31 दिसंबर, 2013

कोई ख्वाब अनदेखा - -

तुम भी वही, रस्म ए ज़माना भी
वही, मुझ में भी कोई ख़ास
तब्दीली नहीं, फिर
भी जी चाहता
देखें, कोई
ख्वाब
अनदेखा, इक रास्ता जो गुज़रता
हो ख़ामोश, खिलते दरख्तों
के दरमियां दूर तक,
इक अहसास
जो दे
सके ज़मानत ए हयात, इक - -
मुस्कुराहट जो भर जाए
दिल का ख़ालीपन,
इसके आलावा
और क्या
चाहिए, मुख़्तसर ज़िन्दगी के -
लिए !

* *
- शांतनु सान्याल


2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    गये साल को है प्रणाम!
    है नये साल का अभिनन्दन।।
    लाया हूँ स्वागत करने को
    थाली में कुछ अक्षत-चन्दन।।
    है नये साल का अभिनन्दन।।...
    --
    नवल वर्ष 2014 की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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