30 सितंबर, 2020

सोने की चौखट -

कहाँ हैं पुरानी फ्रेम में नयी तस्वीर वाले,
रोज़ उभरते हैं दर्द ओ ग़म के किस्से,
कहीं चीख भी नहीं पाते टूटी फूटी
शरीर वाले, वही उज्जवल
वर्ण का अहंकार, वही
धर्म के ठेकेदार,
वही हम
और
तुम टूटी फूटी तक़दीर वाले। आज भी -
रहम की भीख मांगते हैं लोग,
आज भी सदियों की तरह
जीने का अधिकार
चाहते हैं लोग,
आज भी
वही
पुराने आईने में रामराज का बिम्ब -  -
तलाशते हैं लोग। यूँ तो घरों में
अभी तक है गहन अँधेरा,
मंदिर नदी घाटों में
है उजाला तो
रहे, मोक्ष
के लिए
शायद चाहिए वसुधैव कुटुंबकम का - -
सवेरा।

* *
- - शांतनु सान्याल  

   


6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर सराहनीय रचना ,सादर नमन आपको

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 30 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past