29 जुलाई, 2021

कोई तो इस रहगुज़र आए - -

इस यक़ीं में गुज़ारी है, रात -
कि निगार ए सहर आए,
मिटा जाए रूह का
अंधेरा ऐसा
कोई
नामा-बर आए। उम्र भर की
तिश्नगी को मिल जाए
ज़रा सी राहत, भिगो
जाए सीने की
दहन, वो
बारिश
तरबतर आए। इस बस्ती के
चार - अतराफ़ हैं बे -
इंतिहा ख़ामोशी,
डूबने से
पहले
काश कहीं से कश्तियों की
ख़बर आए। मीर ए
क़ाफ़िला की
पुरअसरार
नियत
सभी
जानते हैं, अपाहिजों का है
जुलूस, जो बाब ए
असद से डर
जाए।
इस
बेज़ुबानी के असर - अंदाज़
हैं, बहोत ही ज़हरीले,
शाह को पता भी
न चले, कब
ताज सर
से
उतर जाए। माह कामिल
की रात है, हर सिम्त
है रौशनी के धारे,
कोह -आतिश-
फ़िशाँ की
तरह
आवाज़ न उभर आए। इस
यक़ीं में गुज़ारी है रात
कि निगार ए -
सहर आए।

* *
- - शांतनु सान्याल
अर्थ :   
१.  बाब ए असद - सिंहद्वार   
२. मीर ए क़ाफ़िला - यात्रा का नायक
३. नामा-बर - पत्र वाहक
४. कोह -आतिश- फ़िशाँ - ज्वालामुखी पर्वत
५ निगार - ए - सहर - सुहानी सुबह



13 टिप्‍पणियां:

  1. इस यक़ीं में गुज़ारी है, रात -
    कि निगार ए सहर आए,
    मिटा जाए रूह का अंधेरा,
    ऐसा कोई, नामा-बर आए....
    आपकी बेहतरीन रचनाओं मे अब शुमार ये रचना वाकई लाजवाब है। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय शान्तनु जी। मजा आ गया।।।।

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  2. आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।

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