04 जनवरी, 2021

अन्तःकोलाहल का अंत - -

सभी कुछ है वृथा तुलसी फूल चंदन,
सभी रंग फीके, सभी लोग थे
एक सरीखे, केवल सत्य
था मणिकर्णिका
आकाश,
मेरे
सीने से लिपटने का अर्थ केवल प्रेम
ही हो ज़रूरी नहीं, वो कदाचित
छूना चाहते हैं शेष स्पंदन,
सभी कुछ है वृथा
तुलसी, फूल,
चंदन।
स्तव, स्त्रोत, श्लोक, सभी हैं सिर्फ़
सौजन्य मूलक, वो अपनी
जगह से हिल भी न
पाएगा प्रस्तर
खण्ड की
तरह,
देह का अब कोई मूल्य नहीं, फिर
भी क्यों इतना सारा ढोंग,
चक्षु लज्जा के भय से
निरंतर मिथ्या -
वंदन, सभी
कुछ है
वृथा
तुलसी, फूल, चंदन। झूले से हो -
कर अग्निशय्या तक,
रिक्त पृष्ठों से
निकल कर
शब्दों के
उस
भस्मीभूत नैया तक, अविश्रान्त
पुनर्दहन, सभी कुछ है वृथा
तुलसी, फूल, चंदन।
समय चक्र के
अंकों में न
जाने
क्या ढूंढती हैं मेरी निस्तेज दृष्टि,
अपूर्ण ही रहती है प्राण ग्रन्थ
के अज्ञात पृष्ठों में कहीं,
जीवन की लुप्तप्राय
दिव्य वृष्टि,
क्रमशः
नेह
कपाट के बंद होते ही रुक जाते हैं
लोलक के सभी छायामय नर्तन,
अंदर का शोर थम जाता है
सहसा, तोड़ के सभी
भावपूर्ण बंधन,
सभी कुछ
है वृथा
तुलसी, फूल, चंदन। - - - - - - -

* *
- - शांतनु सान्याल
 
   

24 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन की निस्सारता पर गहन भावाभिव्यक्ति । सशक्त सृजन।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 04 जनवरी 2021 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. सकारात्मक सोच, सुन्दर रचना।
    --
    नूतन वर्ष 2021 की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  4. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (5-12-20) को "रचनाएँ रचवाती हो"'(चर्चा अंक-3937) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  5. क्या ढूंढती हैं मेरी निस्तेज दृष्टि,
    अपूर्ण ही रहती है प्राण ग्रन्थ
    के अज्ञात पृष्ठों में कहीं,
    जीवन की लुप्तप्राय
    दिव्य वृष्टि....

    दार्शनिकता से भरपूर बहूत सुंदर कविता शांतनु सान्याल जी 🌹🙏🌹

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  6. मणिकर्णिका एंव लोलक जैसे अद्भुत अनछुए बिंब के साथ जीवन की निस्सारता पर अभिनव सृजन, आध्यात्म का गहन पुट लिए आलोकिक रचना।

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