कुछ अलग से जीने की हसरत
लिए बैठा हूँ, ख़ाली हाथों
में एक बूंद मसर्रत
लिए बैठा हूँ,
अब मुड़
के
देखें तो किसे, हदे नज़र है अंधेरा,
सीने में कहीं उजालों के
जीनत लिए बैठा हूँ,
वक़्त बदल देता
है ज़िन्दगी
के सभी
नक़्शे,
उजड़े अल्बम का कोई वसीयत
लिए बैठा हूँ, न जाने कहाँ
गए शतरंज के वो
लाव लश्कर,
टूटे हुए
शीशों
का कोई सल्तनत लिए बैठा हूँ,
अहाते में हूँ एक मुश्त
गुनगुने धूप की
तरह, मालूम
नहीं
रास्ता, बस हिजरत लिए बैठा
हूँ, दूर तक है नीला समंदर,
खुला हुआ बंदरगाह,
उफ़क़ पोशीदा,
उड़ने की
नियत
लिए बैठा हूँ, कुछ अलग से - -
जीने की हसरत लिए
बैठा हूँ।
* *
- - शांतनु सान्याल
26 जनवरी, 2021
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न जाने कहाँ
जवाब देंहटाएंगए शतरंज के वो
लाव लश्कर,
टूटे हुए
शीशों
का कोई सल्तनत लिए बैठा हूँ,..सुन्दर मनोभावों को व्यक्त करती बहुत सरस सारगर्भित रचना..गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें..जिज्ञासा सिंह..
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएं72वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (27-01-2021) को "गणतंत्रपर्व का हर्ष और विषाद" (चर्चा अंक-3959) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंखयालात की इंदधनुषी परवाज़
हटाएंऔर गहरा नीला हो गया आकाश
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंविसंगतियों के अंधेरे में आशा का एक दीप लिए बैठा हूं।
जवाब देंहटाएंशानदार /अप्रतिम।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंवाह!गज़ब का सृजन।
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी
सादर
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएं