20 सितंबर, 2020

उड़ान से पूर्व - -

छायापथ से दूर कहीं महाशून्य में
जाएं निकल, न जन्म न मृत्यु
न शोक न हर्ष, शीर्षक हीन
सभी पात्र, आलोकित
अणुओं में जाएं
मिल। कुछ
मोह -
पाश हैं बहुत ज़िद्दी रख आओ उन्हें
पहुँच के बाहर, कुछ चंद्र रश्मि
के वस्त्र, कुछ निहारिका
के रंग, अविरत बहाव
जहाँ समय भी
जाए ठहर।
सभी
कांच के थे प्रतिश्रुति, सपनों के - -
आघात से टूटे, न संदूक, न
गोपन कोई दलील, न 
दस्तावेज़, जिसे
जो लूटना
हो
ख़ुशी से लूटे। हम विनील देश के हैं
अधिवासी, हमारा कोई स्थिर
ठिकाना नहीं, शून्य से
आए, शून्य में ही
खो जाना है,
बूढ़ा
बरगद तुम्हारा, गंगा तट को छूता
छाँव तुम्हारा, मंदिर - मस्जिद,
पूरा गाँव तुम्हारा, हम
ठहरे परियायी
पाखी मुँह
अंधेरे
उड़ जाना है, शून्य से आए, शून्य में
ही खो जाना है।
* *
- - शांतनु सान्याल 
  


 

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