26 जुलाई, 2021

बहता हुआ जज़ीरा - -

तहलील ए ज़िन्दगी है बेहिसाब,
बस राज़दान कोई नहीं, टूटे
हुए तारों की ख़बर
रखने वाला
आसमान
कोई
नहीं। बेरहम आंधियों की सर -
परस्ती में गुज़री है ये
ज़िन्दगी, साहिल
ए जुनूं का हूँ
बासिन्दा
सर पे
साइबान कोई नहीं। जाने किस
किनारे जा लगे बहता
हुआ वक़्त का
जज़ीरा,
मौज
दर
मौज ढूंढता हूँ, वैसे तो जान -
पहचान कोई नहीं।
ख़ानाबदोशी है
तक़दीर का
तक़ाज़ा,
जाने
कहाँ कब रुके, जद्दोजेहद में
है निहां सारी ख़ुशी यहाँ
मेहरबान कोई
नहीं।

* *
- - शांतनु सान्याल 

8 टिप्‍पणियां:

  1. मन बंजारे की जद्दोजहद की भावपूर्ण व्यथा कथा | बहुत बढिया शांतनु जी | आपका काव्य दर्शन निशब्द करता है | हार्दिक शुभकामनाएं आपके लिए |

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