आँखों के तटबंध तक सिमटे होते हैं सभी
अपने या पराए रिश्ते, अपनापन तो
है बहता हुआ जलधार, रात
गुज़रते ही पलकों के
नीचे तक उतर
आएगा, वो
कोई
उड़ता सा आवेग था, भोर के धुंधलके में -
न जाने किधर जाएगा। किसी गुप्त
संधि की तरह रहते हैं, देह से
लिपटे हुए अनगिनत
सुरभित क्षणों के
आलेख, कुछ
आयु से
दीर्घ
सम्मोहन, टूटे हुए मकड़जालों में ओस के
झूलते आरोहण, आँखों से ओझल होते
ही ये मायावी संसार अपने आप
ही बिखर जाएगा, अनबुझ
सदा रहती है जीवन की
तृष्णा, हथेली के
ऊपर गिरता
अनुरागी
बूंदों का
जलप्रपात है बहुत चंचल, ओंठों को छूने
से पहले ही कहीं और ठहर जाएगा,
रात गुज़रते ही पलकों के
नीचे तक उतर
आएगा।
* *
- - शांतनु सान्याल
24 जनवरी, 2021
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बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंहथेली के
जवाब देंहटाएंऊपर गिरता
अनुरागी
बूंदों का
जलप्रपात है बहुत चंचल, ओंठों को छूने
से पहले ही कहीं और ठहर जाएगा,..सुंदर मनोरम कृति..
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर और सशक्त रचना।
जवाब देंहटाएंराष्ट्रीय बालिका दिवस की बधाई हो।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 25 जनवरी 2021 को 'शाख़ पर पुष्प-पत्ते इतरा रहे हैं' (चर्चा अंक-3957) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंवाह!बहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंबार-बार पढ़ने को कहता।
मन को छूता हुआ।
सादर
बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएं