16 दिसंबर, 2013

राज़ ए निगाह - -

नज़दीकियों के दरमियां मौजूद इक
ख़ामोशी, बुझती शमा से वो
उभरता धुआँ, झुकी
निगाहों से बूंद
बूंद - -
बिखरती वो मख़मली रौशनी, इक -
पुरजोश दायरा, या उतरने को
है ज़मीं पर मजलिस ए
सितारा, लहरों में
है मरमोज़
बेकली,
या बेक़रार सा है टूटने को दिल का -
किनारा, न जाने क्या है, उसके
दिल में पिन्हां, इक थमी
सी बरसात या बहने
को है ये शहर
सारा !
कहना है बहोत मुश्किल तासीर ए -
इश्क़, इक साँस में बहिश्त !
इक नज़र में उसकी है
छुपी अनगिनत
नेमतों की
धारा।

* *
- शांतनु सान्याल  




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