिर की तरह, कि
है मेरी मुहोब्बत ज़िंदा
तुझ पे सिर्फ़
मिटने
के लिए, उठे कहीं शोले ए आतिश - -
फ़िशां, या हो बुहरान ज़माने
के सीने में, कभी तो आ
मेरी ज़िन्दगी
में किसी
दुआ ख़ैर की तरह, है बेताब दिल - -
मेरा इश्क़ में, यूँ ही ख़ामोश
सुलगने के
लिए !

* *
- शांतनु सान्याल


18 दिसंबर, 2013

फिर कभी सही - -

बहोत मुश्किल है, पाना इस भीड़ में
पल दो पल का सुकूं, हर सिम्त
इक रक़ाबत, हर तरफ
इक अजीब सी
बेचैनी,
हर चेहरे में है गोया ग़िलाफ़ ए जुनूं,
न ले अहद, इन परछाइयों में
कहीं, कि ये दरख़्त भी
लगते है जैसे
रूह परेशां,
दिल चाहता तो है, कि खोल दे बंद -
पंखुड़ियों को हौले हौले, लेकिन
न जाने क्यूँ है आज ये
मौसम भी कुछ
बदगुमां,
न झर जाएँ कहीं ये नाज़ुक, वरक़
ए जज़्बात, रात ढलने से पहले,
कुछ तूफ़ानी सा लगे है
फिर ये आसमां,
न चाँद का
पता,
नहीं सितारों की चहल पहल दूर - -
तक, आज रहने भी दे मेरे
हमनशीं, शबनम में
भीगने की आरज़ू
बेइंतहा !

* *
- शांतनु सान्याल


16 दिसंबर, 2013

राज़ ए निगाह - -

नज़दीकियों के दरमियां मौजूद इक
ख़ामोशी, बुझती शमा से वो
उभरता धुआँ, झुकी
निगाहों से बूंद
बूंद - -
बिखरती वो मख़मली रौशनी, इक -
पुरजोश दायरा, या उतरने को
है ज़मीं पर मजलिस ए
सितारा, लहरों में
है मरमोज़
बेकली,
या बेक़रार सा है टूटने को दिल का -
किनारा, न जाने क्या है, उसके
दिल में पिन्हां, इक थमी
सी बरसात या बहने
को है ये शहर
सारा !
कहना है बहोत मुश्किल तासीर ए -
इश्क़, इक साँस में बहिश्त !
इक नज़र में उसकी है
छुपी अनगिनत
नेमतों की
धारा।

* *
- शांतनु सान्याल  




13 दिसंबर, 2013

फ़लसफ़ा ए दीन दुनिया - -

वो नज़दीकियाँ इक अहसास ए राहत थीं,
जैसे शाम की बारिश के बाद, ज़रा
सी ज़िन्दगी मिले कहीं तपते
रेगिस्तां को अचानक,
मुरझाए गुल को
जैसे क़रार
आए
आधी रात के बाद, कि दिल की परतों पे
गिरे ओस, बूंद बूंद, वो तेरा इश्क़
था, या इब्तलाह रस्मी, जो
भी हो, उन निगाहों में
हमने दोनों जहां
पा लिया,
अब
किसे है ग़ैर हक़ीक़ी ख्वाहिश, उन लम्हों
में हमने जाना ज़िन्दगी की बेशुमार
ख़ूबसूरती, उन लम्हों में हमने
छोड़ दी वो तमाम उलझे
हुए, फ़लसफ़ा ए
दीन दुनिया !

* *
- शांतनु सान्याल



12 दिसंबर, 2013

हद ए नज़र - -

हद ए नज़र से आगे, क्या है किसे ख़बर,
तू है मुख़ातिब जो मेरे, अब रूह ए
आसमानी से क्या लेना, न
है किसी मंज़िल की
तलाश, न ही
ख्वाहिश
अनबुझी, तेरी इक निगाह के आगे अब
नादीद मेहरबानी से क्या लेना, उठे
फिर न कहीं कोई तूफ़ान, इक
अजीब सी ख़ामोशी है -
ग़ालिब, मरकज़
ए शहर में,
अब जो
भी हो अंजाम, अब ज़माने की परेशानी
से क्या लेना - -

* *
- शांतनु सान्याल
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11 दिसंबर, 2013

तमाम रात - -

हर सिम्त गोया धुंध के बादल और
ज़िन्दगी दूर, डूबती वादी की
तरह नज़र आई, तेरे
लौट जाने के
बाद,
तमाम रात, हर तरफ छायी रही -
इक अंतहीन तन्हाई, न ही
चाँद, न सितारे, न ही
गुल ए शबाना दे
पाए, हमें
इक
पल राहत ए हयात, जिस्म ओ जां
जलते रहे ख़ामोश, दम ब दम
तेरे लौट जाने के बाद,
तमाम रात ! तू
था कोई रूह -
मसीहा
या -
कोई ख़ूबसूरत क़ातिल नज़र, न -
कोई धुआं सा उठा जिगर
से, न बहे निगाहों से
क़तरा अश्क,
फिर भी
बहोत
था
मुश्किल दर्द से उभरना, तेरे लौट
जाने बाद, तमाम रात,

* *
- शांतनु सान्याल  


कोई ख्वाब बंजारा - -

मुड़ के अब देखने से हासिल कुछ भी नहीं,
कहाँ रुकता है किसी के लिए मौसम
ए बहार, न बाँध इस क़दर
दिल की गिरह कि
साँस लेना भी
हो जाए
मुश्किल, कुछ तो जगह चाहिए अहाते में
इक मुश्त रौशनी के लिए, कि अध
खिले फूलों को, पूरी तरह से
खिलने का इक मौक़ा
तो मिले, इस
मोड़ पे
तू ही अकेला राही नहीं ऐ दोस्त, किसे - -
ख़बर कहीं से, फिर कोई कारवां
ए ज़िन्दगी आ मिले, कोई
ख्वाब बंजारा, कोई
ढूँढ़ता किनारा,
अचानक
फिर तेरी निगाहों में भर जाए आस की
बूंदें, दरिया ए ज़िन्दगी नहीं सूखती
बादलों के फ़रेब से, शर्त बस
इतनी है, कि इंतज़ार
ए सावन न जाए
सूख - -

* *
- शांतनु सान्याल


ख़ुली किताब की मानिंद - -

ख़ुली किताब की मानिंद, हमने अपना
वजूद रख दिया दर मुक़ाबिल
तुम्हारे, अब नुक़ता
नज़र की बात
है काश
बता देते तुम, क्या है फ़ैसला दिल में -
तुम्हारे, कोई भी मुकम्मल नहीं
इस जहान में, कुछ न कुछ
तो कमी रहती है,  
हर एक
इंसान में, न कर तलाश बेइंतहा ख़ुशी
के लिए, कि ये वो तितली है, जो
छूते ही उड़ जाए, पलक
झपकते, किसी
और ही
महकते गुलिस्तान में, न देख मुझे यूँ
हैरत भरी नज़र से, अभी तलक
तुमने तो पलटा ही नहीं,
एक भी सफ़ह्
ज़िन्दगी
का, सरसरी नज़र से न कर अन्दाज़ -
दिल की गहराइयों का - -

* *
- शांतनु सान्याल


09 दिसंबर, 2013

कोई शिकायत नहीं - -

फिर अंधेरों से निकल कर देखा है, तुझे
ऐ ज़िन्दगी इक नए अंदाज़ से,
किसी का यक़ीं कहाँ तक
मुमकिन, हमसाया
भी गुज़र जाए
कई बार,
अजनबी की तरह बहोत नज़दीक, यूँही
आसपास से, फिर भी ज़िन्दगी को
है हर हाल में चलते जाना,
इसी अंतहीन सफ़र
में हैं कहीं
सायादार दरख़्त, और कहीं उभरते ठूँठ
भी, कहीं फूलों की पगडंडियां तो
कहीं बिखरे हुए अनजाने
काँटों भरे रास्ते,
कभी तेरी
मुहोब्बत ले जाए मुझे रौशनी के बहाव
में, कभी तू रख जाए मुझे यूँ ही
ख़ारिज़ ए अहसास, किसी
उफनती नदी के
कटाव में,
फिर भी कोई शिकायत नहीं ए ज़िन्दगी
तुझसे - -

* *
- शांतनु सान्याल
 


07 दिसंबर, 2013

सुबह की नाज़ुक धूप - -

महकी महकी सी, इस सुबह की नाज़ुक
धूप में है शामिल तू कहीं, आईने
के मनुहार में लिपटी, मेरे
अक्स की गहराइयों
में है गुम तू
कहीं - -
खुली इत्रदान पूछती है अक्सर मुझसे -
कौन है वो ख़ूबसूरत अहसास, जो
मुझसे पहले है, घुला घुला सा
तेरे जिस्म ओ जां में
बड़ी शिद्दत से -
इस क़दर !
ये तेरी मुहोब्बत की है इन्तहां या मेरी
ज़िन्दगी के मानी है तेरी आरज़ू,
कुछ भी हो सकते हैं दर
अमल ए ज़माना,
लेकिन ये
सच है,
कि तू है दूर तक मशमूल मेरी रूह की -
गहराइयों में कही, पुर असर
अंदाज़ में मौजूद - -

* *
- शांतनु सान्याल

05 दिसंबर, 2013

कहीं न कहीं इक दिन - -

आईने का शहर कोई, फिर भी तेरी महफ़िल 
लगे बहोत फ़ीकी फ़ीकी, न कहीं कोई 
उभरता अक्स देखा, न ही नूर 
कोई तिलिस्म आमेज़,
हर चेहरे पे है इक 
नक़ली परत,
या कोई 
ख़त गुमनाम, हर निगाह गोया दर जुस्तजू -
ढूंढ़ती है ख़ुद का पता, इस मुखौटे के 
हुजूम में न जाने क्यूँ, वजूद 
भी अपना लगे कुछ 
कुछ अजनबी,
ये जहां 
है कैसी, न डुबाए पुरसुकून से, न हीं उभारे - 
ये ज़िन्दगी ! उड़ते अभ्र हैं, या है तेरी 
वो मुहोब्बत, मेरा दिल तलाशे 
सायादार इक ज़मीं, न 
हो जाएँ इस 
चाह में 
मेरी हसरतकुन आँखें, इक दिन बंजर कहीं,

* * 
- शांतनु सान्याल 



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04 दिसंबर, 2013

सबब इस दीवानगी का - -

ओस की बूंदें थीं या झरे तमाम रात,
ख़मोश निगाहों से दर्द लबरेज़ 
जज़्बात ! सीने के बहोत 
क़रीब हो के भी 
कोई, न 
छू सका मेरे दिल की बात, बहोत -
चाहा कि कह दूँ , सबब इस 
दीवानगी का, लेकिन 
तक़ाज़ा ए 
इश्क़ 
और सर्द दहन, हमने ख़ुद ब ख़ुद -
जैसे क़ुबूल किया, अब हश्र 
जो भी हो, हमने तो 
ज़िन्दगी को 
नाज़ुक 
मोड़ पे ला, मौज क़िस्मत के यूँ ही 
भरोसे छोड़ दिया, वो खड़े 
हों गोया, टूटते किनारों 
पे रूह मंज़िल की 
मानिंद,
कि मंझधार हमने जिस्म ओ जां !
जान बूझ के यूँ क़ुर्बान किया।

* * 
- शांतनु सान्याल   
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02 दिसंबर, 2013

अँधेरे का सफ़र - -

जो ख़ुद को उजाड़ कर रख दे, इतनी मुहोब्बत 
भी ठीक नहीं, अँधेरे का सफ़र इतना 
आसां नहीं मेरी जां, शाम से 
पहले कुछ रौशनी के 
टुकड़े अपने 
साथ तो रख लो, न जाने कहाँ दे जाए फ़रेब - -
चाँदनी ! अभ्र वो चाँद के दरमियां,
है क्या राज़ ए पैमां, किसे 
ख़बर, बहोत कुछ 
नहीं होता 
हाथों की लकीरों में लिखा, टूट जाते हैं ख्बाब 
बाअज़ औक़ात, निगाहों में ठहरने से 
पहले, न कर इतना भी यक़ीं 
बुत ए ख़ामोश पर मेरी 
जां, कि ये वो शै 
है जो - - 
कर जाती है असर पोशीदा, सांस रुकने तक 
पता ही नहीं चलता, दवा और ज़हर -
शिरीं के असरात - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 

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30 नवंबर, 2013

इतनी भी बेक़रारी ठीक नहीं - -

बिखरने दे ज़रा और अंधेरे की स्याही,
इतनी भी बेक़रारी ठीक नहीं,
अभी तलक है लिपटी 
सी सुनहरी शाम 
की रेशमी 
चादर,
बेताब नदी के लहरों को कुछ और - -
राहत तो मिले, डूबने दे तपते
हुए सूरज को और ज़रा,
अभी अभी, अहाते
के फूलों में है 
कहीं 
ख़ुश्बुओं की आहट, अभी अभी तुमने 
देखा है मुझे, ख़ुद से चुरा कर
इत्तफ़ाक़न, थमने दे 
ज़रा जुम्बिश ए 
जज़बात,
जब 
रात जाए भीग चाँदनी में मुक्कमल,
तब रखना मेरा वजूद अपनी 
आँखों में उम्र भर के 
लिए - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 
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28 नवंबर, 2013

तुम चाहो तो समेट लो - -

रहने दे मुझे यूँ ही बेतरतीब, बिखरा बिखरा,
हर चीज़ अगर मिल जाए हाथ बढ़ाए,
तो अधूरा सा है ज़िन्दगी का 
मज़ा, न कर उम्मीद 
से बढ़ कर कोई 
ख्वाहिश !
दुनिया की नज़र में पैबंद के मानी जो भी हों, 
लेकिन मेरे लिए है वो कोई शफ़ाफ़ 
आईना, रखता है जो अक्स 
मेरा मुक़रर हर दम,
कि लौट आता 
हूँ मैं वहीँ 
जहाँ से आग़ाज़ ए सफ़र था मेरा, और यही 
वजह है जो मुझे फ़िसलने नहीं देता,
बड़ी राहत ओ चैन से मैं घूम 
आता हूँ शीशे के राहों 
पे चलके तनहा,
चांदनी 
तुम चाहो तो समेट लो अपने दामन में पूरा,
मेरे दिल में है अभी तक रौशनी काफ़ी !
 * * 
- शांतनु सान्याल  

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26 नवंबर, 2013

न जाने क्यूँ - -

न जाने क्यूँ, आज भी इक पहेली सी है 
तुम्हारी पलकों की परछाई, न 
जाने क्यूँ आज भी, जी 
चाहता है तुम्हें, यूँही 
निष्पलक, बस 
देखते रहें,
इक जलता चिराग़ तन्हा और सुदूर -
कोई दरगाह वीरान, न कोई 
दरख़्त दूर दूर तक, न 
ही पत्थरों में 
लिखी 
कोई भूली तहरीर,फिर भी न जाने क्यूँ, 
ज़िन्दगी सिर्फ़ चाहती है, तुम्हारी 
निगाहों में अपना पता 
तलाश करना, 
वो बूंदें !
जो कभी छलकी थीं पुरनम आँखों से - 
तुम्हारे, उन्हीं बूंदों में आज तक 
सिमटी सी है ज़िन्दगी 
अपनी - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 

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25 नवंबर, 2013

इक बेइंतहा तन्हाई - -

हर इक ज़िद्द पे तुम्हारी, ज़िन्दगी ये बेचारी, -
ख़ामोश जां निसार होती रही, कभी वो 
ख्वाहिश जिसमें, मेरे ज़ख्मों को 
को था सुलगना, कभी वो 
चाहत जिसके लिए 
निगाहों से 
टपके 
बुझे अंगारे, वो तुम्हारे दिल की हसरत जिसमें 
थीं, दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत अमानत,
वो कोई नादिर शीशा था, या कोई 
आईना ए फ़रेब, अक्सर 
तन्हा सोचता है
वजूद मेरा, 
क्या 
चीज़ थी जिसने मुझे दीवानगी के हदों से कहीं 
आगे ले गई, जहाँ जिस्म ओ रूह के 
दरमियां फ़ासला, महज़ कुछ 
लम्हों में हो तक़सीम,
तुम्हारी उनींदी 
नाज़ुक 
पलकें, और मेरी साँसों के लिए, फ़ैसले की वो 
आख़री शब, ये इश्क़ था तुम्हारा या 
आज़माइश बा ज़िन्दगी ! अब 
जबकि बुझ चुकी है शमा, 
इन बिखरे परों 
में कहाँ है 
मेरा अक्स झुलसा हुआ, और कहाँ है तुम्हारी 
निगाहों की संदली साया, कहना आसान 
कहाँ, दूर तक है सिर्फ़ धुंध गहराता,
मुसलसल इक बेइंतहा 
तन्हाई - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 
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Watercolors by-Neadeen masters-Art

17 नवंबर, 2013

कुछ और वक़्त लीजिए - -

अभी तो सिर्फ़ देखा है मुझे, चिलमनों 
की सरसराहट में कहीं तुमने,
अभी राज़े मुहोब्बत है 
बहोत बाक़ी !
न करो अंदाज़ ए बारिश हवाओं के - -
रुख़ से, कहीं रह न जाए दिल 
ही दिल में, भीगने की 
ख्वाहिश, किसी 
मलऊन 
सहरा की मानिंद, अभी तो ज़िन्दगी -
का सफ़र है, नुक़ता ए आग़ाज़ 
पे कहीं, अभी निगाहों 
से परे है मेरे 
दिल की 
ज़मीं, अभी तक राह आतिश, तुमने -
देखा ही नहीं, कुछ और वक़्त 
लीजिए ख़ालिस सोने 
में बदलने के 
लिए !

* * 
- शांतनु सान्याल 

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16 नवंबर, 2013

मुद्दतों से - -

इक अनबूझ पहेली है, ये रात 
चाँद और सफ़र आसमां 
का, ख़ामोश लब, 
कह न सके 
कुछ 
भी, मुख़्तसर उम्र थी मेरी - - 
दास्तां का, समेट लो 
तुम भी दामन 
वक़्त से 
पहले,
ज़ामिन कुछ भी नहीं सितारों 
के कारवां  का, कहाँ 
मिलती है यूँ भी 
मुकम्मल 
रौशनी,
अँधेरा है वाक़िफ़ दोस्त मुद्दतों 
से मेरी ज़िन्दगी का !

* * 
- शांतनु सान्याल 
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Chinese Bamboo Painting

15 नवंबर, 2013

कुछ वक़्त और चाहिए - -

 लहरों की हैं, शायद अपनी ही मजबूरियां,
कहाँ रहती हैं, किनारों से लग कर 
हमेशा ! न कहो मुझसे, कि 
तुम्हें है मुहोब्बत
बेपनाह,
मौसमी हवाओं का भरोसा क्या, पलक -
झपकते न उड़ा ले जाए बाम ए 
हसरत कहीं, न मिलो 
इस तरह कि 
ज़िन्दगी 
भूल जाए तफ़ावत, हक़ीक़त ओ ख्वाब 
के दरमियां, अभी अभी तुमने 
सिर्फ़ अहसास किया है 
मुझको, कुछ 
वक़्त -
और चाहिए अहसास ए बेक़रारी को, - -
अक़ीदा से ईमां तक पहुँचने 
के लिए - - 

* * 
- शांतनु सान्याल 
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art by _mucci

14 नवंबर, 2013

न करना मुकम्मल यक़ीं - -

चलो तोड़ दिया हमने भी अहद क़दीमी,
कब तक कोई जीए, यूँ सीने में
समेटे अहसास ज़िन्दान,
तुम्हारा वजूद चाहे
इक मुश्त खुली
हवा !
फिर फ़िज़ाओं में है दस्तक बाद ए सुबह
की, तुम्हें हक़ है बेशक, परवाज़ -
वादी, चलो हमने भी खोल
दिया सीने के सभी
दरवाज़े क़फ़स,
बुलाती हैं
फिर तुम्हें, फूलों से लबरेज़ गलियां, न -
भूलना लेकिन, मेरे दिल का वो
दाइमी पता, बहुत मुश्किल
होगी अगर भटक
जाओ राह
चलते, हरगिज़ मौसम पे मेरी जां, न - -
करना मुकम्मल यक़ीं, न जाने
किस मोड़ पे दे  जाए, इक
ख़ूबसूरत धोका - -

* *
- शांतनु सान्याल
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Realistic paintings of Russian painter Vladimir Maksanov

13 नवंबर, 2013

इक पोशीदा दहन - -

उन निगाहों में कहीं, है इक पोशीदा दहन, 
बारहा जलता है मेरा जिगर, बेशुमार 
पिघलता है, मोम सा ज़ख़्मी 
बदन,  न जाने उसकी 
हद ए ख्वाहिश
है क्या -
हर इक सांस में मेरी उभरती है उसकी - -
चाहत, उन पलकों के हरकत से 
गिरती उठती है, मेरे दिल 
की नाज़ुक धड़कन, 
ख़ुदा जाने 
क्या है उसके दिल में, कोई राज़े रज़ामंदी,
या ख़ामोश क़त्ल का इमकां, हर 
लम्हा इक बेक़रारी, हर 
वक़्त ज़िन्दगी पे 
जैसे इक 
ख़ौफ़ गरहन ! कभी वो रोशन अक्स तो - 
कभी मैं, महज़ इक टूटा दरपन,
उन निगाहों में कहीं, है 
इक पोशीदा 
दहन, 

* *
- शांतनु सान्याल 

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dreamy path

12 नवंबर, 2013

आतिश ए दायरा - -

कहीं न कहीं आज भी उसके दिल में 
है अफ़सोस ज़रा, वो चाह कर 
भी मुझसे जुदा हो न 
सका, कहीं न 
कहीं मैं 
भी भीड़  में तन्हा ही रहा, चाह कर 
भी किसी से जुड़ न सका, 
इक अजीब सा रहा 
यूँ सिलसिला 
दरमियां
अपने, मुझसे ताउम्र बुतपरस्तिश 
न गई, और वो पत्थर से 
निकल कभी ख़ुदा 
हो न सका, 
इक -
तरसीम ए ख्बाब या इश्क़ हक़ीक़ी, 
न जाने क्या थी उसकी 
तिलस्मी चाहत,
लाख चाहा 
मगर 
उस मरमोज़ आतिश ए दायरा के 
बाहर कभी निकल ही न 
सका - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 


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forget me not - - 

11 नवंबर, 2013

ख़ुश्बुओं में डूबा अहसास - -

फिर लिखो कभी वही ख़ुश्बुओं में डूबा 
अहसास, फिर रख जाओ कभी 
चुपके से मेरे सिरहाने, वही 
ख़त, जो कभी बेख़ुदी 
में यूँ ही लिखा
था दिल 
में, दुनिया से छुपा कर तुमने, फिर -
खुले हैं दरीचे बहार के, फिर 
दिल चाहता है इज़हार 
ए वफ़ा करना,
इक उम्र 
से हमने नहीं देखा खुला आसमां, फिर 
कहीं से ले आओ टूटते तारों को 
ढूंढ़ कर, दिल की तमन्ना 
है फिर तेरी मांग पर 
कहकशां को 
सजाना !
* * 
- शांतनु सान्याल 
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10 नवंबर, 2013

बिखर न जाए कहीं - -

पुरअसरार इस रात की ख़ामोशी, कोई 
नज़दीक बहोत लेकिन नज़र न 
आए, निगाहों में समेटे 
चांद का अक्स 
इस तरह,
खुली वादियों में दिल कहीं भटक न -
जाए, क़सम है तुमको न खेलो 
डूबती साँसों से इस क़दर, 
साहिल के क़रीब 
आ कर कहीं 
इश्क़ -
मज़तरब, बेतरतीब लहरों में बिखर न 
जाए - -
* * 
- शांतनु सान्याल 

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06 नवंबर, 2013

शबनमी स्पर्श - -

निःशब्द गिरती वो बूंदें, और दिल की नाज़ुक 
सतह, बहोत मुश्किल था, उसे रूह 
तक तहलील करना, न पूछे 
कोई उसकी ख़ामोश 
लबों की दास्तां,
यूँ उतरती 
गई दिल की गहराइयों में दम ब दम, कि हम 
भूल गए वजूद तक अपना, आईने की 
शिकायतें रहीं बेअसर, कुछ इस 
तरह से खोए रहे हम, कब 
गुज़री शब महताबी,
कब बिखरे 
शब गुल हमें ख़बर ही नहीं, कल रात हम न -
थे हमारे अंदर, नादीद क़ब्ज़ा किसीका 
जिस्म ओ जां पे, और खुली 
पलकों से हम देखते 
रहे उसकी 
ख़ूबसूरत मनमानी ! जैसे शिकारी ख़ुद ब - -
ख़ुद होना चाहे शिकार - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 
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30 अक्तूबर, 2013

हो सके तो करना इंतज़ार - -

उभरने दे मुझे बेक़रार लहरों से ज़रा,
ग़र हो सके तो करना इंतज़ार
साहिल ए शिकस्ता पे
मेरा, है मुझे
ऐतबार
तेरे इश्क़ हक़ीक़ी पे इस क़दर, तुझे
पाने की हसरत में मौज ए
दरिया तो क्या, हर
क़यामत से
गुज़र
जाऊं मैं, रस्म ज़माना, ईमान ओ -
अक़ीदत रहे अपनी जगह,
इक तेरी नज़र की
बात है फिर
किसे
चाहिए पोशीदा आसमानी खुशियां !
* *
- शांतनु सान्याल

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flowers of fence

29 अक्तूबर, 2013

बहोत मुश्किल है - -

तुम जाओ कहीं भी, आसां नहीं रिहाई ए -
वाबस्तगी, लौट आओगे दिल के 
क़रीब इक दिन, बहोत 
मुश्किल है दोबारा 
कहीं दिल 
लगाना, ये वो हक़ीक़त है जो जां से गुज़र 
जाए, अहसास नाज़ुक लेकिन, जो 
दिलकी परतों पे दे जाए 
अंतहीन निशां ! 
बहोत 
मुश्किल होगी ज़ख़्मी जिगर छुपाना, वो 
जो हमारे दरमियां थी मसावात ए 
ज़िन्दगी, सांस टूट जाए 
मगर उसका टूटना 
है नामुमकिन,
नहीं -
आसां ये हमनफ़स, नाबूद चमन को फिर 
बसाना, बहोत मुश्किल है दोबारा 
कहीं दिल लगाना - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 
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art by sharon forthofer

23 अक्तूबर, 2013

अहसास पहले - -

न दिखाओ मुझे गुल ए ख़्वाब कोई, 
जिसके मुरझाने का इमकां रहे 
तारी रात भर, इतना भी 
अपनापन ठीक 
नहीं कि 
आँख खुलते बिखर जाए आसमां -
की जामियत, क़तरा क़तरा 
नज़र आए मासूम 
वजूद मेरा,
और तुम मुस्कुराओ उफ़क़ पार यूँ 
गोया हो चला हो वक़्त से पहले
रंग तलुअ फ़ज़र कोई !
कुछ तो वक़्त 
दो मुझे,
कि तुम्हें अहसास करने से पहले - -
साँसों को संभलना आ जाए !
* * 
- शांतनु सान्याल  


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21 अक्तूबर, 2013

मुखालिफ़ ज़हर - -

वो तमाम शिकायतें जो कभी तुमको -
हमसे थीं, क्यूँ न फिर दोहरा 
जाओ, तुम्हें हमसे अब 
कोई दिलबस्तगी 
नहीं, इस 
बात का यक़ीन फ़िर इक बार तो दिला 
जाओ, तुम्हें फ़ुरसत मिले न मिले, 
हम तो हैं मुन्तज़िर उम्र 
भर के लिए, फिर 
भी रस्मियत 
ही सही,
किसी इक पल के लिए, राह निजात -
तो दिखा जाओ, हमें तलाश नहीं 
दरवाज़ा ए बहिश्त की,
ग़र हो सके तो 
अपने 
हाथों जो चाहे पिला जाओ, हम हो चुके 
है मुखालिफ़ ज़हर, इक ज़माने से !
* * 
- शांतनु सान्याल 

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20 अक्तूबर, 2013

जिस्म ओ रूह चाहे राहत ज़रा - -

मालूम है मुझको शीशे की मजबूरी 
फिर भी दिल चाहे ख़्वाबों से 
खेलना, न छीनो मुझसे -
ये खिलौना, बहोत 
मुख़्तसर है - 
रात की ज़िन्दगानी, न दोहराओ -- -
वही रंज ओ ग़म की बातें, 
नई पुरानी दर्द भरी 
अलहदगी, 
जंग आलूद धुंधली मुलाक़ातें, अब -
इन बातों से ऊबती है ज़िंदगी,
कुछ नयापन चाहे दिल 
मेरा, जिसमें हो 
इक मुश्त 
ताज़गी, इक अहसास ए ख़ुशबू -- -
जो कर जाए तिलिस्म गहरा, 
कि जिस्म ओ रूह 
चाहे राहत 
ज़रा - -
* * 
- शांतनु सान्याल 
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art by Melanie Pruitt 1

18 अक्तूबर, 2013

शाश्वत प्रकाश - -

वो लुप्त है अंतर्मन में कहीं और नयन -
खोजें उसे धुंध भरी राहों में, एक 
मृगजल है; मेरी अंतहीन 
अभिलाषा, सब कुछ 
है आसपास 
लेकिन 
ह्रदय ढूंढ़े उसे धूमिल अरण्य के बीच, न 
अदृश्य, न ही उजागर वो है हर 
सांस के लेखाचित्र में 
निहित, केवल 
चाहिए 
स्व प्रतिबिम्ब का गहन अवलोकन, वो 
चेतना जो पढ़ पाए व्यथित मन 
की भाषा, जो हो घुलनशील 
हर चेहरे के ख़ुशी 
और दुःख
में डूब कर, जीवन चाहे वो शाश्वत - - 
सत्य का प्रकाश, जो दे जाए 
चिरस्थायी दीप्ति, 
अंतर तमस 
पाए - 
अनंतकालीन मुक्ति, जन्म जन्मान्तर 
से परिपूर्ण मोक्ष प्राप्ति - - 
* * 
- शांतनु सान्याल 

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13 अक्तूबर, 2013

चश्म अंदाज़ तुम्हारा - -

तुम्हारे दिल की गहराइयों का मुझे 
पता नहीं लेकिन ये सच कि 
तुम्हारी आँखों से 
छलकती 
है बाज़्ताबी अज़ ज़िन्दगी, और -
यही वो वजह है, जो मुझे 
उभारती है बहरान 
ए लहर से,
वक़्त मेहरबां रहे न रहे, चाहे रस्मे 
दुनिया भी जाए बदल, चश्म 
अंदाज़ तुम्हारा है इक 
संगे किनारा,
हर हाल में मेरा वजूद जी उठता है 
अनजाने क़हर से, 
* * 
- शांतनु सान्याल 

बाज़्ताबी अज़ ज़िन्दगी - जीवन का 
प्रतिबिम्ब 
बहरान ए लहर - तूफ़ानी लहर 
चश्म  अंदाज़- दृष्टिकोण 

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orange-flowers

12 अक्तूबर, 2013

राहत ए गुलिस्तां - -

बज़्म में है तेरी क्यूँ ख़ामोशी दूर तलक,
हम तो आए थे बड़ी उम्मीद लिए,
कि ज़िन्दगी से हो जाए खुल 
के मुलाक़ात, ये क्या 
हर चेहरा लगे 
गुमसुम,
हर लब पे गोया पाबंदी आयद, ये कैसी 
है तेरी महफ़िल, उभरते तो हैं रह 
रह कर इन्क़लाब ए अरमां, 
लेकिन बदोन सदा,
ये कौन सी 
ज़मीं है, 
ये कैसा है आसमां, लौटती नहीं जहाँ से 
गूँज, तब्दील ए जहां बन कर !
बरसती नहीं क्यूँ तेरी 
निगाह करम,
हर रूह 
पे राहत ए गुलिस्तां बन कर - - - - - - 
* * 
- शांतनु सान्याल  

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art by kb_Bourdet_Susan

11 अक्तूबर, 2013

बहोत नज़दीकी ठीक नहीं - -

बहोत नज़दीकी ठीक नहीं, बेहतर हो, इक
पोशीदा दूरी हो दरमियां अपने,
बिखरना हो, जब कभी
तो यूँ बिखरें कि
किसी को
भी
दर्द महसूस न हो, न मांग मुझसे ख़्वाबों -
की ज़मीं, इक वही है मेरी अपनी
मिल्कियत ए हयात, वर्ना
शिफ़र हथेलियों में
आड़ी तिरछी
लकीरों
के सिवा, कुछ भी नहीं, न देख मुझे बारहा
यूँ उम्मीद भरी नज़र से, कि मैं हूँ
इक बहता हुआ दरिया ए
घुम्मकड़, न जाने
किस ओर
बह
जाऊँगा, बेहतर है लौट जाओ किनारे से -
चुपचाप, ग़ैर मुन्तज़िर तूफ़ान
घिरने से पहले - -
* *
- शांतनु सान्याल



09 अक्तूबर, 2013

मुकम्मल फ़िदाकारी !

न रख कोई उम्मीद मुझसे ये ज़माना 
कि इश्क़ में, मैंने पा लिया है 
चाहत से कहीं ज़्यादा,
अब दिल में 
कोई 
ख़्वाहिश बाक़ी नहीं, तखैल से परे है,
वो अहसास ए इत्मीनान, अब 
क्या ज़हर, या नोश अमृत,
हर चीज़ है बेअसर,
मैं तमाम उन 
ख़ुमारी 
से निकल बहोत दूर जा चुका हूँ, जहाँ 
रूहें मिलती हैं इक दूसरे से यूँ 
गोया कोई अज़ीम दरिया 
समा जाए ख़ामोश 
समंदर के 
सीने 
में, अंतहीन गहराइयों की जानिब - - 
न कोई पता, न ही कोई नाम 
ओ निशां, मुकम्मल
फ़िदाकारी !
* * 
- शांतनु सान्याल   

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