04 जुलाई, 2021
अनाम फूल की ख़ुश्बू - -
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू,
बिखरती, तैरती, उड़ती,
नीले नभ और रंग
भरी धरती के
बीच,
कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से
मिलने लाए सात सुरों
में जीवन के गीत,
वो कोई अबाध
नदी कभी
इस
तट कभी उस किनारे गाँव
गाँव, घाट घाट बैरागी
मनवा बंधना
कब जाने
पीपल
रोके,
बरगद टोके प्रवाह बदलती
वो कब रुक पाती,
कलकल सदा
बहती जाती
वो कोई
अनुरागी मुस्कान अधर
समेटे मधुमास, राह
बिखेरे अनेकों
पलास,
हो
कोई अपरिभाषित प्रीत - -
आत्मीयता का नाम
न दो ख़ुश्बू, पंछी
और नदी
रुक
नहीं पाते, रोको लाख मगर,
ये बंजारे भटकते जाते
सागर तट के
घरौंदें ज्यों
बहते
जाये उन्मुक्त लहरों के बीच।
* *
-- शांतनु सान्याल
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०७-०७-२०२१) को
'तुम आयीं' (चर्चा अंक- ४११८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबहुत ही अच्छी और गहन रचना।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंवाह!!कितनी सुंदरता से तराशा है हर भाव को
जवाब देंहटाएंसापेक्षता के सटीक उदाहरण।
अतिसुंदर।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंसागर तट के घरौंदे ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शब्द रचना। प्रकृति के उपमानों का अति सुंदर प्रयोग। सादर।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर भावसिक्त रचना ।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति,शांतनु भाई।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएं