27 सितंबर, 2020

निजस्व वानप्रस्थ - -

वैराग्य के मुखौटे को रख आया है जीवन
उसी दिवार के मायावी कील पर, यहीं
पर सत्य का है बहु प्रतिबिम्ब,
अंदर के कलंकित नायक
का आर्विभाव ! ख़ुद
के अंदर ख़ुद
को खो
के
पाना, चक्रव्यूह तोड़ के अभिमन्यु का - -
पुनर्जन्म, अनावृत्त शरीर का
अदृश्य अंगार शयन, चेहरे
पर जमे परतों का
क्रमशः पतन,
उज्जवल
रात में
हिमनद का अदृश्य गहराई में विगलन, -
आँखों के सामने चरमरा के टूटता
अंतर्मन का दर्पण ! इन्हीं
टूट - फूट के मध्य
छुपा होता है
उद्भासित
रहस्य
का जगत, पाप पुण्य का लेखाचित्र - - -
पुनः प्रवर्तन, उष्ण आंच से
निस्तार, परिपूर्ण
जीवन की
मन्त्र
प्राप्ति, स्वमूल्यांकन की पुनरावृत्ति, - -
चार दीवारों में रह कर भी छू न
पाए जिसे दुनिया की कोई
रंगीन आसक्ति, ख़ुद
के भीतर निजस्व
वानप्रस्थ।
 * *
- - शांतनु सान्याल
 
     


  

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 29 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है............ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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