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मेरी मंज़िल है कहीं दूर क्षितिज पार,
अभी जो अँधेरा है बाक़ी वो भी
हट जाएगा अपने आप,
फिर मेरी रूह है
बेताब छूने
को
दोनों कगार। मेरे क़दमों से कोई उतारे
सितारों के ज़ंजीर, मेरी आँखों में हैं
बेक़रार सुबह के ताबीर, अभी
तक हैं ज़िंदा मेरे सीने में
दफ़न,जीने की ललक
अपार। वक़्त के
चाबूक टूट
गए
लेकिन,जिस्म अभी तक है मेरा अटूट,-
तुम्हारी चाहत तुम तक महदूद,
मेरी ख़्वाहिश चाहे खुला
आसमान, खुले दिलों
का एक मुश्त
मीनाबाज़ार।
* *
- शांतनु सान्याल