25 जनवरी, 2021

एहसास के ख़ुश्बू - -

ख़ामोशी की वजह, सिर्फ़
बियाबां को है मालूम,
आईने को कैसे
बताएं, कब
सूख
गए मरुद्यान, अक्स - -
देखना चाहता है
जिन्हें, वो
दिन
रात न रहे, वादियों में फिर
दूर तक बिखरी है
जाफ़रानी धूप,
शाख़ों में
खिले
हैं छितरा कर असंख्य
चेरी के फूल, सब
कुछ दोहराता
हुआ है
लेकिन, वो हालात न रहे,
अक्स देखना चाहता
है जिन्हें, वो दिन
रात न रहे,
कभी
मुद्दतों तक रहते थे ताज़ा,
एहसास के गंध,
बोगनवेलिया
की तरह
अब
रह गए सभी आशनाई, - -
जो रूह को कर जाएं
मुअत्तर, वो हसीं
लम्हात न रहे,
सब कुछ
दोहराता हुआ है लेकिन, -
वो हालात न रहे, वो
ख़ाली हाथ लौट
गया, सीने
का
ज़मीर ज़िंदा है अभी तक,
फ़र्श पर बिखरे पड़े हैं
सभी क़ीमती
पेशकश,
जिसे
दिल के अलमीरा में सजाएं,
वो सौग़ात न रहे, जो
रूह को कर जाएं
मुअत्तर, वो
हसीं
लम्हात न रहे  - - - - - - - -

* *
- - शांतनु सान्याल
 

14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज सोमवार 25 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. दिल के अलमीरा में सजाएं,
    वो सौग़ात न रहे, जो
    रूह को कर जाएं
    मुअत्तर, वो
    हसीं
    लम्हात न रहे - - - - - - - -
    वाह!
    खूबसूरत रचना।

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  3. सार्थक और सुन्दर रचना।
    --
    गणतन्त्र दिवस की पूर्वसंध्या पर हार्दिक शुभकामनाएँ।

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