05 सितंबर, 2020

रंगीन यवनिका - -

बारिश अब जा चुकी है सीमान्त
पार, किसी के जाने के बाद
ही उसकी कमी महसूस
होती है,चाहे पलकों
में हों या हवाओं
में उड़ती
हुई
अदृश्य बूंदें, कुछ न कुछ नमी - -
महसूस होती है। जाने और
आने का क़रारनामा जो
भी हो, किन्तु मोह -
पाश से मुक्ति
आसां नहीं,
माटी के
इस वजूद का विलीन होना इतना
भी सहज नहीं, ये भी सच है,
कि साथ मेरे कोई भी
कारवां नहीं।
पृथ्वी
के
आख़री छोर पर भी तुम मुझे - -
पाओगे, चाहे कर लो
महाशून्य पर
विजय, इस
यथार्थ
जीवन से कभी न जीत पाओगे।
अकस्मात सभी मज़ार ओ
हरम, पूजा पाठ और
धरम, शब्दहीन
हो गए,
गुज़रते ही अवांछित तूफ़ान, सभी
मूक चेहरे आत्मप्रसंसा में
लीन हो गए - -
* *
- - शांतनु सान्याल

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 07 सितम्बर 2020 को साझा की गयी है............ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. क्या खूब ल‍िखा है शांतनु जी...आख़री छोर पर भी तुम मुझे - -
    पाओगे, चाहे कर लो
    महाशून्य पर
    विजय...वाह

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past