न धुआँ है कहीं, न आग का कोई
सुराग़, बिखरा है राख़, लेकिन
आसमान तक, ज़िन्दगी
का महोत्सव, यूँ तो
है सीमाहीन,
लेकिन
डूबा -
जाते हैं उच्छ्वास महा जलयान
तक, न जाने कौन है खड़ा
नेपथ्य के उस पार, जो
खेलता है, अनवरत
जन्म से ले कर
मसान
तक,
चाहे जितना भी हाथ पैर पटक लें
हम, वो खींचे लिए जाता है,
भोर से अवसान तक,
श्वेत - श्याम
में गुथी
हुई
है, ये नियति पटल, मिटा देती है
सभी इतिवृत्त के निशान -
तक, काल चक्र के
गिरफ़्त से कोई
नहीं बचता,
सभी
समान हैं, रंक से राजा महान तक।
* *
- - शांतनु सान्याल
13 जनवरी, 2021
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सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 13 जनवरी 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंबेहतरीन रचना आदरणीय
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएं, न जाने कौन है खड़ा
जवाब देंहटाएंनेपथ्य के उस पार, जो
खेलता है, अनवरत
जन्म से ले कर
मसान
तक,
चाहे जितना भी हाथ पैर पटक लें
हम, वो खींचे लिए जाता है,
भोर से अवसान तक,सुंदर सारगर्भित सृजन..
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंकाल चक्र के
जवाब देंहटाएंगिरफ़्त से कोई
नहीं बचता,
सभी
समान हैं, रंक से राजा महान तक।
सटीक....सुंदर रचना....
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
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