ख़ामोशी की वजह, सिर्फ़ 
बियाबां को है मालूम,
आईने को कैसे 
बताएं, कब 
सूख 
गए मरुद्यान, अक्स - -
देखना चाहता है 
जिन्हें, वो 
दिन 
रात न रहे, वादियों में फिर 
दूर तक बिखरी है 
जाफ़रानी धूप, 
शाख़ों में 
खिले 
हैं छितरा कर असंख्य 
चेरी के फूल, सब 
कुछ दोहराता 
हुआ है 
लेकिन, वो हालात न रहे,
अक्स देखना चाहता 
है जिन्हें, वो दिन 
रात न रहे,
कभी 
मुद्दतों तक रहते थे ताज़ा, 
एहसास के गंध,
बोगनवेलिया 
की तरह 
अब 
रह गए सभी आशनाई, - -
जो रूह को कर जाएं 
मुअत्तर, वो हसीं 
लम्हात न रहे,
सब कुछ 
दोहराता हुआ है लेकिन, - 
वो हालात न रहे, वो 
ख़ाली हाथ लौट 
गया, सीने 
का 
ज़मीर ज़िंदा है अभी तक, 
फ़र्श पर बिखरे पड़े हैं 
सभी क़ीमती 
पेशकश,
जिसे 
दिल के अलमीरा में सजाएं, 
वो सौग़ात न रहे, जो 
रूह को कर जाएं 
मुअत्तर, वो 
हसीं 
लम्हात न रहे  - - - - - - - -
* * 
- - शांतनु सान्याल 
 
25 जनवरी, 2021
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आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 25 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंदिल के अलमीरा में सजाएं,
जवाब देंहटाएंवो सौग़ात न रहे, जो
रूह को कर जाएं
मुअत्तर, वो
हसीं
लम्हात न रहे - - - - - - - -
वाह!
खूबसूरत रचना।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसार्थक और सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएं--
गणतन्त्र दिवस की पूर्वसंध्या पर हार्दिक शुभकामनाएँ।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंकमाल की रचना
जवाब देंहटाएंवाह
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंलाजवाब कृति..
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएं