30 सितंबर, 2023

स्पर्शानुभूति - -


कोई बहाना चलो खोंजे, मधुमास की
वापसी में है, बहुत देर अभी, इक
अहसास जो भर जाए रिक्त
ह्रदय में हरित स्पर्श,
फिर है मुझे
तेरी
आँखों में कोई तलाश, किसी रास्ते में
यूँ ही चलें दूर तक, शायद कहीं न
कहीं मिल जाए ओस की
बूंदों का लापता
ठिकाना
या
कहीं से इक टुकड़ा सजल मेघ, उड़ -
आए, और कर जाए सिक्त
तृषित अंतरतम, चलो
खेलें बचपन के
विस्मृत
खेल,
फिर बाँध जाओ, स्नेह भरे हाथों से
मेरी आँखों में अपने आँचल की
छाँव, और दो आवाज़
धुंध भरी वादियों
से बार बार,
कुछ
तो जीवन में आये पुनः आवेग तुम्हें
नज़दीक से छूने की - -

* *
- शांतनु सान्याल


कहीं न कहीं - -

हर इक नज़र को चाहिए ख्वाबों की 
ज़मीं, हर इक के दिल में होता 
है, सहमा सहमा सा 
बचपना कहीं 
न कहीं, 
बुरा इसमें कुछ भी नहीं, कोई लम्हा 
जो बना जाए ज़रा सा जुनूनी !
हर इक वजूद में होता है, 
गिरना सम्भलना 
कहीं न 
कहीं, कोई नहीं दुनिया में इंसान - -
कामिल, हर शख्स चाहता है 
छद्म मुखौटे से निकलना

कहीं न कहीं, 
फ़लसफ़ों 
की वो 
उलझन भरी बातों से ज़िन्दगी नहीं 
गुज़रती, हर दिल चाहता है 
यहाँ,ज़रा सा बहकना 
कहीं न कहीं !

* * 
- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
dreamy pastel

25 सितंबर, 2023

ख़िराज ए शायरी - -

दुनिया की निगाहों से बच के निकलना
है बहोत आसां, मुश्किल हो बहोत
जब, अक्स चाहे सूरत ए हिसाब
अपना, वो आदमी जो
उम्र भर ओढ़ता
रहा जाली
चेहरा, आख़री वक़्त था बहोत बेबस - -
इक वाक़िफ़ आईने के लिए,
दरअसल, हम ख़ुद ही
लिखते हैं अपने
लिए ख़िराज
ए शायरी !
ज़िन्दगी भर का किरदार रहता है दर्ज,
नमूंदार आख़रीन नफ़स में - -

* *
- शांतनु सान्याल  

دنیا کی نگاہوں سے بچ کے نکلنا
ہے بهوت آساں ، مشکل ہو بهوت
جب، عکس چاہے صورت حساب
اپنا، وہ آدمی جو
عمر بھر اوڑھتا
رہا جعلی
چہرہ، آخری وقت تھا بهوت بے بس - -
اک واقف آئینے کے لئے،
دراصل، ہم خود ہی
لکھتے ہیں اپنے
لئے خراج
اے شاعری!
زندگی بھر کا کردار رہتا ہے درج،
نمودار آخرین نفس میں - -

* *
-  شانتنو سانیال



11 सितंबर, 2023

प्रवाहमान - -

रुख़्सत हो चुका अदृश्य तूफ़ान,
साहिल पे छोड़ कर बर्बादी के
निशान, फिर लौट आएंगे
इक दिन बेघर परिंदे,
मौसम बदलते
ही खुल
जाएगा बंद ख़्वाबों का आसमान,
पुनः लगेंगे नदी किनारे मेले,
बूढ़े बरगद की शाखों में
फिर सजेंगे नए घरौंदे,
ऋतु चक्र कभी
रुकता नहीं,
किसी
के रहने या न रहने से कारोबार ए
दुनिया थमता नहीं, मंदिर के
सांध्य प्रदीप के साथ ही
सुबह का होता है
नया आह्वान,
कोई न
कोई
रहता है अदृश्य तत्पर ख़ाली स्थान
भरने के लिए, ज़िन्दगी पूरा
मौक़ा देती है बिखर कर
दोबारा संवरने के लिए,
नदी के जलधार सदा
रहते हैं प्रवाहमान ।
रुख़्सत हो चुका
अदृश्य तूफ़ान,
साहिल पे
छोड़
कर बर्बादी के निशान ।
- शांतनु सान्याल 

न बुझाओ चश्म ए शमा - -

न बुझाओ चश्म ए शमा इतनी जल्दी, 

सितारों की महफ़िल में है कुछ 
विरानगी अब तलक, न 
गिराओ राज़ ए 
पर्दा इस 
तरह वक़्त से पहले कि गुलों में हो 
वहशत बेवजह, अभी तो इक 
तवील ख़ुश्बुओं का सफ़र 
है बाक़ी, हमने कहाँ 
सिखा है अभी 
तक इक 
मुश्त मुस्कुराना, रहने दो यूँ ही बूंद 
बूंद इश्क़ ए नूर का टपकना, कि 
तपते ज़िन्दगी को कुछ 
तो संदली अहसास 
हो, खुले रहें 
कुछ देर 
और तुम्हारे निगाहों के दरीचे कि -
ज़िन्दगी महकना चाहती है 
आख़री पहर तक यूँ 
ही मद्धम - मद्धम,
लम्हा - लम्हा,
दम ब 
दम सुबह होने तलक, न बुझाओ 
चश्म ए शमा इतनी जल्दी, 
सितारों की महफ़िल 
में है कुछ विरानगी अब तलक - - -

* * 
- शांतनु सान्याल 
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/

07 सितंबर, 2023

दुनिया की सच्चाई - -

सजल पलकों के किनारे, ये कैसा
शहर बसा गया कोई। सरहद
पार करने की तमन्ना
निकली बहोत ही
महलक,
सुबह से पहले, चारों तरफ़  कँटीले
तार, लगा गया कोई। उमर
इन ख़्वाबों की कभी
लम्बी होती
नहीं
कांच की तरह, रेशमी पंख ओढ़ने -
से पहले जिस्म ओ जां जगा
गया कोई। ये सर ज़मीन
ही मेरा है, पहला और
आख़री पनाहगाह,
आईने की
तरह
बेबाक, मयार ए  हैसियत बता - -
गया कोई। मुझे अपने
तजुर्बा ए ज़िन्दगी
पे बेहद नाज़
था लेकिन -
चंद
बूंदों में सिमटी हुई, दुनिया की
सच्चाई दिखा गया कोई।

* *
- शांतनु सान्याल




 

01 सितंबर, 2023

अशेष अंतर्यात्रा - -

समयानुसार हर चीज़ होते जाती है आवरणविहीन,
वयोवृद्ध वृक्ष, जीर्ण पत्तों का करते हैं परित्याग,
प्रकृत सत्य है परिवर्तन, ऋतु हो या अहिराज,
जन्म - मृत्यु के इस चक्र में एक रेखा
रहती है बहुत ही नाज़ुक सी
महीन, समयानुसार हर
चीज़ होते जाती है
आवरणविहीन।
कमर बंध
में गुथे
रहते हैं मोह के कानी कौड़ी, निर्वस्त्र देह से लिपटे
रहते हैं अतृप्त, अदृश्य अग्नि कण, हृदय कोण
में छुपे रहते हैं अनगिनत अभिलाषों के
अंधकार, अतिरिक्त चाह के लिए
अंतरतम करता है हाहाकार,
तमाम रात्रि अविराम
यात्रा, फिर भी
सुबह का
नहीं मिलता
कोई
सुराग, सब कुछ मिलने के बाद भी -
शून्यता करती है विराज, दरअसल हम
ख़ुद से ख़ुद को नहीं कर पाते हैं
आज़ाद, अंतर्यात्रा रहती है
यथावत अंतहीन,   
समयानुसार
हर चीज़
होते
जाती है आवरणविहीन - -
- शांतनु सान्याल
 

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past