नेपथ्य में कहीं खो गए सभी
उन्मुक्त कंठ, अब तो
क़दमबोसी का
ज़माना है,
कौन
सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - -
मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ
जोड़े हुए, कौन
उठेगा
लिए सिंह गर्जना, यहाँ तो -
ख़ामोशी का ज़माना
है। गुरु द्रोण ने
की है पुनः
घोषणा,
न
जाने किस ओर जाएंगे ये
नौनिहाल, अभी तो
स्कूल छोड़ बेच
रहे हैं वो
सब्ज़ियाँ, दो वक़्त की मिल
जाएँ कम से कम रोटियां,
न कोई स्मार्ट फोन,
न कोई
नेटवर्क, कभी आओ घुटने -
तक पतलून उठाए,
तो आप जान
जाएंगे
कितना अच्छा है विकास जी
का हाल, फिर भी वही जी
हुज़ूरी, डी एन ए में
शामिल है हमारे
मेरुदंड का
झुकना,
लिहाज़ा नहीं बदलेगी हमारी
चाल ढाल, कितना अच्छा
है विकास जी
का हाल !
* *
- - शांतनु सान्याल कोई नहीं है दूर तक - - video form
01 सितंबर, 2020
कोई नहीं है दूर तक - -
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जवाब देंहटाएंआपका अमूल्य मंतव्य प्रेरणास्रोत से कम नहीं - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह ।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 01 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह ।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना!!;!!
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