इस यक़ीं में गुज़ारी है, रात -
कि निगार ए सहर आए,
मिटा जाए रूह का
अंधेरा ऐसा
कोई
नामा-बर आए। उम्र भर की
तिश्नगी को मिल जाए
ज़रा सी राहत, भिगो
जाए सीने की
दहन, वो
बारिश
तरबतर आए। इस बस्ती के
चार - अतराफ़ हैं बे -
इंतिहा ख़ामोशी,
डूबने से
पहले
काश कहीं से कश्तियों की
ख़बर आए। मीर ए
क़ाफ़िला की
पुरअसरार
नियत
सभी
जानते हैं, अपाहिजों का है
जुलूस, जो बाब ए
असद से डर
जाए।
इस
बेज़ुबानी के असर - अंदाज़
हैं, बहोत ही ज़हरीले,
शाह को पता भी
न चले, कब
ताज सर
से
उतर जाए। माह कामिल
की रात है, हर सिम्त
है रौशनी के धारे,
कोह -आतिश-
फ़िशाँ की
तरह
आवाज़ न उभर आए। इस
यक़ीं में गुज़ारी है रात
कि निगार ए -
सहर आए।
* *
- - शांतनु सान्याल
अर्थ :
१. बाब ए असद - सिंहद्वार
२. मीर ए क़ाफ़िला - यात्रा का नायक
३. नामा-बर - पत्र वाहक
४. कोह -आतिश- फ़िशाँ - ज्वालामुखी पर्वत
५ निगार - ए - सहर - सुहानी सुबह
29 जुलाई, 2021
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जवाब देंहटाएंकि निगार ए सहर आए,
मिटा जाए रूह का अंधेरा,
ऐसा कोई, नामा-बर आए....
आपकी बेहतरीन रचनाओं मे अब शुमार ये रचना वाकई लाजवाब है। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय शान्तनु जी। मजा आ गया।।।।
आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
जवाब देंहटाएंवाह,बहुत सुंदर।🌼♥️
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंवाह,लाजवाब गजल।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंयह तो ग़ज़ब की शायरी है।
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंआपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।
हटाएं