04 जुलाई, 2021

अनाम फूल की ख़ुश्बू - -


वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू,
बिखरती, तैरती, उड़ती,
नीले नभ और रंग
भरी धरती के
बीच,
कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से
मिलने लाए सात सुरों
में जीवन के गीत,
वो कोई अबाध
नदी कभी
इस
तट कभी उस किनारे गाँव
गाँव, घाट घाट बैरागी
मनवा बंधना
कब जाने
पीपल
रोके,
बरगद टोके प्रवाह बदलती
वो कब रुक पाती,
कलकल सदा
बहती जाती
वो कोई
अनुरागी मुस्कान अधर
समेटे मधुमास, राह
बिखेरे अनेकों
पलास,
हो
कोई अपरिभाषित प्रीत - -
आत्मीयता का नाम
न दो ख़ुश्बू, पंछी
और नदी
रुक
नहीं पाते, रोको लाख मगर,
ये बंजारे भटकते जाते
सागर तट के
घरौंदें ज्यों
बहते
जाये उन्मुक्त लहरों के बीच।
* *
-- शांतनु सान्याल



14 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०७-०७-२०२१) को
    'तुम आयीं' (चर्चा अंक- ४११८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बहुत ही अच्छी और गहन रचना।

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  3. वाह!!कितनी सुंदरता से तराशा है हर भाव को
    सापेक्षता के सटीक उदाहरण।
    अतिसुंदर।

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  4. सागर तट के घरौंदे ....
    बहुत सुंदर शब्द रचना। प्रकृति के उपमानों का अति सुंदर प्रयोग। सादर।

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  5. बहुत सुन्दर भावसिक्त रचना ।

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  6. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति,शांतनु भाई।

    जवाब देंहटाएं

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