गुज़रो यहाँ से यूँ जैसे सब
कुछ देख के, कुछ भी
देखा नहीं, सत्य
सुन्दर है
बहुत,
लेकिन उसमें छुपा है विष
का प्याला, ज़रा सा
ऐतराज़ पलक
झपकते
तुम्हें
सुक़रात बना जाएगा, ये
वही तमाशबीन हैं
जो, इंद्रप्रस्थ के
अट्टहास में
थे मौजूद,
ये वही
खिलाड़ी हैं, जो बिछाते हैं
साज़िशों की रंगीन
बिसात, यही
साफ़गोई
इक दिन, दम घुटने के
हालात बना जाएगा,
ज़रा सा ऐतराज़
पलक झपकते
तुम्हें
सुक़रात बना जाएगा,
असली नक़ली सब
एक समान,
झिलमिल
उतरन
का बाज़ार,
कोई आए छुपके, कोई
रूप बदल के, लेकिन
सब हैं ख़रीददार,
चेहरों में हैं
रंग
बदलती परतें, मौक़ा
मिलते घात बना
जाएगा, यही
साफ़गोई
इक
दिन, दम घुटने के - -
हालात बना
जाएगा।
* *
- - शांतनु सान्याल
30 जनवरी, 2021
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आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 30 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (31-01-2021) को "कंकड़ देते कष्ट" (चर्चा अंक- 3963) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसत्य को उघाड़ दिया है शांतनु जी आपने, आईने पर से धूल साफ़ कर दी है । इन सच्चाइयों से आंखें फेरना अपने आप को ही धोखा देना है ।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसुन्दर सारगर्भित सृजन..
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबेहतरीन भाव लिए सारगर्भित सृजन।
जवाब देंहटाएंप्रणाम सर।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसारगर्भित एवं सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसादर।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
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