न जाने कितने हैं लहर, शून्य के अंदर,
शायद तुमने देखा है दूर से सिर्फ
नीले कांच का समंदर, प्राण
विहीन शंख - सीप पड़े
रहते हैं साहिल ए
निजात पर,
लौटती
नहीं
है दिल की आवाज़, सुदूर बातीघर से
टकरा कर, शायद तुमने देखा है
दूर से सिर्फ नीले कांच का
समंदर। रहती है सभी
को, एक निरापद
आश्रय की
तलाश
ये और बात है कि हर एक ज़िन्दगी
को नहीं मिलता यहाँ एक रात
का निवास, लौट जाते हैं
सभी पखेरू अपने
नीड़ की ओर,
थम जाती
है रेल
पटरियों की झनझनाहट दूरगामी
ट्रेन जाने के बाद, रात के
साए में उठते हैं निर्वासन
के बवंडर, पनाह के
एवज में लोग
लूट लेते
हैं सब
कुछ, बिखरा होता है अवशोषित -
अस्तित्व शेष प्रहर, शून्यता
के सिवा कुछ नहीं होता
है तब अंदर बाहर,
न जाने कितने
हैं लहर,
शून्य के अंदर,शायद तुमने देखा
है दूर से सिर्फ नीले कांच का
समंदर, संभवतः कोई
रंगीन सपनों का
मछली -
घर।
* *
- - शांतनु सान्याल
21 जुलाई, 2021
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न जाने कितने हैं लहर, शून्य के अंदर,
जवाब देंहटाएंशायद तुमने देखा है दूर से सिर्फ
नीले कांच का समंदर
बहुत सुन्दर सृजन
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबिखरा होता है अवशोषित -
जवाब देंहटाएंअस्तित्व शेष प्रहर, शून्यता
के सिवा कुछ नहीं होता
है तब अंदर बाहर,
न जाने कितने
हैं लहर,
शून्य के अंदर,शायद तुमने देखा
है दूर से सिर्फ नीले कांच का
समंदर,...अहसासों की सुंदरतम अभिव्यक्ति ।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंलाजवाब।🌻
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
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