02 जनवरी, 2019

इस पल के बाद - -

उस अनंत अनुबंध के तहत हैं सभी अंगभूत,
न कोई कम, न कोई अधिक, बीज और
धरा के मध्य हैं सिमटे सभी जीवन,
वो आजतक निकल न पाए
गर्भगृह के तम से बाहर, 
न जाने किस देवता
के हैं वो दम्भी
अग्रदूत।
उस अनंत अनुबंध के तहत हैं सभी अंगभूत।
प्रकृति और पुरुष के मुहाने पर लहराए
महासिंधु अपार, कदाचित उस
दिव्य दिगंत में उभरे जग
के खेवनहार, न तुम,
तुम हो, न मैं,
मैं हूँ,
जो कुछ भी है बस इसी पल में सिमित, इस
पल के बाद है जगत मिथ्या हे मम् अवधूत।
उस अनंत अनुबंध के तहत हैं
सभी अंगभूत।
* *
- शांतनु सान्याल 

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