एक से बढ़ एक ख़ूबसूरत -
हवेलियों का है ये
शहर, झूलते
बरामदों
में खेलते हैं, धूप छाँव के -
मंज़र, ठहर लूँ घड़ी
भर कहीं, ऐसा
कोई सायबाँ
न मिला,
जिसका जितना दामन - -
था, उतना ही धूप
समाया, यक्ष
का संदूक
रिक्त
था,
भाग्य में शून्य स्तूप आया,
बदल दे हाथ के लकीरों
को, ऐसा कोई
मेहरबाँ न
मिला,
ज़िन्दगी जीने के लिए, सभी
दौड़े जा रहे हैं बेतहाशा,
नए दिन के साथ
नए षड्यंत्र,
वही
मंसूबों का तमाशा, बातचीत
ताउम्र चली, फिर भी
कोई हमज़बाँ
न मिला,
सुना
था मिलता है दिल को बड़ा
सुकूं उसके साए में,
लिहाज़ा हम
तलाशते
रहे उम्र
भर
उस दरख़्त का पता, जिसका
अक्स उतर आए दिल में
वो आसमाँ न
मिला।
* *
- - शांतनु सान्याल
28 जनवरी, 2021
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दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसुन्दर मनोभावों की अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबेहद ख़ूबसूरत...!
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २९ जनवरी २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर और सारगर्भित रचना।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय अभिव्यक्ति आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंतलाशते
रहे उम्र
भर
उस दरख़्त का पता, जिसका
अक्स उतर आए दिल में
वो आसमाँ न
मिला।..बहुत ही हृदयस्पर्शी...।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
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