उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर
में पत्थर के दीवार निकले,
ज़रा सी चोट से वो
घबरा गए,
इस देह
से
हम कई बार निकले, किसे दिखाते
ज़ख़्मों के निशां, क्यूँ कर
कोई बेवजह हो
परेशां, वो
हमारे
हिस्से के भंवर थे, लिहाज़ा हम डूब
के उस पार निकले, वो फ़क़त
अभिनय था, या
असलियत,
फ़र्क़
करना नहीं आसान, उजालों के - -
नेपथ्य में वो अपना
ज़मीर तक
बेचने
को
तैयार निकले, लोग गुज़रते रहे, -
अपने हाथों में लिए,
रंगीन ख़्वाबों
के परचम,
कुछ
आत्मीयता शिलालेख हुए, कुछ -
चेहरे भूले हुए इक़रार
निकले, हमने
सोचा कि
जब
दवा बेअसर है, तो क्यूँ न राहे - -
दुआ का रुख़ करें, नंगे
पांव चल कर
हम पहुंचे,
वो
तो महज फ़रेब का बाज़ार निकले।
* *
- - शांतनु सान्याल
15 जनवरी, 2021
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वाह
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंसुन्दर और सारगर्भित प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमकर संक्रान्ति का हार्दिक शुभकामनाएँ।
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 15 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंफ़क़त
जवाब देंहटाएंअभिनय था, या
असलियत,
फ़र्क़
करना नहीं आसान, उजालों के - -
नेपथ्य में वो अपना
ज़मीर तक
बेचने
को
तैयार निकले..गूढ़ भावाभिव्यक्ति को व्यक्त करती सुन्दर रचना..
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंगहन भावाभिव्यक्ति सर।
जवाब देंहटाएंआपकी हर रचना अलग अनुपम होती है।
प्रणाम सर।
सादर।
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(१६-०१-२०२१) को 'ख़्वाहिश'(चर्चा अंक- ३९४८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंबेहतरीन कविता |ब्लॉग पर आते रहने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंलाजवाब भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत ही बेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंसुन्दर भावों से सजी बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंसशक्त लेखन ।
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
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