27 जनवरी, 2021

सम्मोह का दर्पण - -

ज़िन्दगी कोई तयशुदा निसाब नहीं,  
हर क़दम पे थीं इम्तहां की
सीढ़ियां, हर मोड़ पे थे
कई घुमावदार
वादियां,
मिलने बिछड़ने का कोई हिसाब नहीं,
गुलमोहर की शाख़ों पे कहीं
लिखा रहता है, गुमशुदा
बहार का ठिकाना,
कायाकल्प
होने की
यूँ तो कोई किताब नहीं, सभी लिए
फिरते हैं, अपने अपने हाथों
में सम्मोह का दर्पण,
लेकिन ख़ुद के
प्रतिबिम्बों
का उन्हें
पता नहीं, दूसरों को देते हैं उपदेश,
स्व - प्रश्नों का जिनके पास
कोई भी जवाब नहीं, ये
वही शाही मजलिस
है जहां युगों से
तौहीन किए
जाते हैं
इंसाफ़ के निगहबाँ, इस धधकती
हुई आग को जो बुझा सके
ऐसा कोई हयातबख़्श
इन्क़लाब नहीं,
न जाने
कहाँ
दौड़े जा रहे सभी कुम्हलाए चेहरे, -
सुदूर नील दिगंत में फिर डूब
गया आज नाउम्मीद का
एक दिन, ज़िन्दगी के
पास समझौतों
के सिवा
कुछ
बचा नहीं, वक़्त के बटुए में अब नया
कोई और ख़्वाब नहीं।

* *
- - शांतनु सान्याल
 
   
 







12 टिप्‍पणियां:

  1. बचा नहीं, वक़्त के बटुए में अब नया कोई और ख़्वाब नहीं''
    फिर भी उम्मीद पे दुनिया जिए जाती है

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज बुधवार 27 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. हर क़दम पे थीं इम्तहां की
    सीढ़ियां, हर मोड़ पे थे
    कई घुमावदार
    वादियां,
    मिलने बिछड़ने का कोई हिसाब नहीं,
    ----------------------------
    बहुत सुंदर। बहुत खूब। आपको ढेरों बधाई सर। सादर।

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद

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  5. वाह!बहुत सुंदर आदरणीय सर।
    सादर

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