16 सितंबर, 2020

यूँ ही क्यों डरते हो - -

मचान पर वो हैं और हम शिकार
हेतु मवेशी, खूंटी में बंधे हुए
चारा, आखेट नहीं
थमता रात
भर, हर
एक की नज़र है चमकती आँखों
की ओर, कौन सुनेगा घुप्प
अँधेरे में छटपटाहट
हमारा। फटी हुई
चादर खींचता
हुआ
मासूम को मालूम नहीं जीवन - -
मरण का अंतर, शायद उसी
श्रमिक ट्रेन से एक दिन
वो भी लौट जाएगा,
उसी शहर के
अंदर।
यहाँ कोई भी नहीं भूखा, ये और
बात है कि लोग फ़र्ज़ी खबर
से मर जाते हैं बेवजह,
मचान के ऊपर
बैठे हैं हमारे
पुरोधा,
किसी को कुछ नहीं होगा न जाने
क्यों, लोग डर जाते हैं बेवजह।
* *
- - शांतनु सान्याल   
 
 

2 टिप्‍पणियां:

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past