कहाँ हैं पुरानी फ्रेम में नयी तस्वीर वाले,
रोज़ उभरते हैं दर्द ओ ग़म के किस्से,
कहीं चीख भी नहीं पाते टूटी फूटी
शरीर वाले, वही उज्जवल
वर्ण का अहंकार, वही
धर्म के ठेकेदार,
वही हम
और
तुम टूटी फूटी तक़दीर वाले। आज भी -
रहम की भीख मांगते हैं लोग,
आज भी सदियों की तरह
जीने का अधिकार
चाहते हैं लोग,
आज भी
वही
पुराने आईने में रामराज का बिम्ब - -
तलाशते हैं लोग। यूँ तो घरों में
अभी तक है गहन अँधेरा,
मंदिर नदी घाटों में
है उजाला तो
रहे, मोक्ष
के लिए
शायद चाहिए वसुधैव कुटुंबकम का - -
सवेरा।
* *
- - शांतनु सान्याल
30 सितंबर, 2020
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद - - नमन सह।
हटाएंबहुत ही सुंदर सराहनीय रचना ,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद - - नमन सह।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 30 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअसंख्य धन्यवाद - - नमन सह।
जवाब देंहटाएं