27 जुलाई, 2021

कूच से पहले - -

चला जा रहा हूँ निस्र्द्देश्य रास्तों से
अंतहीन है समुद्र का किनारा,
उतरे तो सही वो एक
बार घने बादलों
के हमराह,
उभर
जाए कदाचित डूबा हुआ साँझ तारा,
अंतहीन है समुद्र का किनारा।
उसे समझने की चाह में
सब कुछ भूल सा
चला हूँ, न
जाने
क्यूँ मेरा चेहरा लगता है अजनबी सा
जब कभी आइने से मिला हूँ, हर
तरफ है सावन की मोहमयी
फुहार, लेकिन सूखा पड़ा
सा है मेरे वक्षस्थल
का ओसारा,
अंतहीन
है
समुद्र का किनारा। मशाल वाहकों का
अफ़सोस कैसा, सभी नहीं होते
वंशानुगत पुरोधा, न जाने
किस मोड़ पर निःशब्द
दे जाएं धोखा, उम्र
भर ज़रूरी नहीं
कि लोग
रहें
बा वफ़ा, हर एक की होती है तरजीह
की फ़ेहरिश्त, सफ़र ज़िन्दगी का
रुकता नहीं किसी के लिए,
देह का नगर पड़ा
रहता है ज़मीं
पर बेजान
सा,
जब कूच कर जाए रूह का बंजारा, - -
अंतहीन है समुद्र का किनारा।

* *
- - शांतनु सान्याल
 
 
 

29 टिप्‍पणियां:

  1. देह का नगर पड़ा
    रहता है ज़मीं
    पर बेजान
    सा,
    जब कूच कर जाए रूह का बंजारा, - -
    जीवन के अटल मर्मांतक सत्य का उद्घाटन करती रचना शांतनु जी। कवि दृष्टि समय के पार देखने में सक्षम हैं।

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  2. जीवन के दर्शन कराती बहुत सुंदर रचना,शांतनु भाई।

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 28 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(२८-०७-२०२१) को
    'उद्विग्नता'(चर्चा अंक- ४१३९)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  5. हर एक की होती है तरजीह
    की फ़ेहरिश्त, सफ़र ज़िन्दगी का
    रुकता नहीं किसी के लिए...
    सत्य, जिसे स्वीकार करना बहुत कठिन है।

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  6. गहन एवं हृदयस्पर्शी रचना!!

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  7. बहुत सुन्दर शांतनु सान्याल जी !
    आँखों से सावन लेकिन मन फिर भी प्यासा !

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  8. आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।

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  9. समुद्र का किनारा। मशाल वाहकों का
    अफ़सोस कैसा, सभी नहीं होते
    वंशानुगत पुरोधा, न जाने
    किस मोड़ पर निःशब्द
    दे जाएं धोखा, उम्र
    भर ज़रूरी नहीं
    कि लोग
    रहें...गहनतम रचना।

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  10. क्यूँ मेरा चेहरा लगता है अजनबी सा
    जब कभी आइने से मिला हूँ, हर
    तरफ है सावन की मोहमयी
    फुहार, लेकिन सूखा पड़ा
    सा है मेरे वक्षस्थल
    का ओसारा,
    अंतहीन
    है
    समुद्र का किनारा। ... भावपूर्ण सुन्दर रचना।

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    उत्तर
    1. , सफ़र ज़िन्दगी का
      रुकता नहीं किसी के लिए,
      देह का नगर पड़ा
      रहता है ज़मीं
      पर बेजान
      सा,
      जब कूच कर जाए रूह का बंजारा, - -
      अंतहीन है समुद्र का किनारा।
      अति भावपूर्ण रचना ।अंतर की यात्रा । 🙏

      हटाएं
    2. आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह। Jigyasa Singh

      हटाएं
  11. आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह। सुनीता अग्रवाल "नेह"

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  12. जब कूच कर जाए रूह का बंजारा तो सब कुछ ही शून्य बी है और अनंत भी है ...
    बेमानी है ...
    बहुत गहरे भाव लिए आपकी कविता ...

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