राजधानी से मायानगरी तक देश है
सिमटा हुआ, तुम किस उपांत
से आए हो किसी को कुछ
भी नहीं पता, बस
सिमटे रहो
सोलह
वर्ग
में, तुम हो वर्णमाला से बहिष्कृत,-
तुम्हें कोई नहीं जोड़ेगा उपसर्ग
में। रंगमंच में क्या चल
रहा प्रहसन या
गंभीर कोई
नाटक,
तुम
सिर्फ़ हो मूक दर्शक तुम्हें सोचने - -
समझने की कोई ज़रूरत नहीं,
रोना हो या हंसना तुम
बजाओ ताली
वरना
खुला हुआ है प्रस्थान का फाटक - ।
* *
- - शांतनु सान्याल
12 सितंबर, 2020
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जवाब देंहटाएंआपका आभार, नमन सह।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 12 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपका आभार, नमन सह।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंआपका आभार, नमन सह।
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