24 जनवरी, 2021

अनुबंध के परे - -

आँखों के तटबंध तक सिमटे होते हैं सभी
अपने या पराए रिश्ते, अपनापन तो
है बहता हुआ जलधार, रात
गुज़रते ही पलकों के
नीचे तक उतर
आएगा, वो
कोई
उड़ता सा आवेग था, भोर के धुंधलके में -
न जाने किधर जाएगा। किसी गुप्त
संधि की तरह रहते हैं, देह से
लिपटे हुए अनगिनत
सुरभित क्षणों के
आलेख, कुछ
आयु से
दीर्घ
सम्मोहन, टूटे हुए मकड़जालों में ओस के
झूलते आरोहण, आँखों से ओझल होते
ही ये मायावी संसार अपने आप
ही बिखर जाएगा, अनबुझ
सदा रहती है जीवन की
तृष्णा, हथेली के
ऊपर गिरता
अनुरागी
बूंदों का
जलप्रपात है बहुत चंचल, ओंठों को छूने
से पहले ही कहीं और ठहर जाएगा,
रात गुज़रते ही पलकों के
नीचे तक उतर
आएगा।

* *
- - शांतनु सान्याल
 

 
 

15 टिप्‍पणियां:

  1. हथेली के
    ऊपर गिरता
    अनुरागी
    बूंदों का
    जलप्रपात है बहुत चंचल, ओंठों को छूने
    से पहले ही कहीं और ठहर जाएगा,..सुंदर मनोरम कृति..

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  2. बहुत सुन्दर और सशक्त रचना।
    राष्ट्रीय बालिका दिवस की बधाई हो।

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  3. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  4. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 25 जनवरी 2021 को 'शाख़ पर पुष्प-पत्ते इतरा रहे हैं' (चर्चा अंक-3957) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  5. वाह!बहुत ही सुंदर सृजन।
    बार-बार पढ़ने को कहता।
    मन को छूता हुआ।
    सादर

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