18 सितंबर, 2020

कल का सुख - -

कुछ महीन बूंदें ढक कर रखना
चाहे आगामी सुख, कच्चे
धान के शीर्ष में है कहीं
पिछले पहर की
अगोचर
कथा,
तुम्हारे अंदर है कहीं वृष्टि प्रदेश,
ऊसर पल चाहें तुम्हें छूना,
कदाचित तुम जान
पाओ निर्जन
द्वीप की
व्यथा ।
कितना कुछ मिल जाए जीवन
में फिर भी अन्तःस्थल का
स्रोत और अधिक पाना
चाहे, कुहासे के उस
पार है भूलभुलैया
की घाटी,
मेरा
मन अविरल बह कर तुम तक
आना चाहे । आज भी है
अपनी जगह वयोवृद्ध
शुक्र तारा, मिलती
नहीं छुट्टी निवृत
क्यों न हो
जीवन
सारा,
कुछ भी कर लो मुक्ति पथ नहीं
सहज, डूब कर ही मिलता
है अंततः गहन
किनारा ।
**
- - शांतनु सान्याल







14 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२०-०९-२०२०) को 'भावों के चंदन' (चर्चा अंक-३०३८) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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  2. सुंदर आध्यात्म भाव रचना,सच व्यक्ति की तृष्णा का अंत नहीं।
    सार्थक सृजन।

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  3. सौंदर्य और कलात्मक बोध मन को हलके से स्पर्श करते हुए ना जाने कब बंगाल की गूढ़ गहन शैली में प्रवेश कर जाते हैं आपकी कविताओं में.... पता ही नहीं चलता। मैंने आपकी बहुत सारी कविताएँ पढ़ी हैं।

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