उनके बग़ैर ये क़ायनात नहीं होती -
मुद्दतों से ए दिल , ख़ुद से ख़ुद की मुलाक़ात नहीं होती
मुखातिब बैठे रहें वो, लेकिन कोई भी बात नहीं होती
घिरता है अँधेरा, लरजती हैं यूँ रह रह कर, रक़्स ए बर्क
उठती हैं लहरें बहोत ऊपर , फिर भी बरसात नहीं होती
नब्ज़ हाथों में थामे, होता है वो लिए अश्क भरी निगाहें
सदीद जीने की तमन्ना हो जब ज़िन्दगी साथ नहीं होती
जी चाहता है के भर दूँ, हथेलियों पे, बेइन्तहां रंग गहरे
हिना ए जिगर ले के भी, पल भर की निज़ात नहीं होती
उड़ती हैं शाम ढलते, फिज़ाओं में इक अजीब सी ख़ुमारी
ये और बात है के हर शब लेकिन,हसीं चाँद रात नहीं होती
बिखरते हैं क़हक़सां नीले समंदर में बेतरतीब दूर तलक
बेमानी सभी फ़लसफ़े बिना उसके ये क़ायनात नहीं होती.