28 जुलाई, 2021

देशांतर - -

दूर दूर तक कोई सीमान्त प्रहरी नहीं,
उम्र के पल्लव झर जाने से पहले,
आओ इस सजल निशीथ में
देशांतर हो जाएं, भीगे
उड़ान पुल से हो
कर सुदूर
नील
पर्वतों से उठते धुंध के समानांतर
खो जाएं। बिखरे पड़े रहने दो
विच्छिन्न अतीत के पृष्ठ,
किताब ए ज़िन्दगी
को फिर इक
नया
जिल्द क्यों न हम चढ़ाएं, वृष्टि में
भीगे फूलों को न छुओ, ये
एहसास हैं बड़े नाज़ुक,
छूते ही वृन्त से
झर जाएंगे,
इस पल
को
समो लो, रूह की अथाह गहराइयों
तक, इस के पहले कि हम और
तुम कालांतर हो जाएं, उम्र
के पल्लव झर जाने से
पहले, आओ इस
सजल निशीथ
में देशांतर
हो जाएं।

* *
- - शांतनु सान्याल
   
 






 

12 टिप्‍पणियां:

  1. इस पल को समो लो, रूह की अथाह गहराइयों तक, इस के पहले कि हम और तुम कालांतर हो जाएं। बहुत अच्छी बात, बहुत अच्छे भाव, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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  2. दूर दूर तक कोई सीमान्त प्रहरी नहीं,
    उम्र के पल्लव झर जाने से पहले,
    आओ इस सजल निशीथ में
    देशांतर हो जाएं,
    बेहद खूबसूरत सृजन ।

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 29 जुलाई 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  4. बिखरे पड़े रहने दो
    विच्छिन्न अतीत के पृष्ठ,
    किताब ए ज़िन्दगी
    को फिर इक
    नया
    जिल्द क्यों न हम चढ़ाएं...सही कहा आपने अतीत को कुरेदने से क्या मिलने वाला है,अच्छा है,बीती हुई बातों को भुलाकर जिंदगी में आगे बढ़ना।..सुंदर भावों का सृजन।

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  5. उत्तर
    1. आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह।

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    2. वाह बहुत सुन्दर !
      ज़िन्दगी में खो दिया जो, क्यों करूं उसका हिसाब,
      आज अपने हाथ से, तक़दीर लिखने जा रहा हूँ.

      हटाएं
    3. आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह। गोपेश मोहन जैसवाल

      हटाएं

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