26 सितंबर, 2020

यात्री विहीन सफ़र - -

उस रेशमी अंधकार में जान पाना
नहीं था आसान, कहाँ हैं
अंतिम घाट की
सीढ़ियां और  
कहाँ
है नदी गह्वर, सिर्फ़ अंदाज़ से -
जीवन बढ़ता गया, उसकी
प्रणय गभीरता की
ओर, अदृश्य
भावनाओं
की
उन जलज लतिकाओं में, खोजता
रहा उसके सीने का मर्मस्थल,
सिर्फ अनुमान से अधिक
कुछ भी न था, कभी
किनारे से सुना
उसका
अट्टहास, और कभी मृत सीप के -
खोल में देखा चाँदनी का
उच्छ्वास, वो कोई
सुदूरगामी ट्रेन
थी मध्य -
रात
की, यात्री विहीन, देवदार अरण्य
के स्टेशन में रुकी कुछ पल,
अंतिम प्रहर के स्वप्नों
को बिठाया और
सुदूर कोहरे
के देश
की ओर गई निकल, निष्पलक -
मैं देखता रहा उन्हें दूर तक,
शायद उनका गंतव्य
हो क्षितिज के
उसपार,
किसी शिशु की निश्छल मुस्कान
में हों कदाचित उनका घर,
किसी मरुभूमि के टीले
पर वो मेघ कण की
तरह जाएं
बिखर,
किसी बंजारे प्राण को मिल जाए -
गुमशुदा अपना घर।
* *
 - - शांतनु सान्याल


 
 
 



10 टिप्‍पणियां:

  1. किसी शिशु की निश्छल मुस्कान
    में हों कदाचित उनका घर,
    किसी मरुभूमि के टीले
    पर वो मेघ कण की
    तरह जाएं
    बिखर,
    किसी बंजारे प्राण को मिल जाए -
    गुमशुदा अपना घर।

    अदभुत,बहुत ही सुंदर सृजन,सादर नमन आपको

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 27 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 28 सितंबर 2020) को "बेटी दिवस" (चर्चा अंक-3838) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

    जवाब देंहटाएं
  4. किसी शिशु की निश्छल मुस्कान
    में हों कदाचित उनका घर,
    किसी मरुभूमि के टीले
    पर वो मेघ कण की
    तरह जाएं
    बिखर,
    किसी बंजारे प्राण को मिल जाए -
    गुमशुदा अपना घर।
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past