आवाज़ न दे कोई
ये कैसे ख़ुमार लिए रात भर गई जिस्मो जां,
है ज़माना बहोत दूर सहमा सहमा; और
हम बस चले हैं रफ़्ता रफ़्ता जैसे
लबे कहकशां, न दे हमें
आवाज़ कोई कि
हमने छोड़
दी है ;
नफ़रतों से सुलगती वो जहां, इन ख़लाओं
में है न जाने क्या तिलिस्म गहरा,
जितना ही डूबते जाएँ उतना
ही उन निगाहों में बढ़े
कोई राज़
बेक़रां,
ये ईश्वर की कायनात है .. गहरे रहस्य उसके होने का एहसास कराते हैं ...
जवाब देंहटाएंthanks respected friend
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