गुलमोहर की टहनियों में कुछ
मुलायम धूप छोड़ जाना,
अधूरी ही सही, सीने
के किसी कोने
में इत्र का,
ज़रा
सा एहसास छोड़ जाना, फिर -
कभी अगर मिले किसी
अनचाहे मोड़ पर,
तो कम से
कम
दुआ सलाम हो जाए, ग़लत ही
सही कोई ठिकाना, मेरे
पास छोड़ जाना, यूँ
तो पतझरों से
आबाद है
मेरी
दुनिया, रेशमी यादों के, धुंधले
ही सही, कुछ मधुमास छोड़
जाना, हर तरफ हैं मृग -
तृष्णा के बादल,
शून्य में
कहीं,
हो सके तो सजल ज़िन्दगी का
आभास छोड़ जाना, मुझे
ज्ञात है रस्मे दुनिया
का फ़रेब, कुछ
मरहमी
स्पर्श
अनायास छोड़ जाना, ग़लत ही
सही कोई ठिकाना, मेरे
पास छोड़ जाना।
* *
- - शांतनु सान्याल
17 सितंबर, 2020
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सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार - - नमन सह ।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ सितंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आपका हार्दिक आभार - - नमन सह ।
जवाब देंहटाएंबेजोड़ लेखन
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंहर तरफ हैं मृग -
जवाब देंहटाएंतृष्णा के बादल,
शून्य में
कहीं,
हो सके तो सजल ज़िन्दगी का
आभास छोड़ जाना -- मर्मस्पर्शी ...
आपका हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत बढिया ।
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार - - नमन सह।
हटाएंहो सके तो सजल ज़िन्दगी का
जवाब देंहटाएंआभास छोड़ जाना, मुझे
ज्ञात है रस्मे दुनिया
का फ़रेब, कुछ
मरहमी
स्पर्श
अनायास छोड़ जाना
वाह!!!
आपका हार्दिक आभार - - नमन सह।
जवाब देंहटाएं