कोई क़दम तो बढ़े
कोई तो उठे बज़्म से ललकारते हुए
कि लपक जाए दहकता शोला,
कोई तो आए लहराके यूँ
बादलों की तरह
राख़ होने से
बच भी जाए किसी का आशियाना, -
न पूछ ऐ दोस्त मेरी ज़िन्दगी
की हकीक़त, इक आइना
है जो टूट कर भी
बिखरने नहीं
देता मेरा
वजूद, कि हर बार खाक़ से उभरता
हूँ मैं तूफ़ान की तरह - - -
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