मेरी यात्रा का अंत नहीं, न ही - -
कोई अल्प विराम, कभी
अंकुरण की भूमि
कभी परित्यक्त
बंजर ज़मीं,
मेरी यात्रा
का अंत
नहीं, कभी मांग में रक्तिम पलास
और कभी मेरा पता वृन्दावन
के आसपास, कभी आँचल
में कच्चे धान की महक,
और कभी एक मूठ
चावल भी
नसीब
नहीं, मेरी यात्रा का अंत नहीं, - -
हवाओं में था शिउली
फूलों का गंध,
पितृ पक्ष
भी था
समाप्ति की ओर, मातृ वंदना थी
पुनःजागृत, लेकिन मेरी जगह
कहीं नहीं, मेरी यात्रा का
अंत नहीं, इधर
भगवती का
आगमन
उधर
गांव से मेरा निष्कासन, एक सफ़ेद
साड़ी और गले में तुलसी माला
इसके सिवाय मेरे पास
कुछ भी नहीं, मेरी
यात्रा का अंत
नहीं - -
* *
- - शांतनु सान्याल
14 सितंबर, 2020
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