रेशमी कोशों के मध्य चलता रहता
है निःशब्द जीवन का रूपांतरण,
विशाल वृक्ष हों या कोई
सूक्ष्म खरपतवार,
हर एक पल
में होता
है
कहीं न कहीं जीवन का अवतरण -
निःशब्द जीवन का रूपांतरण।
उन भू गर्भस्थ क्षणों में,
चलते हैं दीर्घ सांसों
के विनिमय,
सोखते
हैं
आवेग बीज, शीतोष्ण अनुभूति तब
जा कर कहीं होते हैं, प्राणों का
अंकुरण, निःशब्द जीवन
का रूपांतरण। युग -
युगान्तरों से
है ये चक्र
सदा
गतिशील, कितनी सभ्यताएं बसी -
और उजड़ी भी, नील नद से ले
कर तुंगभद्रा तक, शहर के
अट्टालिकाओं से ले
कर पर्ण कुटीर
तक, वही
अनंत
पथ
के सभी यात्री, दौड़ते हुए कभी सहज
उतराई, और कभी दीर्घ निःश्वास,
आग्नेय चट्टानों का आरोहण,
निःशब्द जीवन का
रूपांतरण।
* *
- - शांतनु सान्याल
29 जनवरी, 2021
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(३०-०१-२०२१) को 'कुहरा छँटने ही वाला है'(चर्चा अंक-३९६२) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुंदर भावपूर्ण शुद्ध हिंदी की कविता।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसच में चक्र यूं ही चलता रहता है ।
जवाब देंहटाएंरूपांतरण!! सही रूप ही बदलता है हर काल में ।
गहन दर्शन।
सुंदर।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
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