जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो
बहुत ही बौना निकला,
दूर से देखो तो लगे
हक़ीक़ी, छू के
देखा तो
खिलौना निकला, उसके तहरीरों -
से बुझे जंगल की आग,
दोबारा सुलग जाए,
जिसे अनमोल
सिक्का
समझे, वही नक़ली सोना निकला,
कुछ लोग हैं माहिर, सरे आम
फ़रेबे हुनर अपना दिखा
गए, उड़ते रहे सिफ़र
में, जाने कहाँ
से कहाँ
तक
हमें याद नहीं, सब कुछ था सफ़ाफ़,
जहाँ थे पड़े, वो घर का कोना
निकला, न जाने कितना
कुछ, ख़्यालों से परे
हम ग़ज़ल कह
गए, उतरे
जब
ज़मीं पर, तो जीवन का स्वाद बेहद
अलोना निकला, जिसे लोग
बरगद समझते रहे,
वो बहुत ही बौना
निकला।
* *
- - शांतनु सान्याल
शांतनु सान्याल / SHANTANU SANYAL / हिंदी / उर्दू काव्य गुच्छ © It's subject to copyright.
रविवार, 17 जनवरी 2021
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जीवन की कटु सच्चाई दर्शाती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंन जाने कितना
जवाब देंहटाएंकुछ, ख़्यालों से परे
हम ग़ज़ल कह
गए, उतरे
जब
ज़मीं पर, तो जीवन का स्वाद बेहद
अलोना निकला, जिसे लोग
बरगद समझते रहे,
वो बहुत ही बौना
निकला।
वास्तविकता के धरातल पर उकेरी सुन्दर और हृदयस्पर्शी कृति।
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 17 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंजिसे लोग बरगद समझते रहे, वो
जवाब देंहटाएंबहुत ही बौना निकला,
दूर से देखो तो लगे
हक़ीक़ी, छू के
देखा तो
खिलौना निकला, उसके तहरीरों -
से बुझे जंगल की आग,
दोबारा सुलग जाए,
जिसे अनमोल
सिक्का
समझे, वही नक़ली सोना निकला,..बेहतरीन रचना..संवेदना और भावना का अटूट मिश्रण..
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 18 जनवरी 2021 को 'यह सरसराती चलती हाड़ कँपाती शीत-लहर' (चर्चा अंक-3950) पर भी होगी।--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंवाह!लाजवाब सृजन सर।
जवाब देंहटाएंसादर
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंदिलो-दिमाग पर छाई धुंध छंटने पर सामने की सच्चाई कभी-कभी झकझोर कर रख देती है
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
हटाएंबहुत सटीक शानदार, सीधा पोल खोलती अप्रतिम रचना ।
जवाब देंहटाएंपहाड़ के तल से हाथी नहीं चूहा निकला ।
स्तरीय सटीक।
ह्रदय तल से आभार - - नमन सह।
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