30 मई, 2012


कल रात कोई 
वो सभी इलज़ाम बहोत ख़ूबसूरत लगे -
जो उसने लगाये थे मुझ पर, यूँ 
भी ज़िन्दगी में इनामों की 
कमी न थी, इक और 
नायाब नगीना 
जड़ गया 
कोई,
दाग़े दिल लिए फिरता हूँ मैं उसकी गली 
में अकसर, बदहवास सा कुछ  कुछ, 
सुना है ; टूटे दहलीज़ पर कल
शब, भीगा  गुलाब
रख गया
कोई, 
- शांतनु सान्याल  
Paintings by Maria Serafina

26 मई, 2012

रौशनी का वादा

अन्तर्निहित थे मन में सभी अंकुरित भावनाएं ;
मौसम ने कदाचित शपथ उभरने का 
निभाया होता, मेघों की वरीयता 
जो भी हो, कुछ बूंद यूँ ही 
लापरवाही से तपते 
ह्रदय पर 
गिराया होता, उपेक्षित मरुभूमि की ख़ामोशी -
व नज़र अंदाज़ आसमान, कहीं से 
रात ने शबनम तो चुराया 
होता, नियति की थी 
अपनी  ही 
मज़बूरी, वरना रेत के टीलों में कम से कम 
चांदनी तो बिछाया होता, इन अंधेरों 
से निकल आने में वक़्त नहीं 
लगता ; ग़र रौशनी ने 
अपना वादा तो 
निभाया 
होता - - - 
- शांतनु सान्याल 

25 मई, 2012


कोई क़दम तो बढ़े
कोई तो उठे बज़्म से ललकारते हुए 
कि लपक जाए दहकता शोला, 
कोई तो आए लहराके यूँ 
बादलों की तरह 
राख़ होने से 
बच भी  जाए किसी का आशियाना, -
न पूछ ऐ दोस्त मेरी ज़िन्दगी 
की हकीक़त, इक आइना 
है जो टूट कर भी 
बिखरने नहीं 
देता मेरा 
वजूद, कि हर बार खाक़ से उभरता 
हूँ मैं तूफ़ान की तरह - - - 

- शांतनु सान्याल
painting by MARIE

23 मई, 2012


ग़र मिल जाए कोई 

ये ख़ामोशी अब लाज़िम नहीं कांपते लबों को
फिर ज़बां मिल जाए,

रात का सफ़र और धड़कता दिल, काश कोई 
तो कारवां मिल जाए,

सीने में लिए फिरता हूँ रौशनी का शहर, कहीं 
से आसमां मिल जाए,

क़िस्मत का सितारा डूबा नहीं, भूले से सही,
इक क़द्रदां मिल जाए,

- शांतनु सान्याल

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waves 4

22 मई, 2012


आवाज़ न दे कोई 
ये कैसे  ख़ुमार लिए रात भर गई जिस्मो जां,
है ज़माना बहोत दूर सहमा सहमा; और 
हम बस चले हैं रफ़्ता रफ़्ता जैसे 
लबे कहकशां, न दे हमें 
आवाज़ कोई कि
हमने छोड़ 
दी है ;
नफ़रतों से सुलगती वो जहां, इन ख़लाओं
में है न जाने क्या तिलिस्म गहरा,
जितना ही डूबते जाएँ उतना 
ही उन निगाहों में बढ़े
कोई राज़ 
बेक़रां, 

- शांतनु सान्याल 
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Circinus Galaxy

19 मई, 2012

फिर कभी - - -

किसी दिन, फिर पूछेंगे, उदासी का सबब
आज बसने भी दो ज़िन्दगी को ;
नज़दीकियों के आसपास,
वो सवाल जो कर
जाये दिल
की
गहराइयों में उथल पुथल, घिर आएं बेवक़्त
ही निगाहों में बदलियाँ, नहीं चाहिए
वो दर्द भरी बरसात, मखमली
शाम के साए, और उभर
चले हैं ख़्वाब नए !
खिलने दें
फिर
क्यों नहीं मुरझाये शबे गुल, भरने दें इक -
अह्सासे ख़ुश्बू ; कि मुख़्तसर है ये
रात ; और अरमानों की
फेहरिस्त बहोत
लम्बी - - -

- शांतनु सान्याल




13 मई, 2012

जिस्म ओ रूह

 
अब फ़र्क़ नहीं पड़ता दिल को 
किसी के नज़र अंदाज़ का;
हम छोड़ आये सभी 
मरहले दर्दो 
ग़म के
बहोत दूर, उनकी  तसल्ली
में  हैं ; अफ़सानों की 
इक लम्बी सी 
कतार,  
जी रहें हैं; अब तक ज़हर -
खाने के बाद, रख
जाओ कोई भी 
गुल, दिल 
चाहे 
जो, अब हमें कुछ भी नहीं  
चाहिए, इतना कुछ 
पाने के बाद,
वो चाहत 
जो 
जान से गुज़रे, मुमकिन 
कहाँ दोबारा उसका 
उभरना, ये शै
है; बहोत 
क़ातिल उभरती है इक बार
जिस्म ओ रूह लेने 
के बाद - - 
 - शांतनु सान्याल  



 

12 मई, 2012


काश वो मिल जाये 

न जाने क्या मज़बूरी थी उसकी, ख़ामोश
निःशब्द, वो गुज़र गया मेरे पहलू
से होकर यूँ ; जैसे हाथों से 
छूट जाय किसी की
उँगलियाँ डूबने 
से पहले, 
मेरी सांसों के साहिल पर था वो खड़ा दूर !
आवाज़ मेरी लौट आई मजरूह 
हमेशा की तरह; वो 
शायद था 
अपनी 
ही जहाँ में मसरूफ़, बहोत चाहा कि छू लूँ 
उसे, लेकिन उस भंवर से निकलना 
न था आसां, न उसने ही हाथ 
बढ़ाया, न  ज़िन्दगी ने 
साथ निभाया,
वो शख्स  
अँधेरे में आख़िर गुम होता गया; बहोत 
दूर - - - 

- शांतनु सान्याल
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Rising Moon by Clifford T. Bailey  

11 मई, 2012

कोई पूछे ज़रा 


गुज़री है रात नंगे पांव दहकते अंगारों से शायद;
क्षितिज पर उभरे हैं; फिर कहीं जा के कुछ
रंगीन नज़ारे, एक शून्यता जो ख़ुद
में समेटे है सारी दुनिया, वो
खोजते हैं अस्तित्व
बिखर जाने
के बाद,
कोई पूछे तो सही; आसमां से शामियाना होने
का दर्द, कितने ही तूफ़ान लिए सीने में
वो रौशन रहा रात भर, आंसुओं
को उसने कहा शबनम;
कितनी मुश्किल
से टपके थे
जज़्बात
कोई क्या जाने, ज़िन्दगी रुकी रही देर तक;
भोर की हलकी रौशनी में तनहा, साँस
थे यायावर प्रतिध्वनि; न जाने
किस ओर मुड़ गए - - -

- शांतनु सान्याल



10 मई, 2012

अभी बहोत बाक़ी है 

फिर जलाएं शमा कि रात अभी बहोत बाक़ी है,
ये अँधेरा न डस जाये कहीं मेरी ख्वाहिश -
निकले ही नहीं, जज़्बात अभी बहोत  बाक़ी है,

वक़्त ने निभाया साथ, उसकी मर्ज़ी से -
ज़रासे घिरे बादल, बरसात अभी बहोत बाक़ी है,  

उस शिफ़र के पार भी है ज़िन्दगी शायद 
दिल के अलावा, कायनात अभी बहोत बाक़ी है,

मेरी सांसों से गुज़र कर, देखो कभी तुम -
ख़्वाब तो देखा, अशरात  अभी बहोत बाक़ी है,

ये जूनून कहीं न कर जाय मुझे राख़ कि 
मुसलसल  दहन , निजात  अभी बहोत बाक़ी है .

- शांतनु सान्याल 
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by Steve Garfield 

08 मई, 2012

उसने कहा था

किस खूबसूरती से उसने की किनाराकशी,
न कोई आवाज़, न ही दर्दे अहसास
मासूम निगाहों से कहा -
शीशा ही था सो
टूट गया,
बूंद बूंद बिखरती रही ज़िन्दगी, दम ब दम
हर ख़ुशी, फूल बिखरे थे ज़मीं  पे
बेतरतीब, मुस्कान लिए
उसने कहा - गुल ही
थे सो झर गए,
इक साँस
जो उभरती रही रात दिन किसी के लिए यूँ
टूट कर, आँखों में  नमी थी या कोई
ख़्वाब की चुभन, पलकों में
ठहरे ज़रा देर ज़रूर,
और फिर गिर
पड़े, उसने
कहा - आंसू ही थे छलके और टूट कर बिखर
गए - -

- शांतनु सान्याल

04 मई, 2012


अनहद संवेदना 

अनुभूति व कल्पना के मध्य कहीं देखा है संभवतः 
उसका अस्तित्व एक मौन साधक की तरह,
अदृश्य, लेकिन है शामिल हर साँस में,
ज्यों मरुभूमि में अप्रत्याशित 
वृष्टि भिगो जाय तप्त 
संध्या, लिख जाय
कोई उम्मीद 
की 
रुबाई, खंडहरों में फैलती वन बेलियों की तरह, है 
वो अंतर्मन की गहराइयों में छुपा, कोई 
गुमनाम कवि की तरह, अनहद 
उसकी भावना, हर पल 
जगाये उपासना,
अलौकिक 
हो कर
भी वो है विद्यमान प्राकृत, किसी साधारण से 
इन्सान की तरह - - - 

- शांतनु सान्याल 
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Painting by Donald Zolan 

02 मई, 2012


लापता मेरा वजूद 

जब कभी उसने कहा, मैंने दिल से सुना
ये और बात थी कि उसने कभी दिल 
से कहा ही नहीं, हर लफ़्ज़ में 
इक नपातुला सा अंदाज़,
वो शख्स अक्सर 
भंवरजाल में 
मुझे डुबो गया, उस ख़्वाब में थीं न जाने 
कितनी सलवटें, ज़िन्दगी चाह कर 
भी कोरा कागज़ हो न सकी, 
लिख गए मौसम मेरे 
दर पे, मेरी ही 
गुमनामी
के इश्तेहार, कि बेघर हूँ आजकल अपने 
ही घर में, ये हस्र, मुझसे पूछता है 
मेरी मासूमियत का सबब, 
कैसे कहूँ  कि बाहोश 
ही मैंने दस्तख़त
की थी,
कभी उसके तहरीरे जज़्बात पर, बेख़ुदी में 
शायद - - - 

- शांतनु सान्याल
creeper 

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past