चला जा रहा हूँ निस्र्द्देश्य रास्तों से
अंतहीन है समुद्र का किनारा,
उतरे तो सही वो एक
बार घने बादलों
के हमराह,
उभर
जाए कदाचित डूबा हुआ साँझ तारा,
अंतहीन है समुद्र का किनारा।
उसे समझने की चाह में
सब कुछ भूल सा
चला हूँ, न
जाने
क्यूँ मेरा चेहरा लगता है अजनबी सा
जब कभी आइने से मिला हूँ, हर
तरफ है सावन की मोहमयी
फुहार, लेकिन सूखा पड़ा
सा है मेरे वक्षस्थल
का ओसारा,
अंतहीन
है
समुद्र का किनारा। मशाल वाहकों का
अफ़सोस कैसा, सभी नहीं होते
वंशानुगत पुरोधा, न जाने
किस मोड़ पर निःशब्द
दे जाएं धोखा, उम्र
भर ज़रूरी नहीं
कि लोग
रहें
बा वफ़ा, हर एक की होती है तरजीह
की फ़ेहरिश्त, सफ़र ज़िन्दगी का
रुकता नहीं किसी के लिए,
देह का नगर पड़ा
रहता है ज़मीं
पर बेजान
सा,
जब कूच कर जाए रूह का बंजारा, - -
अंतहीन है समुद्र का किनारा।
* *
- - शांतनु सान्याल
27 जुलाई, 2021
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देह का नगर पड़ा
जवाब देंहटाएंरहता है ज़मीं
पर बेजान
सा,
जब कूच कर जाए रूह का बंजारा, - -
जीवन के अटल मर्मांतक सत्य का उद्घाटन करती रचना शांतनु जी। कवि दृष्टि समय के पार देखने में सक्षम हैं।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंजीवन के दर्शन कराती बहुत सुंदर रचना,शांतनु भाई।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएं
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 28 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार(२८-०७-२०२१) को
'उद्विग्नता'(चर्चा अंक- ४१३९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंहर एक की होती है तरजीह
जवाब देंहटाएंकी फ़ेहरिश्त, सफ़र ज़िन्दगी का
रुकता नहीं किसी के लिए...
सत्य, जिसे स्वीकार करना बहुत कठिन है।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंजीवन का यथार्थ ।
जवाब देंहटाएंशाश्वत सत्य ।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंगहन एवं हृदयस्पर्शी रचना!!
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर शांतनु सान्याल जी !
जवाब देंहटाएंआँखों से सावन लेकिन मन फिर भी प्यासा !
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
जवाब देंहटाएंसमुद्र का किनारा। मशाल वाहकों का
जवाब देंहटाएंअफ़सोस कैसा, सभी नहीं होते
वंशानुगत पुरोधा, न जाने
किस मोड़ पर निःशब्द
दे जाएं धोखा, उम्र
भर ज़रूरी नहीं
कि लोग
रहें...गहनतम रचना।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएं
जवाब देंहटाएंक्यूँ मेरा चेहरा लगता है अजनबी सा
जब कभी आइने से मिला हूँ, हर
तरफ है सावन की मोहमयी
फुहार, लेकिन सूखा पड़ा
सा है मेरे वक्षस्थल
का ओसारा,
अंतहीन
है
समुद्र का किनारा। ... भावपूर्ण सुन्दर रचना।
, सफ़र ज़िन्दगी का
हटाएंरुकता नहीं किसी के लिए,
देह का नगर पड़ा
रहता है ज़मीं
पर बेजान
सा,
जब कूच कर जाए रूह का बंजारा, - -
अंतहीन है समुद्र का किनारा।
अति भावपूर्ण रचना ।अंतर की यात्रा । 🙏
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह। Jigyasa Singh
हटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह। सुनीता अग्रवाल "नेह"
जवाब देंहटाएंजब कूच कर जाए रूह का बंजारा तो सब कुछ ही शून्य बी है और अनंत भी है ...
जवाब देंहटाएंबेमानी है ...
बहुत गहरे भाव लिए आपकी कविता ...
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
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