![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhbjV52pYylGJeWTM2zhoNCXoYBO8mjy8SucNw8WMiy3K3bleObRVSKHBczX1Iar3-kpcKiG6QtlcsHSRINHVDe8FyI8eYMHK1xhI8d-E3xo_D32CmT4zdpxRvwlyieZO0zbg9jYt4GNSek/s320/flowers-and-vases-03.jpg)
बहुत चंचल थे नेह गंध, मौसम
बदलते ही तितलियों के
संग, बहुत दूर कहीं
उड़ गए। वक़्त
कहाँ ठहरा
है किसी के लिए, चाहे तुम पुकारा
करो ले के किसी का नाम
अंतहीन, जनशून्य
सा कोई स्टेशन
और दूर
तक बिखरे हुए सूखे पत्तों के सिवा
कुछ नहीं होता। मुझे मालूम
है दस्तकों का फ़रेब,
फिर भी, जी
चाहता
कि, फिर सुबह उजालों का उपहार दे
जाए, अधखिले फूलों को उन्मुक्त
खिलने का प्यार दे जाए।
* *
- शांतनु सान्याल