हर इक नज़र को चाहिए ख्वाबों की
ज़मीं, हर इक के दिल में होता
है, सहमा सहमा सा
बचपना कहीं
न कहीं,
बुरा इसमें कुछ भी नहीं, कोई लम्हा
जो बना जाए ज़रा सा जुनूनी !
हर इक वजूद में होता है,
गिरना सम्भलना
कहीं न
कहीं, कोई नहीं दुनिया में इंसान - -
कामिल, हर शख्स चाहता है
छद्म मुखौटे से निकलना
कहीं न कहीं,
फ़लसफ़ों
की वो
उलझन भरी बातों से ज़िन्दगी नहीं
गुज़रती, हर दिल चाहता है
यहाँ,ज़रा सा बहकना
कहीं न कहीं !
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
dreamy pastel
ज़मीं, हर इक के दिल में होता
है, सहमा सहमा सा
बचपना कहीं
न कहीं,
बुरा इसमें कुछ भी नहीं, कोई लम्हा
जो बना जाए ज़रा सा जुनूनी !
हर इक वजूद में होता है,
गिरना सम्भलना
कहीं न
कहीं, कोई नहीं दुनिया में इंसान - -
कामिल, हर शख्स चाहता है
छद्म मुखौटे से निकलना
कहीं न कहीं,
फ़लसफ़ों
की वो
उलझन भरी बातों से ज़िन्दगी नहीं
गुज़रती, हर दिल चाहता है
यहाँ,ज़रा सा बहकना
कहीं न कहीं !
* *
- शांतनु सान्याल
http://sanyalsduniya2.blogspot.com/
dreamy pastel
बहुत सुंदर रचना, आदरणीय शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
हटाएं