21 जनवरी, 2021

मंत्रमुग्ध सीढ़ियां - -

शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत -
ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों
से ले जाते हैं पाताल में,
कुछ अंतरंग माया,
कुछ सम्मोहित
छाया, प्रेम,
ग्लानि
ढके रहते हैं धुंध के इंद्रजाल में, ये
घर, दीवार, छत, कांच से जड़ी
आलमारी, सब कुछ हो
कर भी है ख़ालीपन
हर हाल में,
अभिमुख
चेहरे
ज़रूरी नहीं कि हों पूर्व विदित, स्पर्श
है बेमानी देह कहीं, मन दूसरे
ख़्याल में, रंग बिरंगी
मछलियों की
दुनिया है
तरंग
विहीन, धुआं ही धुआं है इस जिस्म
के रंग मशाल में, बुझ चले हैं
झाड़फानूस, शमा को
बुझे देर हुई, फ़र्श
पे बिखरे हैं
पतंग,
वक़्त है रवां उसी चाल में, मंत्रमुग्ध
सीढ़ियों से ले जाते हैं अनदेखे
सभी ख़्वाब, शून्यता के
पाताल में।

* *
- - शांतनु सान्याल
   
 
 

23 टिप्‍पणियां:

  1. वक़्त है रवां उसी चाल में, मंत्रमुग्ध
    सीढ़ियों से ले जाते हैं अनदेखे
    सभी ख़्वाब, शून्यता के
    पाताल में ।
    उत्कृष्ट पोस्ट माननीय सादर।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज गुरुवार 21 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

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  4. सम्मोहन में बाँध कर, बार बार पढ़ने को आकर्षित करती रचना..

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  5. ये
    घर, दीवार, छत, कांच से जड़ी
    आलमारी, सब कुछ हो
    कर भी है ख़ालीपन
    हर हाल में....

    उम्दा रचना...
    अत्यंत भावपूर्ण 🌹🙏🌹

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  6. मुझे सदा से ही पद्य अपने बूते के बाहर की बात लगती रही है ! वैसे भी कविता करना सबके बस का नहीं होता ! आपकी इसमें गहरी पैठ है, अच्छा लगता है ! साधुवाद

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  7. फ़र्श
    पे बिखरे हैं
    पतंग,
    वक़्त है रवां उसी चाल में, मंत्रमुग्ध
    सीढ़ियों से ले जाते हैं अनदेखे
    सभी ख़्वाब, शून्यता के
    पाताल में।
    सभी रगीनियों को हासिल करके भी मन में खालीपन ही है....फिर भी ये सम्मोहन करती सीढियां खींच रही हैं शून्यता की ओर...
    वाह!!!
    लाजवाब सृजन

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