18 जुलाई, 2021

प्रतिबिंबित वर्णमाला - -

कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे
स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के
बीच, कुछ निरीह स्वप्न
नहीं छू पाते सुबह
की पहली
किरण,
बहुत कुछ रहता है असमाप्त इस -
जीवन में, कुछ स्मृतियां बसती
हैं वीरान रेलवे स्टेशन में।
कुछ उम्मीद बिखर
जाते हैं निद्रा -
विहीन
नयन कोर से, सूखी अरण्य लताएं
बंधे होते हैं फिर भी अदृश्य
किसी सिक्त डोर से,
जीने की अदम्य
आस होती
है इस
अप्रत्याशित आरोहण में, बहुत कुछ
रहता है असमाप्त इस जीवन
में। कुछ जीवन वृत्ति
जन्म से ही होते
हैं प्रकृत रूप
से जुझारू,
हर हाल
में तलाश लेते हैं रास्ता अपना, वो
लिख जाते हैं प्रतिबिंबित
वर्णमाला समय के
दर्पण में, कुछ
स्मृतियां
बसती
हैं वीरान रेलवे स्टेशन में।

* *
- - शांतनु सान्याल


21 टिप्‍पणियां:

  1. लिख जाते हैं प्रतिबिंबित
    वर्णमाला समय के
    दर्पण में, कुछ
    स्मृतियां
    बसती
    हैं वीरान रेलवे स्टेशन में।
    सुंदर संदर्भ, स्मृतियाँ और जीवन एक दूसरे के अटूट साथी।

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  2. बहुत सुन्दर सृजन।
    सच कहूं तो दिल की बात लिख दी आपने..♥️

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  3. अत्यंत मार्मिक और हृदय को स्पर्श कर जाने वाली अभिव्यक्ति!

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  4. आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।

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  5. बहुत सुन्दर शांतनु सान्याल जी !
    इन वीरान रेलवे स्टेशनों पर वक़्त और ज़िंदगी, दोनों ही ठहरे हुए से लगते हैं लेकिन इस ठहराव के अन्दर कितनी हलचल है, किसी को नहीं पता है.

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  6. उत्कृष्ट सृजन।
    विरानेपन को जीवंत करती सराहनीय अभिव्यक्ति।
    वाह!

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