13 जनवरी, 2021

उच्छ्वास के उस पार - -

न धुआँ है कहीं, न आग का कोई
सुराग़, बिखरा है राख़, लेकिन
आसमान तक, ज़िन्दगी
का महोत्सव, यूँ तो
है सीमाहीन,
लेकिन
डूबा -
जाते हैं उच्छ्वास महा जलयान
तक, न जाने कौन है खड़ा
नेपथ्य के उस पार, जो
खेलता है, अनवरत
जन्म से ले कर
मसान
तक,
चाहे जितना भी हाथ पैर पटक लें
हम, वो खींचे लिए जाता है,
भोर से अवसान तक,
श्वेत - श्याम
में गुथी
हुई
है, ये नियति पटल, मिटा देती है
सभी इतिवृत्त के निशान -
तक, काल चक्र के
गिरफ़्त से कोई
नहीं बचता,
सभी
समान हैं, रंक से राजा महान तक।

* *
- - शांतनु सान्याल

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 13 जनवरी 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. , न जाने कौन है खड़ा
    नेपथ्य के उस पार, जो
    खेलता है, अनवरत
    जन्म से ले कर
    मसान
    तक,
    चाहे जितना भी हाथ पैर पटक लें
    हम, वो खींचे लिए जाता है,
    भोर से अवसान तक,सुंदर सारगर्भित सृजन..

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  3. काल चक्र के
    गिरफ़्त से कोई
    नहीं बचता,
    सभी
    समान हैं, रंक से राजा महान तक।

    सटीक....सुंदर रचना....

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