17 जनवरी, 2021

अलोना स्वाद - -

जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो
बहुत ही बौना निकला,
दूर से देखो तो लगे
हक़ीक़ी, छू के
देखा तो
खिलौना निकला, उसके तहरीरों -
से बुझे जंगल की आग,
दोबारा सुलग जाए,
जिसे अनमोल
सिक्का
समझे, वही नक़ली सोना निकला,
कुछ लोग हैं माहिर, सरे आम
फ़रेबे हुनर अपना दिखा
गए, उड़ते रहे सिफ़र
में, जाने कहाँ
से कहाँ
तक
हमें याद नहीं, सब कुछ था सफ़ाफ़,
जहाँ थे पड़े, वो घर का कोना
निकला, न जाने कितना
कुछ, ख़्यालों से परे
हम ग़ज़ल कह
गए, उतरे
जब
ज़मीं पर, तो जीवन का स्वाद बेहद
अलोना निकला, जिसे लोग
बरगद समझते रहे,
वो बहुत ही बौना
निकला।
* *
- - शांतनु सान्याल  

 

22 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन की कटु सच्चाई दर्शाती सुंदर रचना।

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  2. न जाने कितना
    कुछ, ख़्यालों से परे
    हम ग़ज़ल कह
    गए, उतरे
    जब
    ज़मीं पर, तो जीवन का स्वाद बेहद
    अलोना निकला, जिसे लोग
    बरगद समझते रहे,
    वो बहुत ही बौना
    निकला।
    वास्तविकता के धरातल पर उकेरी सुन्दर और हृदयस्पर्शी कृति।

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  3. जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो
    बहुत ही बौना निकला,
    दूर से देखो तो लगे
    हक़ीक़ी, छू के
    देखा तो
    खिलौना निकला, उसके तहरीरों -
    से बुझे जंगल की आग,
    दोबारा सुलग जाए,
    जिसे अनमोल
    सिक्का
    समझे, वही नक़ली सोना निकला,..बेहतरीन रचना..संवेदना और भावना का अटूट मिश्रण..

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  4. दिलो-दिमाग पर छाई धुंध छंटने पर सामने की सच्चाई कभी-कभी झकझोर कर रख देती है

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  5. बहुत सटीक शानदार, सीधा पोल खोलती अप्रतिम रचना ।
    पहाड़ के तल से हाथी नहीं चूहा निकला ।
    स्तरीय सटीक।

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